Women wrote such stories of Taliban oppression
सत्य खबर , नई दिल्ली। याद है आपको पाकिस्तान के मशहूर शायर फैज अहमद फैज की वो नज्म जिसने हुकूमतों की बोलती बंद कर दी थी. उसकी कुछ पंक्तियां ऐसे है कि जब ज़ुल्म-ओ-सितम के कोह-ए-गरां (घने पहाड़), रुई की तरह उड़ जाएंगे, हम महकूमों (रियाया या शासित) के पांव तले ये धरती धड़-धड़ धड़केगी और अहल-ए-हकम (सताधीश, सत्ताधारी)के सर ऊपर जब बिजली कड़-कड़ कड़केगी… फैज को इस नज्म के बाद जेल में डाल दिया गया मगर ये नज्म आज भी लोगों की जुंबा पर है. जब सितम की सारी हदें पार होती हैं तो आंसू भी सूख जाते हैं. आज अफगानिस्तान की महिलाएं ऐसी बेबस जिंदगी बिता रही हैं जिसके ख्याल से आपकी हमारी और शायद इस दुनिया के हर संवेदनशील इंसान की रूह कांप जाएगी.
ये सच है कि इंसानों को आप कैद कर सकते हैं मगर उसकी कलम को आप कैसे रोक पाएंगे. वो तो एक आजाद पंक्षी की तरह फलक की सैर पर निकल पड़ते हैं. अफगानिस्तान की 18 महिलाओं के ऐसे ही शब्दों की एक किताब आज हर किसी की आंखें नम कर रही है. इस किताब का नाम है माई पेन इज द विंग ऑफ़ ए बर्ड किताब में लिखा है, “मेरी कलम एक चिड़िया का पंख है. यह आपको बताएगी कि हमें उन विचारों को सोचने की अनुमति नहीं है. उन सपनों को जिन्हें हम देख नहीं सकते…
कहानी यहां से शुरू होती है…
बीबीसी की एक रिपोर्ट में इस किताब की दो लेखकों से की बात को प्रकाशित किया गया. कभी-कभी काबुल और अन्य शहरों की सड़कों से छोटे, जोरदार, विरोध प्रदर्शनों में अफगान महिलाओं की आवाजें उठती हैं. अक्सर ये आवाजें अफगानिस्तान से बाहर दूर की महिलाओं के भाषणों में गूंजती हैं, लेकिन ज्यादातर उनके विचार केवल चुपचाप, सुरक्षित स्थानों पर ही व्यक्त किए जाते हैं. अफगानिस्तान जैसे खूबसूरत देश में खुले आसमान के नीचे सब कुछ अमन चैन से बीत रहा था. तालिबान शासन लौटने से पहले अगस्त 2021 में, 18 अफगान महिला लेखकों ने वास्तविक जीवन से ली गई काल्पनिक कहानियां लिखीं और इस साल की शुरुआत में माई पेन इज द विंग ऑफ़ ए बर्ड नामक पुस्तक में प्रकाशित की गईं.
कई अफगान महिलाओं ने महसूस किया कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने उन्हें अकेला छोड़ दिया गया. लेकिन इन लेखकों ने अपने पेन और फोन का इस्तेमाल एक-दूसरे को दिलासा देने और उन मुद्दों पर विचार करने के लिए किया जिनका सामना अब लाखों महिलाएं और लड़कियां कर रही हैं. यहां काबुल में परांडा और सदाफ नाम के दो लेखकों ने गुप्त रूप से लिखे अपने विचारों को साझा किया.
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क्या फर्क है काले स्कार्फ और गुलाबी स्कार्फ में…
वो लिखती हैं, “आज हम एक दृढ़ संकल्प के साथ जागे. जब मैंने अपने कपड़े चुने, तो मैंने काले हेडस्कार्फ़ से लड़ने के लिए गुलाबी हेडस्कार्फ़ पहनने का फैसला किया जो मैं रोज पहनती हूं… क्या गुलाबी हेडस्कार्फ पहनना पाप है?” परांडा गुलाबी रंग पहनना पसंद करती हैं, स्त्रीत्व महसूस करने के लिए. लेकिन महिलाएं जो चुनती हैं वह अब एक युद्ध का मैदान है. यहां पर सख्त तालिबान आदेश अक्सर बलपूर्वक लागू किए जाते हैं. इस पारंपरिक समाज में अफगान महिलाएं सिर ढकने के खिलाफ नहीं लड़ रही हैं, कुछ बस अपना अधिकार चुनना चाहती हैं. आप इसे सड़कों पर, सार्वजनिक स्थानों पर एक गुलाबी दुपट्टे के साथ देखते हैं. इनके हाथों में एक चमकदार ट्रिम होता है जो अंधेरे में एक छोटा सा उजाला होता है.
कवि हफीजुल्लाह हमीम लिखते हैं, “पीछे जाना आसान नहीं है. आगे बढ़ना भी एक बड़ी परेशानी है, मैं आशान्वित रहूं या नहीं?
दुर्लभ सार्वजनिक विरोध प्रदर्शनों का अफगान महिलाएं नेतृत्व कर रही हैं. कम लोग लेकिन वो सभी बहादुर लोग काबुल और अन्य शहरों में रोटी, काम, आज़ादी का आह्वान करने वाले बैनरों को लहराते हुए सड़कों पर उतरते हैं. उन्हें जबरन तितर-बितर कर दिया गया और हिरासत में ले लिया गया. कुछ हिरासत में गायब हो गए हैं. सीमा के उस पार, ईरान में महिलाएं जीवन, स्वतंत्रता के नारों के साथ बदलाव की मांग कर रही हैं. ये महिलाएं हिजाब के खिलाफ एकजुट हैं और इसे समाप्त करने की मांग कर रही हैं. अफगानों के लिए, महिलाओं का काम करना, लड़कियों का शिक्षित होना अधिकार है.
किताब की राइटर ने बताया कि तालिबान गार्ड ने हमारी ऑफिस की कार रोकी, उसने मुझे इशारा किया. मेरा दिल तेजी से धड़क रहा था, मेरा शरीर कांप रहा था. ऐसा लगा जैसे मेरे ऊपर से कोई हवा चल रही हो. जब हमारी गाड़ी चली तो ऐसा लगा जैसे हवा दूसरी दिशा में चली गई हो. यानी की उनकी गाड़ी को दूसरी तरफ मोड़ दिया गया. मेरा डर गुस्से में बदल गया.” यह अप्रत्याशितता है. तालिबान के कुछ रक्षक आक्रामक हैं, कुछ स्वीकार करने वाले. महिलाओं की यात्राएं घबराहट पैदा करने वाली होती हैं. 72 किमी (45 मील) से अधिक लंबी दूरी के लिए एक महरम (एक पुरुष एस्कॉर्ट) अनिवार्य है. कुछ तालिब अपनी मर्जी से महिलाओं को घर भेजने का नियम लागू करते हैं.
एक-एक आइसक्रीम को तरस रहे बच्चे
एक बच्चे के रूप में आइसक्रीम खाने का उत्साह एक वयस्क के रूप में अंतरिक्ष की यात्रा के उत्साह के बराबर होता है. आप अक्सर आइसक्रीम दुकानों पर कतारें, कैफे में महिलाओं और बच्चों की भीड़ देखते हैं. यहां पर ये सब दुर्लभ हो गया है. यहां तक कि सार्वजनिक पार्क और केवल महिलाओं के लिए जिम और स्नानागार भी बंद हैं. क्योंकि महिलाएं हिजाब का पालन नहीं करती हैं.Women wrote such stories of Taliban oppression
13 साल की उम्र में बच्ची की शादी
सार्वजनिक स्नानागार के मालिक की बेटी की सगाई हो चुकी है. यह आश्चर्यजनक है. वह केवल 13 वर्ष की है. उसकी मां कहती है कि तालिबान कभी स्कूल नहीं खोलेगा. उसे अपने भाग्य के घर जाने दो. ऐसा लगता है कि वह छोटी लड़की मैं हूं. जब पहली बार तालिबान शासन आया था तो मैं मायूस हो गई थी. मैंने भी जबरन शादी स्वीकार कर ली थी. वो घाव अभी भरे नहीं हैं, लेकिन मैं राख से उठकर खड़ी हो गई. यह बार-बार दमन है. अफगान महिलाएं 1990 के दशक के तालिबान शासन को याद करती हैं. जब उनकी शिक्षा को भी समाप्त कर दिया था.
तालिबान से नहीं पुरुषवादी सोच से परेशान हैं हम
परांडा कहती हैं कि मैंने सोशल मीडिया का इस्तेमाल किया था लेकिन अब मैंने अपने होंठ बंद कर लिए हैं. मैं अपने समाज से परेशान हूं. पुरुष महिलाओं के खिलाफ जिन नग्न शब्दों का इस्तेमाल करते हैं. मेरा मानना है कि अफगान महिलाओं की समस्याओं की जड़ सरकारें नहीं हैं जो बदलती हैं और नए नियम लाती हैं. यह महिलाओं के प्रति पुरुषों के बुरे विचार हैं. अफगान शासन आते हैं और चले जाते हैं लेकिन पुरुषवादी सोच बनी रहती है. अफगान महिलाएं लंबे समय से पुरुषों द्वारा निर्धारित सीमाओं के साथ रहती हैं.वो आगे कहती हैं कि मुझे इस बारे में लिखना चाहिए कि क्या हो रहा है? अब यहां पर मीडिया भी नहीं बचा तो यहां का सच दुनिया के सामने ला सके लेकिन मुझे विश्वास है कि किसी दिन अफगानिस्तान महिलाओं और लड़कियों के लिए एक बहुत अच्छा देश होगा. इसमें समय लगेगा, लेकिन यह होगा.
परांडा एक (पेन नेम) है. इसका अर्थ है पक्षी. उनके जैसी महिलाएं खासकर शहरों में पढ़ी-लिखी महिलाएं पिंजरे में बंद होने से इनकार करती हैं. कइयों ने देश छोड़ दिया और कई आज भी अच्छे की उम्मीद में बैठी हुई हैं. देश के दूर-दराज के कोने-कोने में भी मुझे ऐसी अनपढ़ औरतें मिली हैं जो अपने जेल जैसी जिंदगी से अंदर ही अंदर उबल रही हैं. सदफ लिखती हैं, “लिखो! डर क्यों रहे हो? किससे डर रहे हो?…हो सकता है तुम्हारा लेखन किसी की आत्मा को भर दे…तुम्हारी कलम किसी की टूटी बांहों का सहारा बन जाती है और कुछ नाउम्मीदों में थोड़ी उम्मीद जगा देती है.
सदफ कहती हैं, “मेरा विश्वास मुझे बताता है कि मुझे पैसे के बारे में चिंता नहीं करनी चाहिए क्योंकि भगवान के पास मेरे लिए कुछ बेहतर हो सकता है. लेकिन भगवान जानता है कि मैं क्यों चिंतित हूं. हम 10 लोगों का परिवार हैं और मैं अकेली कमाने वाली हूं. महिलाओं को पूरी तरह से काम से नहीं निकाला गया. कुछ महिला डॉक्टर, नर्स, शिक्षक, महिला पुलिसकर्मी अभी भी अपने काम पर हैं. मुख्य रूप से महिलाओं और लड़कियों के साथ काम कर रही हैं. कुछ व्यवसायी अभी भी व्यवसाय में हैं लेकिन एक गंभीर आर्थिक संकट है और अधिकांश सरकारी मंत्रालयों में महिलाओं के लिए दरवाजे बंद कर दिए गए हैं. लड़कियों के हाई स्कूल के बाद पढ़ाई बंद होने से महिलाओं और काम के बीच की कड़ी टूट रही है.’Women wrote such stories of Taliban oppression
मन में कई बार सुसाइड का ख्याल भी आता है लेकिन मैंने खुद से कहा कि नहीं, नहीं! मैं आत्महत्या नहीं कर सकती. मैंने खुद को दिलासा देते हुए कहा, ‘हो सकता है कि तुम जीना नहीं चाहते, फिर भी तुम्हारी आत्महत्या कई और जिंदगियों को प्रभावित करेगी. कृपया उन पर दया करो, तुम मजबूत हो, सब कुछ ठीक हो जाएगा, तुम इसे कर सकते हो। यह समय भी गुजर जाएगा.’
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