सत्यखबर, काबुल
अफगानिस्तान में तालिबान काफी तेजी से पांव पसार रहा है और माना जा रहा है कि अगले तीन महीनों के अंदर तालिबान का अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर कब्जा हो जाएगा। तालिबान ने 12 प्रांतों की राजधानियों पर नियंत्रण स्थापित कर लिया है और देश के कई प्रांतों के नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं को बंदी बना लिया गया है। लेकिन 2021 का तालिबान 1990 के दशक के अंत के तालिबान से काफी अलग दिख रहा है। तालिबान की तरफ से जो वीडियो जारी किया जाता है और अलग-अलग मीडिया स्रोतों के हवाले से तालिबान को लेकर जो वीडियो फूटेज मिलते हैं। उससे साफ पता चलता है कि तालिबानी नेताओं की भेषभूषा और कार्य करने की शैली में भी परिवर्तन हुआ है।
तालिबान को लेकर जो रिपोर्ट मिल रही हैं और जो वीडियो फूटेज मिलते हैं। उससे पता चलता है कि तालिबान के पास अत्याधुनिक हथियार आ गये हैं और उनके पास आधुनिक एसयूवी गाडिय़ां आ गई हैं। तालिबान के लड़ाके जो कपड़े पहनते हैं वो नये और काफी हद तक साफ दिखते हैं, जबकि पुराने तालिबान की भेषभूषा भी पुराना होता था और उनका रहन-सहन भी कबीलों के जैसा होता था। हालांकि देखा जाए तो विचारधारा के स्तर पर तालिबान की सोच अभी भी बहुत हद कर पुराने तालिबान जैसा ही है और महिलाओं को लेकर तालिबान के विचार खतरनाक ही हैं। लेकिन 2021 के तालिबान में 1990 के दशक के तालिबान जैसा पागलपन नहीं दिख रहा है। तालिबान के लड़ाके अब अनुशासित नजर आते हैं और ऐसा लगता है कि उन्हें काफी अच्छी ट्रेनिंग दी गई है और वो आत्मविश्वास से लबरेज दिखते हैं और वो क्यों नहीं आत्मविश्वास से भरे दिखेंगे, आखिर उनके खजाने में पैसा भरा हुआ जो है।
तो सवाल ये उठता है कि तालिबान के पास कितना पैसा है और ये पैसा कहां से आता है। 2016 में फोब्र्स पत्रिका ने दुनिया के सबसे अमीर आतंकवादी संगठनों की लिस्ट जारी की थी। जिसमें तालिबान को पांचवां सबसे अमीर आतंकी संगठन बताया गया था। उस वक्त आतंकवादी संगठन आईएसआईएस को सबसे अमीर आतंकी संगठन बताया गया था और उसकी संपत्ति करीब 2 अरब अमेरिकी डॉलर आंकी गई थी। हालांकि आईएसआईएस ने इराक के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया था और उसे कई देशों में स्थिति इस्लामिक चरमपंथी संगठनों से फ ंड मिला गुआ था, लेकिन अमेरिका ने आईएसआईएस को तबाह कर दिया और उसके मुखिया अबु बकर अल बगदादी को अमेरिका ने बम से उड़ा दिया था। लेकिन फोब्र्स की रिपोर्ट के मुताबिक 2016 में तालिबान का वार्षिक कारोबार करीब 400 मिलियन डॉलर आंकी गई थी।
फोब्र्स ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि तालिबान के पास पैसे कमाने का मूल स्रोत मादक पदार्थों की तस्करी, सुरक्षा देने के नाम पर वसूली, अलग-अलग चरमपंथी संगठनों से मिला दान और उन इलाकों से वसूला गया धन था। जहां तालिबान का नियंत्रण था। फोब्र्स ने 400 मिलियन वार्षिक की ये रिपोर्ट 2016 में जारी की थी और उस वक्त तालिबान काफी कमजोर था और उसके पास कुछ ही छोटे-छोटे इलाकों पर नियंत्रण था। लेकिन अब तालिबान का नियंत्रण अफगानिस्तान के कई बड़े और महत्वपूर्ण शहरों पर हो गया है और उसकी संपत्ति में काफी ज्यादा वृद्धि दर्ज की गई है।
रेडियो फ्री यूरोपध्रेडियो लिबर्टी ने नाटो की गोपनीय रिपोर्ट के हवाले से तालिबान की संपत्ति को लेकर बड़ा खुलासा किया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि तालिबान की संपत्ति में कई गुना इजाफा हुआ है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2019-2020 वित्त वर्ष में तालिबान का वार्षिक बजट 1.6 अरब डॉलर था तो 2016 के फोब्र्स के आंकड़ों की तुलना में चार सालों में 400 प्रतिशत की वृद्धि है। इस रिपोर्ट में लिस्ट बनाकर दिखाया गया है कि तालिबान के पास कहां से इतने पैसे आते हैं और इन पैसों को तालिबान किन मदों में कहां कहां खर्च करता है।
रेडियो फ्री यूरोपध्रेडियो लिबर्टी ने नाटो के खुफिया दस्तावेज से जो रिपोर्ट हासिल की है। उसमें तालिबान की कमाई का पूरा किस्सा दर्ज है। रिपोर्ट में कहा गया है कि तालिबान माइनिंग से 464 मिलियन डॉलर कमाता है तो मादक पदार्थों की तस्करी से उसे 416 मिलियन डॉलर की आमदनी होती है। वहीं अलग-अलग चरमपंथी संगठनों से तालिबान को 240 मिलियन डॉलर चंदा मिलता है और तालिबान अलग-अलग तरीके से लोगों से करीब 240 मिलियन डॉलर की उगाही करता है। वहीं जिन इलाकों पर तालिबान का कब्जा है। वहां से तालिबान बतौर टैक्स करीब 160 मिलियन वसूलता है। जिसमें प्रोटेक्शन मनी और एक्सटॉर्शन मनी भी शामिल है। वहीं रीयल स्टेस से तालिबान को 80 मिलियन डॉलर की कमाई होती है।
गोपनीय नाटो रिपोर्ट ने इस तथ्य पर प्रकाश डाला है कि तालिबान नेतृत्व एक स्वतंत्र राजनीतिक और सैन्य इकाई बनने के लिए आत्मनिर्भरता की तरफ बढ़ रहा है और इस कोशिश में है कि उसे पैसों के लिए किसी और देश या किसी और संगठन पर मोहताज नहीं होना पड़े। रिपोर्ट के मुताबिक कई सालों से तालिबान इस कोशिश में है कि पैसों के लिए विदेशी संगठनों और विदेशी देशों खासकर पाकिस्तान पर निर्भरता कम की जाए। नाटो की खुफिया रिपोर्ट के मुताबिक 2017-18 में कथित तौर पर तालिबान को विदेशी स्रोतों से अनुमानित $500 मिलियन डॉलर मिले थे। जिसे 2020 में तालिबान काफी कम कर चुका है।
सबसे हैरानी की बात ये है कि 2020 में जारी बजट के मुताबिक अफगानिस्तान सरकार का आधिकारिक बजट 5.5 अरब डॉलर था। जिसमें 2 प्रतिशत से कम रक्षा बजट को दिया गया था। हालांकि तालिबान को अफगानिस्तान की सीमा पर खदेडक़र रखने में ज्यादातर पैसा अमेरिका खर्च कर रहा था, लेकिन एक्सपर्ट बताते हैं कि अफगानिस्तान सरकार ने रक्षा बजट पर पैसे खर्च नहीं किए हैं। जिसकी वजह से आज की स्थिति पूरी तरह बदली हुई है और तालिबान को रोकने में अफगानिस्तान सरकार पूरी तरह से नाकाम हो गई है। अमेरिका दावा करता है कि उसने पिछले 20 सालों में अफगानिस्तान में सैनिकों को ट्रेनिंग और हथियार देने में करीब एक ट्रिलियन डॉलर खर्च किए हैं। जिसमें तालिबान से लडऩा भी शामिल है। लेकिन अमेरिका ने अफगानिस्तान को अभी तक पूरा खाली नहीं किया है और उससे पहले ही तालिबान द्वारा काबुल को घेर लिया जाना अमेरिका की मजबूती पर सवाल खड़े करता है।
ये भी पढ़ें… अफगानिस्तान पर तालिबान का लगभग कब्जा हो गया है
व्यापारिक नजरिए से देखा जाए तो तालिबान ने लगातार तरक्की की है और उसने पैसों का स्रोत बनाए रखा है और उसी की बदौलत आज का तालिबान काफी बदला- बदला नजर आता है और उसने अपनी विचारधारा में थोड़ा परिवर्तन करते हुए अंतर्राष्ट्रीय संगठनों से बातचीत शुरू की है। क्योंकि तालिबान अब जानने लगा है कि अगर उसे वैश्विक मंच पर रहना है तो उसे बातचीत करनी होगी और उसे अगर अपने संगठन को जिंदा रखना है तो पैसे कमाने के अलग अलग स्रोतों के बारे में सोचना होगा।
Aluminium recycling ecosystem Aluminium recycling system Metal scrap procurement