सत्यखबर, नई दिल्ली
एक के बाद एक चुनाव हार चुकी कांग्रेस अब खुद को बदलने की तैयारी कर रही है। पार्टी की नजर विधानसभा के साथ लोकसभा चुनाव पर है। चुनाव में जीत की दहलीज तक पहुंचने के लिए पार्टी जातीय समीकरणों के साथ युवाओं पर दांव लगाएगी। ताकि, 2024 के चुनाव में जीत हासिल की जा सके। कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौती कमजोर संगठन है। इसके साथ पार्टी की जीत का सवर्ण, दलित और मुसलिम फार्मूला बिखर चुका है। इसलिए, पंजाब में जहां चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाकर पार्टी दलितों को फिर राजनीतिक बहस के केंद्र में लाई है। वहीं, पीढीगत बदलाव भी किया है। युवाओं को साथ जोड़ने के लिए कांग्रेस हर राज्य में महाअभियान चलाने की तैयारी कर रही है। इसके तहत पार्टी ऐसे युवाओं को जोड़ने की कोशिश करेगी, जो आंदोलन और संघर्ष से निकले हों। कन्हैया कुमार और जिग्नेश मेवाणी ऐसे ही युवा है। इसलिए, पार्टी इन्हें साथ लेने की कोशिश कर रही है।
कन्हैया कुमार : कन्हैया कुमार का ताल्लुक बिहार के बेगुसराय है। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने किस्मत भी आजमाई थी, पर वह भाजपा के गिरिराज सिंह से हार गए। बेगुसराय में भूमिहार मतदाताओं की तादाद सबसे ज्यादा है और कन्हैया कुमार भी भूमिहार है। ऐसे में वह खुद को साबित करने में विफल रहे।इसके बावजूद पार्टी मानती है कि बिहार में नए चेहरे की जरुरत है। छात्र नेता के तौर पर उन्हें संगठन बनाने का अनुभव है। बिहार कांग्रेस के नेता अमरिंदर सिंह कहते हैं कि कन्हैया के आने से पार्टी को फायदा होगा। क्योंकि, कन्हैया वही मुद्दे और लड़ाई लड़ रहे हैं जिन्हें कांग्रेस उठाती रही है।
जिग्नेश मेवाणी : वर्ष 2017 के चुनाव में हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवाणी की तिगड़ी ने अहम भूमिका निभाई थी। हार्दिक पटेल कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं। वहीं, अल्पेश ठाकोर भाजपा में चले गए। पर जिग्नेश मेवाणी ने कभी कोई समझौता नहीं किया और वह लगातार भाजपा से लड़ते रहे हैं। गुजरात में सात फीसदी दलित हैं और उनके लिए 13 सीट आरक्षित हैं। पिछले चुनाव में अधिकतर आरक्षित सीट पर भाजपा ने जीत दर्ज की थी। उस वक्त जिग्नेश मेवाणी अपनी सीट तक सीमित रहे थे और कांग्रेस ने उनके खिलाफ उम्मीदवार नहीं उतारा था। पर मेवाणी के कांग्रेस में आने से तस्वीर बदल सकती है।
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हार्दिक पटेल : हार्दिक पटेल गुजरात के युवा पाटीदार नेता है। पाटीदार की तादाद करीब 14 फीसदी है, पर विधानसभा व लोकसभा की एक चौथाई सीट पर हार जीत का फैसला करते हैं। हार्दिक ने आंदोलन खत्म होने के बाद लोकसभा से ठीक पहले कांग्रेस का हाथ थामा था, पर पार्टी कोई सीट नहीं जीत पाई। कुछ माह पहले हुए निकाय चुनाव में भी वह अपना असर दिखाने में विफल रहे। पाटीदारों का गढ माने जाने वाले सूरत में कांग्रेस खाता तक नहीं खोल पाई। पर भाजपा ने भूपेंद्र पटेल को मुख्यमंत्री बनाकर पाटीदार मतदाताओं का भरोसा जीतने की कोशिश की है। ऐसे में उनकी भूमिका बढ गई है।
प्रशांत किशोर : चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर का कांग्रेस का हाथ थामना लगभग तय है। पार्टी उनमें काफी संभावनाएं देख रही है। रणनीतिकार मानते हैं कि प्रशांत के जरिए जहां चुनाव रणनीति बनाने में मदद मिलेगी, वही वह संगठन को मजबूत करने के लिए युवाओं को जोड़ने में भी उनकी मदद ले पाएगी। प्रशांत खुद को पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव से अलग कर चुके हैं। पर कई नेता मानते हैं कि आने वाले दिनों में कांग्रेस के चुनावी फैसलों पर उनका असर साफ दिखाई देगा। पार्टी संगठन को लेकर सबसे ज्यादा चिंतित है। कांग्रेस को उम्मीद है कि प्रशांत के जरिए वह युवाओं को जोडने में सफल रहेगी।
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