सत्यखबर
जाट राजनीति के बूते पश्चिमी उत्तर प्रदेश में दबदबा रखने वाले राष्ट्रीय लोकदल रालोद के मुखिया एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी अजित सिंह के निधन के साथ जाटों की मजबूत आवाज खामोश हो गई। उनके निधन से न केवल पार्टी कार्यकर्ताओं व समर्थकों में शोक छाया हुआ है, बल्कि जाट समुदाय तथा अन्य राजनीतिक दलों में मायूसी छाई हुई है।
बता दें कि यूपी-दिल्ली बार्डर पर किसानों को अक्टूबर 2018 में बलपूर्वक रोक दिया गया था। किसान गांधी जयंती पर दिल्ली राजघाट पर धरना देने जा रहे थे। उस समय किसानों को समर्थन देने यूपी गेट पर पहुंचे रालोद मुखिया चौधरी अजित सिंह को लोगों ने हाथों हाथ लिया और कंधे पर बैठा लिया था। इस दौरान वह तबीयत बिगडऩे पर बेहोश हो गए थे। वह किसानों के हित में होने वाले प्रदर्शन में बढ़-चढक़र हिस्सा लेते थे। भारतीय किसान यूनियन के मुखिया रहे चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के समय बड़े आंदोलन में वह साथ खड़े रहे। रालोद का पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ, गाजियाबाद, बुलंदशहर, गौतमबुद्ध नगर, बागपत, मुजफ्फ रनगर, शामली, सहारनपुर, बिजनौर, मुरादाबाद, जेपी नगर, रामपुर, आगरा, अलीगढ़, हाथरस, मथुरा, एटा, मैनपुरी, बरेली, बदायूं, पीलीभीत व शाहजहांपुर में खासा प्रभाव रहा है।
किसानों ने अपना मसीहा, देश ने एक अच्छा नेता खो दिया। चौधरी अजित सिंह हमेशा किसान और मजदूरों के हितों की लड़ाई के साथ सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ भी लड़ाई लड़ते रहे। वह धर्म निरपेक्षता की मिसाल थे। जब भी खेती, किसानी और मजदूरों के हकों की बात होगी चौधरी अजित सिंह को हमेशा याद किया जाएगा। किसानों ने अपना सबसे मजबूत नेता ही नहीं बल्कि एक नायक खो दिया। चौधरी अजित सिंह किसानों के सच्चे हमदर्द और देश के बड़े नेता थे, जिन्होंने हमेशा चौधरी चरणसिंह की विचारधारा को आगे बढ़ाया और हमेशा हिन्दू मुस्लिम भाईचारे को बढ़ावा देने का काम किया। चौधरी अजित सिंह का जीवन किसानों को समर्पित रहा।
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किसानों के लिए उन्होंने जीवन भर संघर्ष किया। उनका अचानक चले जाना किसानों के संघर्ष और भारतीय राजनीति में कभी ना भरने वाली जगह छोड़ गया। अपने कार्यकर्ताओं से निरंतर फोन पर सम्पर्क रखने वाले अजित सिंह को उनकी पार्टी के नेता व कार्यकर्ता कभी नहीं भुला पायेंगे। यही किसानों के दु:ख दर्द में शामिल होने तथा उनके लिए किसी भी हद तक लड़ाई लडऩे वाले अजित सिंह को किसान भी बुलाये नहीं भूल पायेंगे इसके अलावा बात की जाए जाट समुदाय की तो चौधरी अजित सिंह ने इस समुदाय का न केवल नाम रोशन करने का काम बल्कि उनके हितों की लड़ाई लडऩे में भी पीछे नहीं रहे। जहां भी इस समुदाय को उनकी जरूरत पड़ी वह वहीं पर खड़े मिले इसलिए यह समुदाय भी उनके योगदान को दरकिनार नहीं कर सकता। आईए अब जानते हैं उनके जीवन के कुछ विशेष जानकारियां चौधरी अजित सिंह का दबदबा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में काफ ी ज्यादा था। वे जाटों के बड़े नेता माने जाते थे। वे कई बार केंद्रीय मंत्री भी रहे। लेकिन पिछले 2 लोकसभा चुनाव और 2 विधानसभा चुनावों के दौरान राष्ट्रीय लोकदल का ग्राफ तेजी से गिरा। यही वजह रही कि अजित सिंह अपने गढ़ बागपत से भी लोकसभा चुनाव हार गए। अजित सिंह के पुत्र जयंत चौधरी भी मथुरा लोकसभा सीट से चुनाव हार गए थे। चौधरी अजित सिंह का जन्म 12 फ रवरी 1939 को पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में हुआ था। जाट और किसान नेताओं के रूप में पहचान बनाने वाले अजित सिंह ने लखनऊ विश्वविद्यालय और खडग़पुर से अपनी पढ़ाई पूरी की। वहीं 17 साल तक अमेरिका में नौकरी करने के बाद चौधरी अजित सिंह साल 1980 में अपने पिता की ओर से बनाए गए राजनीतिक पार्टी लोकदल को एक बार फि र सक्रिय करने के लिए भारत लौट आए। इनके परिवार में पत्नी राधिका सिंह और दो बच्चे हैं। साल 1986 में चौधरी अजित सिंह पहली बार राज्यसभा सदस्य के तौर पर चुने गए। उन्होंने पश्चिम उत्तर प्रदेश से 7 बार लोकसभा चुनाव भी जीता। विश्वनाथ प्रताप सिंह की अगुवाई वाली सरकार में चौधरी अजित सिंह 1989-90 तक केन्द्रीय उद्योग मंत्री रहे। इसके अलावा 90 के दशक में अजित सिंह कांग्रेस के सदस्य बन गए। पी.वी. नरसिम्हा राव के काल में वर्ष 1995-1996 तक वे खाद्य मंत्री भी रहे। जबकि 1996 में कांग्रेस के टिकट पर जीतने के बाद वे लोकसभा सदस्य बने तथा 2019 में लोकसभा चुनाव वे हार गए थे। उनके बेटे जयंत चौधरी को भी हार का सामना करना पड़ा था।
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