सत्यखबर, नरवाना (सन्दीप श्योरान) :-
पानी प्रकृति की अमूल्य धरोहर और जीवन का आधार है। भारतीय जीवन शैली में पानी को जल देवता माना गया है। आदिकाल से जल संरक्षण एवं पवित्रता के लिए कुएं, बावड़ी, तालाबों की पवित्रता का विशेष महत्व रहा है। यहां गर्मी के दिनों में तो सभी क्षेत्रों में प्याऊ बैठाई जाती थी। पर आधुनिकता ने जल संरक्षण, गुणवत्ता व सेवा उपक्रम को नजरअंदाज कर दिया गया। आज बोतलबंद पानी व्यापार बन गया है। शुद्धता की कोई गारंटी नहीं है। वैसे भी पॉलीथिन प्लास्टिक का पानी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। प्रो. जयपाल ने कहा कि उन्होंने पिछले 5-6 सालों में जींद जनपद के 307 गांव, कस्बे एवं शहर से भूजल के लगभग 1200 नमूने लेकर, उनका 3 बार जांच एवं परीक्षण किया है। इस जांच में तापमान, गंद, पारदर्शिता, स्वाद, गहराई पीएच 6.5-8.5, टीडीएस 500पीपीएम, सैलिनिटी 200पीपीएम, कठोरता 300पीपीएम, फ्लोराइड,0.5-1.5पीपीएम, क्लोराइड 250पीपीएम, नाइट्रेट 45पीपीएम ,सल्फेट 250पीपीएम, कैल्शियम 75पीपीएम, मैग्नीशियम30पीपीएम, फास्फेट1.5-4.5पीपीएम, आयरन एवं आर्गेनिक आदि की जांच की है। यह शोध कार्य समाज सेवा के लिए किया गया। इसमें नहर या राजबाहों, तालाबों के पास नलके, कुएं, ट्यूबवेल एवं समर्सिबल का पानी उत्तम पाया गया है। दूर के क्षेत्रों में पानी की गुणवत्ता में भारीपन आ गया। फ्लोराइड की मात्रा भी ज्यादा है। ज्यादा मात्रा में कृत्रिम खाद डालने की वजह से नाइट्रेट भी अधिक पाया गया है। ज्यादा नाइट्रेट की वजह से ब्लू बेबी सिंड्रोम नामक बीमारी होती है। फ्लोराइड से फ्लोरोसिस की बीमारी के कारण दांतों में पीलापन और हड्डियों में कमजोरी आती है। पीएच अर्थात एच आईन की मात्रा 6.5-8.5 से ऊपर नीचे होने पर स्वाद कटु एवं यह पाचन तंत्र म्यूकस में ब्रेन को प्रभावित करता है। जंग लगने की संभावना बढ़ती है। इसी प्रकार ज्यादा टीडीएस सैलिनिटी हार्डनेस के कारण अपेक्षित स्वाद बिगड़ जाता है। पेट संबंधी बीमारियां हो जाती हैं और पाइपों में जंग की पपड़ी एवं परत बनती है। झाग नहीं बनने से कपड़े खराब होते हैं। भोजन की गुणवत्ता बिगड़ती है। चमड़ी पर बुरा प्रभाव पड़ता है। भारी पानी से ही गुर्दे में पथरी होती है कई गांव के पानी में हेपेटाइटिस बी या काला पीलिया की शिकायत मिली है।
पानी की शुद्धता के कुछ सरल उपाय
नरवाना खंड में गांव के पानी में टीडीएस के आधार पर स्वीकृत मानक 500 पीपीएम तथा अपेक्षित 2000 पीपीएम माना गया है। इसी आधार पर अपेक्षित अल्कलिनिटी 600 पीपीएम, कठोरता 600 पीपीएम, कैल्शियम 200 पीपीएम, मैग्नीशियम 75 पीपीएम, क्लोराइड 1000 पीपीएम, नाइट्रेट 100 पीपीएम माना गया है। इस क्षेत्र में उत्तम पानी नहर एवं रजवाहे के आसपास के क्षेत्र बडऩपुर, बेलरखा, भिखेवाला, दबलेन, बरटा, ढाबी टेक सिंह, धरोदी, डूमरखा कला एवं खुर्द फरेण कला, गुरुसर, गुरथली, हथो, नेपेवाला, नेहरा आदि गांव का है। मध्यम दर्जे का पानी अमरगढ़, अंबरसर, बदोवाला, भाणा ब्राह्मण, विधराणा, चक उझाना, दनोदा कलां व खुर्द, दाता सिंह वाला, धमतान, डिंडोली, ढाकल, धनोरी, फरेन खुर्द, गढ़ी, घासो कला, हरनामपुरा, इस्माइलपुर, जाजनवाला, जुलेहड़ा, कलोदा कला, कालवन, कान्हा खेड़ा, खानपुर, खरल, खरडवाल, कोयल, लोन, लोहचब, लोधर, मोहलखेड़ा, नरवाना अर्बन, नारायणगढ़, पदार्थ खेड़ा, फुलिया खुर्द, पीपलथा, राजगढ़ डोभी, रशीदा, रेवर, सच्चा खेड़ा, सेंथली, सिंगवाल, सुदकैन कला एवं खुर्द सुलेहड़ा, सुंदरपुरा एवं उझाना आदि गांव का है। भारी पानी घासो खुर्द, फुलिया कला, हमीरगढ़, हंसडहर, करमगढ़, सीसर आदि गांव का है। इनमें टीडीएस 1000 से 1200 के बीच में है। कुल मिलाकर के नरवाना क्षेत्र का पानी पशु- पक्षी एवं खेती-बाड़ी के लिए अच्छा है। फ्लोराइड की मात्रा मानक स्तर से ज्यादा 2.0पीपीएम, चक उझाना, धमतान, धरोदी, हमीरगढ़, हंसडहर जुलहेड़ा, कान्हा खेड़ा, करमगढ़, खरल, मोहलखेड़ा, सिंगवाल, सुंदरपुरा में है। इसका समाधान पहले पानी को तांबा, कासी एवं पीतल के बर्तन में डालने से टीडीएस भी कम हो जाएगी और सल्फेट, नाइट्रेट, फास्फेट व फ्लोराइड की मात्रा भी कम हो जाएगी। फिर इस पीने के पानी को मिट्टी के बर्तन में डालने से पानी की गुणवत्ता में काफी सुधार आ जाएगा।
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