श्रीमद्भगवद्गीता से क्रन्तिकारियों ने दृढ़ इच्छाशक्ति एवं आत्मबल प्राप्त किया: डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र
सफीदों, महाबीर मित्तल
भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग है। भारत की धरती के जितनी भक्ति और मातृ-भावना उस युग में थी, उतनी कभी नहीं रही। मातृभूमि की सेवा और उसके लिए मर-मिटने की जो भावना उस समय थी, वह श्रीमद्भगवद्गीता से प्रेरित थी। यह विचार अंतरराष्ट्रीय श्रीमद्भगवद्गीता जयंती समारोह-2021 एवं भारतीय आजादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में मातृभूमि सेवा मिशन द्वारा आयोजित अठारह दिवसीय कार्यक्रम के नवम दिवस भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में श्रीमद्भगवद्गीता की भूमिका विषय पर गुरुकुल कालवा, जींद में आयोजित गीता संवाद कार्यक्रम में मातृभूमि सेवा मिशन के संस्थापक डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने बतौर मुख्य अतिथि व्यक्त किये। गीता संवाद कार्यक्रम का शुभारंभ ब्रम्हचारियो ने वैदिक मंत्रों के सस्वर उच्चारण से किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता गुरुकुल कालवा के आचार्य राजेन्द्र ने की। कार्यक्रम में गुरुकुल के ब्रह्मचारियों ने ने देशभक्ति से ओतप्रोत रचनायें प्रस्तुत कर वातावरण की देशभक्तिमय कर दिया। डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती ने आजादी के आंदोलन में सर्वप्रथम स्वदेशी एवं स्वराष्ट्र का उदघोष किया। स्वामी दयानंद कृत सत्यार्थ प्रकाश से क्रांतिकारियों भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में महत्त्वपूर्ण प्रेरणा प्राप्त की। श्रीमद्भगवद्गीता से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में क्रन्तिकारियों ने दृढ़ इच्छाशक्ति एवं आत्मबल प्राप्त किया।
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डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा स्वतंत्रता आंदोलन भारतीय इतिहास का वह युग है, जो पीड़ा, कड़वाहट, दंभ, आत्मसम्मान, गर्व, गौरव तथा सबसे अधिक शहीदों के लहू को समेटे है। स्वतंत्रता के इस महायज्ञ में समाज के प्रत्येक वर्ग ने अपने-अपने तरीके से बलिदान दिए। इस स्वतंत्रता के युग में साहित्यकार और लेखकों ने भी अपना भरपूर योगदान दिया। अंग्रेजों को भगाने में कलमकारों ने अपनी भूमिका बखूबी निभाई। क्रांतिकारियों से लेकर देश के आम लोगों तक के अंदर लेखकों ने अपने शब्दों से जोश भरा। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए गुरुकुल कालवा के आचार्य राजेन्द्र ने कहा कि आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती आधुनिक भारत के महान चिंतक, समाज सुधारक और देशभक्त थे। मातृभूमि भारत को गुलामी से मुक्ति का उपाय संपूर्ण भारतीयों की एक ही सोच हो और वह हो वेदों पर आधारित है। स्वामी दयानंद ने देश के स्वतंत्रता आंदोलन की 1857 में हुई क्रांति में महत्वपूर्ण योगदान दिया। भगतसिंह, आजाद भी स्वामीजी से प्रेरित थे। लोकमान्य तिलक ने भी उन्हें स्वराज का पहला संदेशवाहक कहा था। गीता संवाद कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में रामपाल आर्य, रामनिवास दूहन उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन आचार्य भीमदेव ने किया। कार्यक्रम में गुरुकुल के समस्त आचार्य एवं ब्रह्मचारियों सहित अनेक सामाजिक, धार्मिक एवं आध्यात्मिक संस्थाओं के प्रतिनिधि जन उपस्थित रहे। कार्यक्रम में गुरुकुल कालवा की ओर से मातृभूमि सेवा मिशन के संस्थापक डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र को अंग वस्त्र एवं स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम का समापन शांति पाठ से हुआ।
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