सत्यखबर, चंडीगढ़। कैप्टन अमरिंदर सिंह ने पार्टी में लंबे समय से चली आ रही अंदरूनी कलह के बाद शनिवार को इस्तीफा दे दिया. कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अपने इस्तीफे के बाद कहा कि उन्हें ‘अपमानित’ महसूस हुआ. जिसके बाद उन्होंने ये कदम उठाया. कैप्टन अमरिंदर ने कहा कि वो राज्य कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू को विधानसभा चुनाव में अगले सीएम या पार्टी के चेहरे के रूप में स्वीकार नहीं करेंगे. हालांकि सीएम की कुर्सी से हटना कैप्टन करियर में का पहला इस्तीफा नहीं है.
आपको बता दें कि कैप्टन अमरिंदर द्वारा शनिवार को दिया गया ये इस्तीफा, उनके राजनीतिक सफर का चौथा इस्तीफा था. पिछले तीन इस्तीफे बताते हैं कि कैप्टन अपने इस्तीफों के बाद और अधिक शक्तिशाली बनकर उभरे हैं. पूर्व मुख्यमंत्री इस राजनीतिक शतरंज के माहिर खिलाड़ी रहे हैं और अपने दांव खेलना वो अच्छे से जानते हैं.
कैप्टन का पहला इस्तीफा
अमरिंदर सिंह पहली बार 1980 में सांसद बने थे और पंजाब के मुद्दे को सुलझाने के लिए बातचीत में शामिल हुए थे. हालांकि, ऑपरेशन ब्लू स्टार हुआ और सिंह ने गांधी परिवार के करीबी दोस्त होने के बावजूद पार्टी और संसद से इस्तीफा दे दिया. उनका यह कदम गांधी के पक्ष में काम करता रहा. दो दशकों तक पंजाब कांग्रेस के मामलों में प्रमुख रहे. वह पार्टी की राज्य इकाई में एक बड़े नेता रहे.
कैप्टन का दूसरा इस्तीफा
अमरिंदर सिंह, शिरोमणि अकाली दल (SAD) में चले गए और 1985 में सुरजीत सिंह बरनाला की सरकार में मंत्री भी बने. उन्होंने सात महीने बाद कैबिनेट से उस वक्त इस्तीफा दे दिया जब पुलिस बरनाला के आदेश पर दरबार साहिब में दाखिल हुई. इस कदम ने अमरिंदर को एक सिख नेता के रूप में उभारा. यह कदम भी अमरिंदर के लिए कारगर सिद्ध हुआ. अमरिंदर 1995 के चुनाव में अकाली दल (लोंगोवाल) के टिकट पर राज्य विधानसभा में पहुंचे थे.
कैप्टन का तीसरा इस्तीफा
साल 1984 में हुआ ऑपरेशन ब्लू स्टार और बरगारी बेअदबी मामला शिअद और कांग्रेस के लिए बारी-बारी से संकट की वजह बना. लेकिन कैप्टन अमरिंदर सिंह इन दो घटनाओं के बाद बाहर निकलने के बाद एक बड़े नेता के रूप में उभरे. रिपोर्ट्स के अनुसार केवल सिखों के बीच अमरिंदर की स्वीकृति की वजह से साल 1999 में कांग्रेस पंजाब में पुनर्जीवित हो पाई. पार्टी सिखों के लिए अछूत हो गई थी लेकिन अमरिंदर, पंजाब में कांग्रेस के दोबारा लौटने की वजह बने. कांग्रेस में वापसी के बाद वह पहली बार 2002 से 2007 तक मुख्यमंत्री रहे थे और इस दौरान उनकी सरकार ने 2004 में पड़ोसी राज्यों से पंजाब के जल बंटवारा समझौते को समाप्त करने वाला राज्य का कानून पारित किया.
अमरिंदर सिंह ने 2014 का लोकसभा चुनाव अमृतसर से लड़ा था और भाजपा के अरुण जेटली को एक लाख से अधिक मतों के अंतर से हराया था. इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने सतलुज-यमुना लिंक नहर समझौते को समाप्त करने वाले पंजाब के 2004 के कानून को असंवैधानिक बताया तो सिंह ने संसद की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. कुछ दिन बाद उन्हें पंजाब में विधानसभा चुनाव से पहले राज्य इकाई का प्रमुख बनाया गया. इसके बाद उन्होंने साल 2017 के चुनाव में 117 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस को जबरदस्त जीत दिलाई. वह फिर दूसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री बने और इस तरह उन्होंने दिल्ली से बाहर अपनी जड़ें जमाने की कोशिश कर रही आम आदमी पार्टी के सपनों को ध्वस्त कर दिया.
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इतिहास के आईने में देखें तो हर बार जब सिंह ने इस्तीफा दिया तो वह और अधिक मजबूत हुए. जब भी उनकी पार्टी कमजोर हुई तो ठीक उसी वक्त अमरिंदर और ताकतवार बने. अपने इस्तीफे के बाद अमरिंदर ने संकेत दिया कि वह राजनीति नहीं छोड़ेंगे. उन्होंने कहा, ‘मैंने आज ही इस्तीफा दिया है, लेकिन राजनीति में विकल्प हमेशा होते हैं. असीमित विकल्प हैं और हम आगे देखेंगे कि क्या होगा. मेरे 52 साल के लंबे कार्यकाल में मेरे सहयोगी हैं. मैं संसद, विधानसभा और पार्टी दोनों में अपने सहयोगियों के साथ चर्चा करूंगा.’
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