सत्यखबर दिल्ली (ब्यूरो रिपोर्ट) – विकास की राजनीति बनाम प्रोपेगेंडा की राजनीति
2015 के मुकाबले दिल्ली सरकार के स्कूलों का दसवीं कक्षा का पास प्रतिशत 2019 में 95.81% से घटकर 71.58% हो गया। दूसरी ओर, इसी अवधि में केन्द्रीय विद्यालय ने अपने परिणामों में सुधार करते हुए पास प्रतिशत को 99.59% से बढ़ाकर 99.79% करने में सफलता हासिल की
2019 में 28.42% दिल्ली सरकार के स्कूलों में पढ़ने वाले दसवीं कक्षा के छात्र परीक्षा में असफल रहे, जबकि केवी में यह आंकड़ा सिर्फ 0.21% था।
2018-19 में कक्षा नौवीं, दसवीं, ग्यारहवीं और बारहवीं में असफल रहे कुल 1,55,436 छात्रों में से केवल 52,582 को ही उसी कक्षा में पुन: दाखिला मिल पाया।एक वर्ष की अवधि में कुल 1,02,854 छात्र दिल्ली सरकार के स्कूलों के नकारात्मक रवैये की वजह से शिक्षा प्रणाली से बाहर हो गए।
बारहवीं कक्षा के 0.84% से भी कम छात्र दिल्ली विश्वविद्यालय के विभिन्न पाठ्यक्रमों में दाखिला ले सकते है
दिल्ली सरकार के स्कूलों में 51% से अधिक स्थायी शिक्षकों के पद रिक्त है, जबकि एमसीडी स्कूलों में 88.9% पद स्थायी शिक्षकों द्वारा भरे गए हैं।
दिल्ली सरकार के अंतर्गत चलने वाले 71% स्कूलों में विज्ञान विभाग नहीं है, और जिन स्कूलों में यह विभाग हैभीउनमें से केवल एक-तिहाई में ही जीवविज्ञान प्रयोगशालाएं हैं। दिल्ली सरकार के 73% स्कूलों में vocational streamकी पढ़ाई नहीं होती है।
‘आप’ के नेतृत्व वाली सरकार ने 500 नए स्कूलों के निर्माण का वादा किया था, लेकिन अभी तक एक भी नए स्कूल के निर्माण कार्य प्रारंभ नहीं हुआ है।
केन्द्रीय विद्यालयों में 1515 स्मार्ट कक्षाएं और एमसीडी स्कूलों में 50% से अधिक स्मार्ट कक्षाओं को चलाया जा रहा हैं। लेकिन रिपोर्ट में आरटीआई से प्राप्त जानकारी से पता चलता है कि दिल्ली के लगभग किसी भी स्कूल में स्मार्ट क्लास का प्रावधान नहीं किया गया हैं।
शिक्षा प्रणाली में सुधार दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार के प्रचार का प्रमुख बिंदु रहा है। इस पृष्ठभूमि में यह उचित है कि दिल्ली सरकार के स्कूलों में शिक्षा को बेहतर बनाने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदमों के संदर्भ में प्रशासनिक अधिकारियों की जवाबदेही को भी तय किया जाए। लोक नीति शोध केंद्र ने आज इस संदर्भ को केंद्र में रखाकर एक रिपोर्ट प्रकाशित की है, जिसमें शिक्षा तंत्र में दिल्ली सरकार के प्रदर्शन पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
डॉ. विनय सहस्रबुद्धे (राज्यसभा सदस्य, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष-भाजपा, निदेशक-पीपीआरसी) एवं डॉ. सुमीत भसीन (निदेशक-पीपीआरसी) ने आज एक मोनोग्राफ जारी किया ‘विकास की राजनीति बनाम प्रोपेगेंडा की राजनीति’ दिल्ली सरकार के स्कूल बनाम एमसीडी स्कूलों एवं केंद्रीय विद्यालयों में शिक्षा का तुलनात्मक विश्लेषणसाथ में श्याम जाजू (राष्ट्रीय उपाध्यक्ष-भाजपा) एवं मनोज तिवारी (अध्यक्ष- भाजपा दिल्ली प्रदेश), मिनाक्षी लेखी (सांसद- नई दिल्ली), प्रवेश वर्मा (सांसद, पश्चिमी दिल्ली) एवं गौतम गंभीर (सांसद पूर्वी दिल्ली)उपस्थित रहे।
डॉ भसीन ने एक PPT के माध्यम से प्रारंभिक टिप्पणी की जिसमें उन्होंने केंद्र सरकार द्वारा संचालित केंद्रीय विद्यालयों, एमसीडी द्वारा संचालित स्कूलों एवं दिल्ली सरकार के स्कूलों में तीन मुख्य विषयों: बुनियादी ढांचे, प्रक्रियाओं और परिणामों की तुलना अध्यन्न किया जिसमे पाया गया की दिल्ली सरकार के स्कूलों की स्थिति बहुत चिंता जनक है। उन्होंने आगे कहा की इस रिसर्च में पाया गया कि दिल्ली के सरकारी स्कूल स्पष्ट रूप से तीन विषयों में पिछड़े हुए है।
डॉ. सहस्रबुद्धे ने 2015 से लगातार दिल्ली सरकार के स्कूलों में दसवीं कक्षा के छात्रों के उत्तीर्ण प्रतिशत पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि 2015 के मुकाबले दिल्ली सरकार के स्कूलों का दसवीं कक्षा का पास प्रतिशत 2019 में 95.81% से घटकर 71.58% हो गया। दूसरी ओर, उन्होंने कहा कि इसी अवधि में केन्द्रीय विद्यालय ने अपने परिणामों में सुधार करते हुए पास प्रतिशत को 99.59% से बढ़ाकर 99.79% करने में सफलता हासिल की, जो उत्कृष्टता के नए मापदंडों को स्थापित करता है।
श्याम जाजू जी ने सभी का ध्यान इस ओर आकर्षित किया कि दिल्ली सरकार के स्कूलों में 51% से अधिक रिक्त पदों पर स्थायी शिक्षकों को नियुक्त नहीं किया जा सका है। जबकि एमसीडी स्कूलों में 88.9% पद स्थायी शिक्षकों द्वारा भरे गए हैं । यह बात शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार को लेकर ‘आप’ सरकार गैर जिम्मेदाराना रवैये को दर्शाता है।
दिल्ली सरकार के स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों के भविष्य को लेकर चिंता व्यक्त करते हुए प्रवेश वर्मा जी ने कहा कि बारहवीं कक्षा के मात्र 0.84% से भी कम छात्र दिल्ली विश्वविद्यालय के विभिन्न पाठ्यक्रमों में दाखिला ले सकते है। यह दिल्ली सरकार के स्कूलों की खराब शिक्षा प्रणाली को दर्शाता है। उन्होंने आगे कहा कि इस बारहवीं कक्षा के 42.83% छात्रों ने परीक्षाओं में 60% से कम अंक हासिल किए।
छात्रों के ड्रॉपआउट दर में दर्ज किए गए खतरनाक रुझान पर मनोज तिवारी ने कहा कि 2015-16 में जहां नौवीं कक्षा में 2,88,094 छात्रों ने दाखिला लिया था, उसमें से केवल 1,30,136 छात्र अंततः 2018-19 में बारहवीं कक्षा तक पहुंच पाए। इसका मतलब यह है कि दिल्ली सरकार के स्कूलों में नवमी कक्षा में दाखिल हुए छात्रों में 55% छात्र बारहवीं कक्षा तक भी नहीं पहुंच पाते है। और 40% छात्र यानी 1,16,149 छात्र दसवीं कक्षा में पहुंचने में असफल रहे।
स्कूलों में पुन:दाखिले की स्थिति पर बोलते हुए मिनाक्षी लेखी ने कहा कि 2018-19 में कक्षा नौवीं, दसवीं, ग्यारहवीं और बारहवीं में असफल रहे कुल 1,55,436 छात्रों में से केवल 52,582 को ही उसी कक्षा में पुन: दाखिला मिल पाया। यह वास्तव में गंभीर चिंता का विषय है कि एक वर्ष की अवधि में कुल 1,02,854 छात्र दिल्ली सरकार के स्कूलों के नकारात्मक रवैये की वजह से शिक्षा प्रणाली से बाहर हो गए। इसी तरह सरकार अपना पास प्रतिशत दुरूस्त करने के चक्कर में लाखों छात्रों को हर साल शिक्षा तंत्र से बाहर करती आ रही है।
दिल्ली के स्कूलों में खेल सुविधाओं के विषय में नाराजगी जताते हुए गौतम गंभीर ने कहा कि AAP सरकार के पाँच साल बाद भी, खेल में रुचि रखने वाले स्कूली छात्रों को प्रशिक्षण और अभ्यास के लिए मैदानों के लिए संघर्ष करना पड़ता है। यह स्थिति किसभी हालत में स्वीकरणीय नहीं है।
यह रिपोर्ट प्रमाणिक साक्ष्य के साथ यह निष्कर्ष निकालती है कि साल 2015 के बाद से दिल्ली सरकार के स्कूल में सभी मापदंडों को लेकर लगातार गिरावट देखी गई है, फिर चाहे वह बुनियादी ढाँचा हो, प्रक्रियाएँ हों या परिणाम हों। जो केंद्र सरकार और एमसीडी द्वारा चलाए जा रहे विद्यालयों के एकदम विपरीत है, जहां ये स्कूल इन सभी मानकों में दिल्ली सरकार के स्कूलों के मुकाबले निर्णायक रूप से उत्कृष्ट प्रदर्शन करते हुए नजर आते है।
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