सत्य खबर, नारायणगढ़, (सरिता धीमान)। राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय नारायणगढ़ में प्राचार्य संजीव कुमार के मार्गदर्शन में अंग्रजी विभाग तथा आईक्यूएसी के संयुक्त तत्वावधान में अनुवाद : मुद्दे एवं चुनौतियां विषय पर एक दिवसीय ऑन लाइन वर्कशॉप आयोजित की गई। इस कार्यक्रम में विषय विशेषज्ञ प्रो. डा. अशोक वर्मा विभागाध्यक्ष अंग्रजी विभाग, बी.पी.एस. महिला विश्वविद्यालय खानपुर कलां सोनीपत मौजूद रहे। इस कार्यक्रम के अध्यक्ष प्रो. शुभम तथा समंवयक प्रो. अनिल सैनी ने मुख्य वक्ता का स्वागत किया। स्वागत सत्र के दौरान प्राचार्य संजीव कुमार ने अनुवाद की प्रकृति की चुनौतियों और जटिलताओं पर प्रकाश डालते हुए कहा की अनुवाद अपने कलेवर से सरल तथा आंतरिक रूप से एक जटिल प्रक्रिया है। प्रो. डा. अशोक वर्मा ने विषय उद्घाटन करते हुए अनुवाद के स्वरूप पर प्रकाश डालते हुए कहा कि अनुवाद सुंदर तो है परंतु भरोसेमंद नहीं है। यह एक विशिष्ट कला है जो सतत: अभ्यास से अपेक्षित है। अनुवाद की तीन किस्में शब्दानुवाद , भावानुवाद तथा गतिशील अनुवाद है। इनमें से गतिशील अनुवाद ही मूल रचना के अधिक निकट होता है। इसने अनुवादक को विषयानुरूप अपने भावों को प्रकट करने की स्वतंत्रता मिल जाती है। अनुवादक को मूल लेखक की भांति शब्दों के बंधन में बांधना उचित नहीं है। अनुवाद कार्य के दौरान मूल भाव पर अधिक बल दिया जाता है अपितु शब्दों का अनुवाद रचना की प्रक्रिया में बाधा बन जाता है। इसलिए अनुवाद में भावों को हू-ब-हू व्यक्त करना है और शब्द जो स्थानीय अर्थ युक्त होते हैं , पर कम बल दिया जाता है। इस संदर्भ में हम काव्यांश का उदाहरण ले सकते हैं।
रामायण जैसे महाकाव्य अनुवाद कार्य से ही हमारे सामने आते हैं। अनुवाद का आरम्भ आधुनिक काल में एक विधा के रूप में प्रचलन में आया है जिससे आज हम दक्षिण भारतीय साहित्य से भक्ति तथा पाश्चात्य साहित्य द्वारा महान विचारकों को जान पाना सम्भव हुआ है। कार्यक्रम के दूसरे सत्र में विषय विशेषज्ञ द्वारा कुछ काव्य पंक्तियां अनुवाद के लिए दी गई जिनका प्रतिभागियों द्वारा अनुवाद किया गया। पाया गया कि सभी का अनुवाद भिन्न था। इसका कारण क्षेत्रीय सांस्कृतिक मूल्य था। सामान्यत: जब हम अनुवाद करते हैं तो अपने सांस्कृतिक विचारधारा तथा क्षेत्रीय प्रभाव से प्रभावित हो जाते हैं। इस त्रुटि की सतत: अभ्यास तथा अनुभव द्वारा ही सिद्ध किया जा सकता है। अत: अनुवाद कार्य एक सहज ज्ञानयुक्त एवं रचनाशील अनुभव है। ये एक चुनौतिपूर्ण परन्तु पावन कार्य है। अनुवादक को व्यक्तिगत विचारों से इतर इस यज्ञ का निर्वाह करना होता है। इस अवसर पर प्रो. जोगा सिंह , प्रो. सुभाष कुमार , प्रो. सीमा , प्रो. गुरप्रीत सिंह , प्रो. सतीश , प्रो. स्वर्णजीत सिंह , प्रो. मोहम्मद रफी , डा. प्रवीण कुमार मौजूद थे।
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