सत्य खबर, नारायणगढ़, (सरिता धीमान)। राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय नारायणगढ़ में आजादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में प्राचार्य संजीव कुमार के मार्गदर्शन में हिन्दी विभाग द्वारा भक्ति साहित्य में मानवतावाद विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की गई। संगोष्ठी में प्रमुख वक्ता के तौर पर प्रो. डा. अशोक कुमार पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ मौजूद रहे। कार्यक्रम के अध्यक्ष प्रो. मोहम्मद रफी तथा संचालिका प्रो. डा. आशा ने संगोष्ठी में मौजूद विद्वानों का स्वागत किया। प्राचार्य संजीव कुमार ने मुख्य वक्ताओं का स्वागत करते हुए कहा कि भक्ति साहित्य को जीवन में अपनाकर सामाजिक तथा आध्यात्मिक जीवन को सफल बनाया जा सकता है। डा. अशोक कुमार ने विषय का बीजारोपण करते हुए कहा कि भक्ति साहित्य हमारे जीवन का अभिन्न अंग है और भक्ति की अवधारणा सैंकड़ों वर्षों पुरानी है जो आज भी प्रासंगिक बनी हुई है। भक्ति काल के कवियों के विचार तद्युगीन संदर्भ में विचारणीय है। मनुष्य को अपने दृष्टिकोण को विस्तृत करने की आवश्यकता है। मनुष्य सृष्टि की सर्वश्रेष्ठ कृति है। भक्ति साहित्य आधुनिक दूषित वातावरण में हमारा मार्गदर्शन कर सकता है।
स्वागत सत्र के अध्यक्ष पूर्व प्राचार्य प्रो. ओम प्रकाश करुनेश ने कहा कि भक्ति साहित्य की विचारधारा आज के समय की मांग है। हमारे इतिहास के महानायक विचारक एवं समाज सुधारक ही हमारे आदर्श हैं। संत कवि तुलसीदास जी ने जैसे बेगमपुरा की परिकल्पना की थी वो आज भी प्रासंगिक है। वर्तमान समय की विसंगतियों, भेद भाव, ऊँच नीच की समस्याओं को महापुरुषों के जीवन का अनुसरण आवश्यक बन जाता है। जो समाज को एकता अखंडता और दया का संदेश देता है। डा. विजय शर्मा ने कहा जैसे आदर्श विचारों में रहेंगे वैसा ही आदर्श जीवन प्राप्त किया जा सकता है। भक्ति साहित्य हमें मानवतावाद की प्रेरणा देता है। ये हमें तत्व एवं आलोकिक दृष्टि प्रदान करता है। अपने भीतर की बुराइयों के दमन करके ही एक सभ्य व्यक्ति का निर्माण सम्भव है। तकनीकी सत्र के अध्यक्ष प्रो. डा. निर्मल सिंह ने सभी पत्र प्रस्तुत कर्ताओं के विचारों का अध्ययन किया और उनके विचारों को संश्लेषित रूप में सबके सामने रखा। प्रो. डा. मनजीत कौर ने भक्ति काल और मानवतावाद में कोई अंतर नहीं है। दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। आदर्श विचारहीन व्यक्ति मानवतावादी गुणों से युक्त नहीं हो सकता।
अंत में समापन सत्र के दौरान वरिष्ठ आचार्य डा. सुभाष चंद्र हिन्दी विभाग कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय कुरूक्षेत्र ने समग्र संगोष्ठी को समेटते हुए कहा की भक्ति साहित्य के अध्ययन भावी पीढ़ी की आवश्यकता बनती जा रही है। जहां समाज में इतने दोष पनप चुके हैं। भिन्न भिन्न प्रकार के मत मतांतरों का जन्म हो चुका है। भक्ति के स्थापकों ने कभी नहीं चाहा होगा की लोग उनके विचारों पर ही बंट जाएं। कालिदास के एक सूत्र का हवाला देते हुए कहा कि ना तो सभी पुराने अच्छे हैं और ना ही सभी नये बुरे हैं। फर्क सिर्फ दृष्टिकोण का है। भक्ति साहित्य सत्य अनुभव और आचरण पर आधारित है। इस अवसर पर प्रो. जोगा सिंह, प्रो. सुभाष कुमार, प्रो. संजीव अग्रवाल, डा. रीमा, डा. राजीव, प्रो. स्वर्णजीत सिंह, प्रो. प्रवीण कुमार, प्रो. दविन्द्र सिंह, प्रो. परवीन कत्याल, डा. नीलू, प्रो. राजेंद्र कुमार व प्रो. मनजीत कौर मौजूद थे।
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