सत्यखबर, जींद,अशोक छाबड़ा
पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि फोन पर बात करते हुए किसी के लिए जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल करना एससी-एसटी के तहत अपराध नहीं माना जा सकता। हाईकोर्ट ने कहा कि यदि कोई व्यक्ति किसी जाति को लेकर टिप्पणी करता है,जिसे लोगों के बीच उस वर्ग को नीचा दिखाने के लिए नहीं किया गया है तो उससे एससी-एसटी एक्ट के तहत अपराध मान लेने के लिए पर्याप्त साक्ष्य नहीं माना जा सकता। कुरुक्षेत्र निवासी संदीप और प्रदीप ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा कि सरपंच राजेंद्र कुमार ने उन दोनों के खिलाफ अपनी जाति को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी करने संबंधी जो शिकायत दी थी कि वह आधारहीन है। जबकि सरपंच राजेंद्र के अनुसार संदीप और प्रदीप ने देवीदयाल से फोन पर उसके खिलाफ टिप्पणी की थी और देवीदयाल ने दोनों को टिप्पणी करने से रोका,लेकिन वे रुके नहीं।
याचिकाकर्ताओं की तरफ से कहा गया कि उनके पिता ने धर्मशाला के निर्माण में होने वाले 7 लाख रुपये के खर्च को लेकर आवाज उठाई थी,जिसके चलते उन दोनों के खिलाफ इस प्रकार की शिकायत दी गई है। हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद कहा कि फोन कॉल पर दो व्यक्तियों के बीच की बातचीत के दौरान की गई टिप्पणी,जिनका जनसाधारण गवाह न हो,वह एससी-एसटी एक्ट के तहत अपराध की श्रेणी में नहीं आती है। किसी को नीचा दिखाने की इच्छा से लोगों के बीच बोले गए शब्द ही अपराध की श्रेणी में आते हैं। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट से कहा कि जब उसके समक्ष इस अपराध को लेकर दो पक्ष मौजूद हैं और अदालत के सामने कोई शब्द लोगों के बीच किसी को नीचा दिखाने के लिए जानबूझकर नहीं कहे गए हों तो वह किसी को अपराधी साबित करने और उसे सजा देने के लिए पर्याप्त नहीं है।
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