सत्य खबर, अंबाला, राजकुमार शर्मा
कहते है की अगर मन में कुछ करने का इरादा हो तो इंसान कुछ भी कर सकता है| तस्वीरों में दिखाई दे रहा अंबाला के जनसुई का ये सरकारी स्कूल जो आपको चमकता दमकता सा दिखाई दे रहा है, ये पहले ऐसा नहीं था, ना तो यहां पर पहले ये बाग बगीचे थे, ना ऐसी खुबसूरत दीवारें और ना ही कोई खास सुविधा। आलम तो ये था कि स्कूल की हालत को देखकर कोई बुलाने पर भी नहीं आता था लेकिन फिर स्कूल की कार्यवाहक प्रिंसिपल और ग्रामीणों की मेहनत रंग लाई और शिक्षा का ये मंदिर एक बार फिर से जी उठा है। इस स्कूल में बच्चों के लिए लाइब्रेरी की सुविधा है, ये सुंदर पार्क है और स्कूल की खुबसूरती को चार चांद लगाती ये पेंटिंग की गई दीवारें भी हैं। बात करे तो ये सरकारी स्कूल किसी निजी स्कूल से कम नहीं|
स्कूल में आयी नई प्रिंसिपल मीणा सब्रवाल ने जब स्कूल की हालत देखी तो दंग रह गई| बड़ी बात तो ये है कि कोरोना काल में इस स्कूल की ग्रांट तक वापिस चली गई थी लेकिन अध्यापकों और यहां के ग्रामीणों के हौंसलें बुलंद थे| लिहाजा हर किसी ने दिल खोल पर अपनी तरफ से स्कूल के लिए चंदा दिया और स्कूल की दशा और दिशा ही बदल कर रख दी। स्कूल की प्रिंसिपल ने अपने पास से 7 लाख रूपये लगाए और 6 लाख रूपये गांव वालों ने इकठ्ठा करके स्कूल की काया ही बदल दी| प्रिंसिपल की माने तो स्कूल के नाम पर केवल जंगल ही था उन्होंने कहा की हमने धीरे धीरे स्कूल की दशा सुधारने का काम शुरू किया पर इतना आसान नहीं था| हमने गांव वालों को बुलाकर बात की पर किसी नए बन्दे पर इतनी जल्दी विश्वास करना बहुत मुश्किल होता है उन्होंने बताया की स्कूल में फेस लिफ्टिंग की ग्रांट 70 हज़ार रुपये आयी थी उसके साथ ही पुरे स्टाफ ने मिलकर शुरुआत की उसके बाद गाँव वालों का साथ मिला और स्कूल की काया ही बदल गई अब ये स्कूल किसी निजी स्कूल से कम नहीं है|
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इरादा तो बुलंद था ही लिहाजा कितनी भी मुश्किलों के बावजूद किसी ने भी हार नहीं मानी। आखिर बच्चों के भविष्य का सवाल था। स्कूल अगर बंद हो भी जाता तो इसका सीधा असर बच्चों की जिंदगी पर ही पड़ता। बस फिर क्या था ग्रामीणों और अध्यापकों ने पक्का इरादा किया और देखते ही देखते स्कूल की रंगत ही बदल कर रख दी। इन सभी के नेक इरादों के लिए एक ही कहावत दिल से याद आती है कि जब इरादा कर ही लिया उंची उड़ान का, तो फिर कद देखना फिजूल है आसमानों का।
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