सत्यखबर, दिल्ली
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह के दिल्ली आने के बाद भाजपा के लिए एक बात जरूर कही जा रही थी कि पार्टी में जाति और धर्म के आधार पर गणित की कोई जगह नहीं है। शुरुआत में हमने इसका अच्छा खासा उदाहरण भी देखा। लेकिन अब इसमें बदलाव देखने को मिलने लगा है। भाजपा ने इस साल अचानक 5 मुख्यमंत्रियों का परिवर्तन कर दिया। हाल में हुए बदलाव से एक बात का भी संकेत साफ तौर पर देखने को मिल रहा है कि भाजपा का हृदय परिवर्तन हो गया है। ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि भाजपा ने पहले कई राज्यों में गैर प्रमुख जातियों के नेताओं को मुख्यमंत्री का पद सौंपा था। लेकिन पिछले दिनों जिस तरह से जातीय समीकरणों को साधने के लिए मुख्यमंत्री तय करते समय पार्टी ने जाति को जो महत्व दिया गया उससे ऐसा लग रहा है कि पार्टी अपनी रणनीति में बदलाव कर चुकी है। यही कारण रहा कि विधानसभा चुनाव से पहले कई राज्यों में पार्टी ने वहां के प्रमुख जाति के चेहरे को सीएम की कुर्सी पर बैठाया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह के दिल्ली आने के बाद भाजपा के लिए एक बात जरूर कही जा रही थी कि पार्टी में जाति और धर्म के आधार पर गणित की कोई जगह नहीं है। शुरुआत में हमने इसका अच्छा खासा उदाहरण भी देखा। लेकिन अब इसमें बदलाव देखने को मिलने लगा है।
उदाहरण के तौर पर देखें तो हरियाणा जैसे जाट बहुल प्रदेश में गैर जाट मनोहर लाल खट्टर को मुख्यमंत्री बनाया गया। गुजरात में जैन समुदाय से आने वाले विजय रूपाणी को सत्ता की चाबी सौंपी गई। वैसे ही महाराष्ट्र में ब्राह्मण नेता देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री बनाया गया जबकि वहां मराठाओं का बोलबाला रहा है। साथ ही साथ हम झारखंड का भी उदाहरण लेते हैं जहां एक गैर आदिवासी समुदाय से आने वाले रघुवर दास को मुख्यमंत्री बनाया गया। हालांकि अब लगता है कि पार्टी अपनी इस रणनीति में करेक्शन कर रही है। हाल फिलहाल में मुख्यमंत्रियों को बदलने में इसकी झलक देखने को मिली है। गुजरात में पार्टी ने चुनाव से ठीक 1 साल पहले विजय रूपाणी को हटाकर भूपेंद्र पटेल को सीएम बनाया है। भूपेंद्र पटेल उस पाटीदार समुदाय से आते हैं जिसका आंदोलन 2016 में अपने चरम पर था। हालांकि तब विजय रूपाणी को सीएम बना कर भाजपा ने कड़ा संदेश जरूर दिया था। लेकिन 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को बड़ा नुकसान झेलना पड़ा। यही कारण है कि अब पाटीदारों को साधने के लिए भूपेंद्र पटेल को मुख्यमंत्री बनाया गया है। उत्तराखंड में भी हमने देखा कि पहले त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटाकर तीरथ सिंह रावत को भाजपा ने मुख्यमंत्री बनाया। लेकिन जब फिर उन्हें हटाने की नौबत आई तो प्रभुत्व वाली ठाकुर समुदाय से आने वाले पुष्कर सिंह धामी को नया मुख्यमंत्री बनाया गया। कर्नाटक में भी हमने यही उदाहरण देखा जब बीएस येदियुरप्पा को हटाकर प्रभावशाली लिंगायत समुदाय से आने वाले बसवराज बोम्मई को ही मुख्यमंत्री बनाया गया। सूत्र यह भी बता रहे हैं कि आने वाले दिनों में हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर और महाराष्ट्र के नेता प्रतिपक्ष देवेंद्र फडणवीस को भी पार्टी मुख्य भूमिका से हटा सकती है।
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इन दोनों नेताओं को भाजपा आलाकमान ने जातीय समीकरणों से परे जाकर मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपी थी। मनोहर लाल खट्टर पंजाबी समुदाय से आते हैं। वहीं देवेंद्र फडणवीस महाराष्ट्र में मराठा राजनीति के बीच फिट नहीं बैठ पा रहे। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो भाजपा अनुभवी नेताओं की बजाए नए नेताओं को आगे बढ़ाने की कोशिश में है। इसके जरिए पार्टी दो प्लान के तहत आगे बढ़ रही है। एक तो कि जिस नेता को आगे बढ़ाया जा रहा है वह राज्य की राजनीति में जातीय समीकरण पर पूरी तरह से फिट बैठता हो। इसके अलावा पार्टी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर ही सबसे ज्यादा भरोसा कर रही है। ऐसे में एक ओर जहां जातीय समीकरणों को साधने की कोशिश है तो दूसरी ओर चुनाव के मैदान में उतरने के लिए अभी प्रधानमंत्री का चेहरा सबसे भरोसेमंद है। साथ ही साथ मुख्यमंत्री का बदलाव कर पार्टी anti-incumbency को भी कहीं न कहीं काट रही है।
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