सत्यखबर, चढ़ीगढ़
राज्यसभा सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने खरीफ की फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी को नाकाफ़ी बताया है। उनका कहना है कि ये बढ़ोतरी स्वामीनाथन रिपोर्ट को तो ठेंगा दिखाती ही है, साथ ही बीजेपी के दोगुनी आय वाले वादे की हवा भी निकालती है। किसानों को हर तरह से प्रताड़ित करने के बाद अब सरकार के पास उन्हें थोड़ी राहत देने का मौक़ा था। लेकिन यहां भी सरकार ने अपनी किसान विरोधी नीति को आगे बढ़ाते हुए धान के रेट में महज़ 53 रुपये की बढ़ोतरी की। ये 3 प्रतिशत की भी बढ़ोत्तरी नहीं है। जबकि तेल की क़ीमत, खाद-बीज के भाव, लेबर की लागत, बुआई, कढ़ाई और ढुलाई की लागत में बेतहाशा इज़ाफ़ा हुआ है। किसान पर पड़ती महंगाई की मार को नज़रअंदाज़ करते हुए सरकार ने धान का रेट 1868 तय किया है। जबकि पिछले सीज़न में हुए धान घोटाले को देखते हुए आशंका है कि किसानों को ये रेट भी नहीं मिल पाएगा। इसलिए आज तमाम किसान इस मामूली बढ़ोतरी का विरोध कर रहे हैं। उनकी मांग है कि प्रदेश सरकार अपनी तरफ से उचित बोनस का ऐलान करे।
सांसद दीपेंद्र का कहना है कि फरवरी 2016 को बीजेपी ने ऐलान किया था कि 2022 तक उसकी सरकार किसानों की आय दोगुनी कर देगी। इस वादे को 4 साल बीत चुके हैं। जिस वक्त ये ऐलान किया गया था तब धान का रेट करीब 1500 रुपये प्रति क्विंटल था। अगर बीजेपी किसान की आय डबल करने के लिए प्रतिबध है तो उसे अगले साल तक धान का रेट कम से कम 3000 रुपये जमा महंगाई दर और लागत की बढ़ोतरी करना होगा। ये रेट 3300 से 3400 रुपये प्रति क्विंटल बनता है। साफ है कि अभी बीजेपी अपने वादे से कोसों दूर है। 2022 तक उसको पूरा करने के लिए वार्षिक कृषि विकास दर 14.86 फीसदी होनी चाहिए। लेकिन 7 जनवरी, 2020 को राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2019-20 में कृषि विकास दर का अनुमान महज़ 2.8% ही है। कोरोना की वजह से इसके और कम होने की आशंका है।
किसान संगठनों ने CACP और स्वामीनाथन रिपोर्ट का हवाला देते हुए एक रिपोर्ट जारी की है। उनके मुताबिक फसलों के दाम में नई बढ़ोतरी के बाद किसान को धान पर 632.50 रुपये/क्विंटल, कपास पर 1887.50 रुपये/क्विंटल, ज्वार पर 969.50 रुपये/क्विंटल, बाजरा पर 182.50/क्विंटल, मक्का पर 559/क्विंटल, रागी पर 849.50/क्विंटल और सूरजमुखी पर 1733.50 रुपये/क्विंटल का घाटा सहना पड़ेगा। दीपेंद्र हुड्डा की मांग है कि सरकार को इस घाटे और किसान की हालत का संज्ञान लेते हुए फसलों के रेट तय करने चाहिए।
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