सत्यख़बर ब्यूरो रिपोर्ट महेंद्रगढ़
यह शाश्वत सत्य है कि धरती पर रहने वाले व्यक्ति को भूकंप का डर नहीं लगता परन्तु ऊँची अट्टालिकाओं के बाशिंदों को एक मामूली सी कंपन भी हिला कर रख देती है। आजकल हमारे राव साहब भी कुछ इसी दौर से गुजर रहे हैं । पाटोदा जनसभा में अपने मन की बात खुलकर कहने के बाद भी उन्हें यह उम्मीद थी कि पार्टी उनके यह तेवर देखकर उनकी बातें ध्यान से सुनेगी और उनकी सभी राजनीतिक इच्छाओं की पूर्ति करेगी। परंतु वह यह आकलन करने में चूक गए कि यह वह पार्टी है जिसने पार्टी से ऊपर उठकर चलने वालों की कद काठी कभी नहीं देखी और पार्टी से ऊपर किसी व्यक्ति को जाने की इजाजत भी नहीं देती।
खैर अनुशासित कही जाने वाली इस पार्टी ने राव साहब को भी एक हल्का सा संकेत दिया और उनका नाम राष्ट्रीय कार्यकारिणी से गायब हो गया। बस फिर क्या था उन्होंने तो अपने स्वाभावानुसार एक बार फिर आपा खो दिया और पार्टी को अपनी शक्ति दिखाने के लिए आनन-फानन में अपने संसदीय क्षेत्र के नजदीकी गांव कसोला में बड़ा किसान सम्मेलन करने की घोषणा कर डाली। इस आयोजन से वह एक तरफ यह दिखाना चाहते थे कि जहाँ पार्टी को किसान संगठन आँख दिखा रहे हैं उन्हें वही किसान सम्मान दे रहे हैं और वह अभी भी किसानों में लोकप्रिय हैं।
उन्होंने इस बात को नजरअंदाज कर दिया कि पूरे अहीरवाल में किसान को पार्टी से कोई शिकायत नहीं है और किसान अपने काम में व्यस्त हैं और अपनी मेहनत और आत्मविश्वास के साथ क्षेत्र में शांति अमन बनाए हुए है। राव साहब इसी माहौल का फायदा उठाकर यह सारा श्रेय अपने ऊपर लेने के प्रयास में थे। परंतु सच्चाई बड़ी कठोर एवं कड़वी होती है जिसे व्यक्तिगत प्रयासों से बदली नहीं जा सकती। उनकी राजनीतिक व्याकुलता उन्हें इस बात का एहसास नहीं करवा पाई और वह भूल गए कि जिन किसानों से उन्हें सम्मान की अपेक्षा है वह उन्हीं की पूर्व सरकार के हाथों लुटे पिटे बैठे थे।
जब मानेसर के आसपास के किसानों की जमीन तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने अधिग्रहण का दबाव बनाकर प्राइवेट भू माफिया के हवाले की थी तब राव साहब उसी पार्टी के सांसद होते हुए भी मूकदर्शक बनकर सब कुछ देख रहे थे। वह इस बात को नहीं समझ पाए कि वह बात ज्यादा पुरानी भी नहीं है और उन शोषित किसानों की वही पीढ़ी अभी जिंदा है।अतः नतीजा वही हुआ। जिन किसानों की उम्मीद पर लंबे चौड़े दावे किए जा रहे थे वह नदारद मिले। वहाँ केवल गांव की गौशाला के सामूहिक भोज एवं रागनी एवं नृत्य के श्रोताओं व दर्शकों के बीच राव साहब को अपनी औपचारिकता निभानी पड़ी। अखबारों की खबर के अगले ही दिन ज्यों ही अश्लील गानों की वीडियो जनता के बीच आई तो स्वयं राव एवं उनके समर्थकों के लिए बड़ी असहज स्थिति पैदा हो गई। पूरे अहीरवाल में इस बात की चर्चा होने लगी कि रामपुरा हाउस के नुमाइंदों को भी अगर इस तरह भीड़ जुटाने की नौबत आ गई तो वास्तव में चिंता का विषय है।
परंतु सवाल यह उठता है कि आखिर यह सब करने की उनको जरूरत क्या थी ? पटोदा जनसभा में चाहे भीड़ अपेक्षा के अनुरूप ना रही हो परन्तु इस जनसभा ने राव साहब को अपने मन की वह बातें कहने का मौका दिया जो आमतौर पर एक राष्ट्रीय पार्टी के नेता कहने से बचते हैं। इतना कुछ होते हुए भी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष की उपस्थिति के बावजूद पार्टी नेतृत्व ने इस पर चुप्पी साधे रखी। राव साहब को इस बात से ही संतुष्ट हो जाना चाहिए था कि जिस काम के लिए उन्होंने इस जनसभा का आयोजन किया था वह उद्देश्य उनका पूरा हो गया था। परन्तु फिर एक बार उनके अहं ने उनको अपनी स्थिति का सही आकलन नहीं करने दिया और उन्हें इस असहज स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया।
वास्तविकता यह है कि राव साहब का नाम जब से राष्ट्रीय कार्यकारिणी से हटाया गया है तब से ही उनकी बेचैनी एवं परेशानी बढ़ रही है। परन्तु उनकी व्याकुलता यह है कि इस समय वह न तो पार्टी के विरुद्ध खड़े होने की स्थिति में हैं व न ही स्थिति से समझौता करने का उनका स्वभाव उन्हें इजाजत देता है। जिस अंदाज में उन्होंने पटोदा में मन की बात कही थी उसके अनुरूप न तो उनके पास जन समर्थन बचा है और न ही उनमें इतना साहस है कि 3 साल सत्ता को छोड़कर सड़क पर आने का कदम उठा सकें। जहां उन्होंने अपने अच्छे स्वास्थ्य का दावा किया था वहीं उनकी कमजोरी छुपी हुई है। उनको चाहे कोई शारीरिक व्याधि ना हो परन्तु राजनीति में पहलवानी से ज्यादा मजबूत गुर्दे की जरूरत है जिसके लिए हिम्मत और साहस चाहिए। वह यहां नदारद है।
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इसी कमजोरी की झलक उनकी भाषा में अक्सर दिखाई देती है। वह जितना बड़े शब्दों का प्रयोग करते हैं उतनी ही कमजोरी उनके अन्दर उपस्थित है। उनके दावे के अनुसार वह ‘परवाना’ तो हो सकते हैं परंतु उन्हें जो ‘शाम’ चाहिए उसमें अभी तीन साल का लम्बा समय बकाया है। इसके साथ ही जिस ‘समां’ की उन्हें तलाश है वह ‘समां’ तो आज भी उनके सामने जल रही है परन्तु उसकी लौ अभी बहुत तेज है। और परवाने को बुझती हुई लौ का इन्तजार है। क्योंकि परवाना भस्म होने को तैयार नहीं अपितु धीमी लौ से गुजर कर नई दुनिया बसाने की चाहत दिल में छुपाए है। बस संक्षेप में यही है अपने राव साहब की व्याकुलता का राज !
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