सत्य खबर
देश के जाने माने वकील प्रशांत भूषण के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट की अवमानना के 11 साल पुराने मामले में सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि कार्यकर्ता और वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण और पत्रकार तरुण तेजपाल के खिलाफ 2009 के आपराधिक अवमानना मामले में और सुनवाई की जरूरत है, ताकि यह देखा जा सके कि जजों के खिलाफ भ्रष्टाचार की टिप्पणी अवमानना है या नहीं? प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट को एक लिखित बयान में खेद जताने की बात कही थी, लेकिन कोर्ट ने इसे ठुकरा दिया।
सुप्रीम कोर्ट की 3 सदस्यीय खंडपीठ ने इस मामले की अगली सुनवाई की तारीख 17 अगस्त तय की है। इस खंडपीठ की अगुआई जस्टिस अरुण मिश्रा कर रहे हैं। जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस बीआर गवई और न्यायमू्र्ति कृष्ण मुरारी की 3 सदस्यीय पीठ ने कहा कि अवमानना के मामले में आगे सुनवाई की जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट के इस रूख के बाद वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण पर शिंकजा कसता नजर आ रहा है।
क्या है पूरा मामला?
यह मामला तहलका पत्रिका में प्रकाशित प्रशांत भूषण के एक इंटरव्यू से है, जिसमें उन्होंने न्यायपालिका में भ्रष्टाचार संबंधी बयान दिए थे। प्रशांत भूषण ने 2009 में तहलका को दिए इंटरव्यू में आरोप लगाया था कि पूर्व के 16 में से आधे भारत के चीफ जस्टिस भ्रष्ट थे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जजों को भ्रष्ट कहना अवमानना है या नहीं, इस पर सुनवाई की आवश्यकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अब वो देखेगा कि क्या प्रशांत भूषण के इस बयान से प्रथम दृष्टया अदालत की अवमानना होती है। इससे पहले, 4 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था। प्रशांत भूषण के खिलाफ 2009 के अवमानना से संबंधित मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर हमने स्पष्टीकरण और माफीनामा स्वीकार नहीं किया तो मामले की आगे सुनवाई की जाएगी।
प्रशांत भूषण ने जताया था खेद
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण के वकील राजीव धवन से पूछा कि क्या वे मांफी मांगने के लिए इच्छुक हैं। हालांकि भूषण ने मांफी मांगने से इनकार कर दिया है, लेकिन कहा कि उन्हें खेद है कि उनके बयान को गलत समझा गया। भूषण के ऑफिस द्वारा जारी सफाई में कहा गया है कि साल 2009 में तहलका को दिए इंटरव्यू में मैंने व्यापक अर्थ में भ्रष्टाचार शब्द का इस्तेमाल किया था, जिसका मतलब था नैतिकता की कमी। उन्होंने अपनी सफाई में कहा है कि मेरा अर्थ सिर्फ वित्तीय भ्रष्टाचार या किसी प्रकार के आर्थिक लाभ पाने से नहीं था। मैंने जो कुछ कहा, अगर उससे उन्हें या उनके परिवारवालों को किसी भी तरह से ठेस पहुंची है तो मुझे इसका खेद है। बता दें कि वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे द्वारा शिकायत किए जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में स्वत: संज्ञान लिया था।
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