सोनीपत, सत्य खबर,अशोक छाबड़ा
प्रदेश के सोनीपत जिले की बरौदा विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव में कई नए समीकरण देखने को मिल सकते हैं। छह बार विधायक रह चुके श्रीकृष्ण हुड्डा के निधन की वजह से यह सीट खाली हुई है। कांग्रेस विधायक श्रीकृष्ण हुड्डा का 12 अप्रैल को देहावसान हो गया था,जिस कारण छह माह की अवधि में 12 अक्टूबर से पहले-पहले यहां उपचुनाव होना है। सरकार ने कोरोना महामारी का हवाला दिया तो उपचुनाव की अवधि दो माह और आगे खिसक सकती है। हरियाणा में चाचा अभय चौटाला और भतीजे दुष्यंत चौटाला की सियासी जंग का इस उपचुनाव पर असर पड़ेगा। इसका लाभ उठाने को सीएम मनोहरलाल और कांग्रेस नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा अपने-अपने दांव चलेंगे।
बरौदा मे मिलेंगे नए राजनीतिक समीकरण
श्रीकृष्ण हुड्डा पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के विश्वासपात्र विधायकों में शामिल थे। वह भूपेंद्र सिंह हुड्डा की गढ़ी सांपला किलोई सीट से भी विधायक रह चुके हैैं। 2014 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के श्रीकृष्ण हुड्डा ने भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े अंतरराष्ट्रीय पहलवान योगेश्वर दत्ता को करीब 4800 मतों के अंतर से पराजित कर दिया था। कांग्रेस के श्रीकृष्ण हुड्डा को 42 हजार 566 (34.07 फीसदी) वोट मिले थे,जबकि भाजपा के योगेश्वर दत्त को 37 हजार 726 (30.73 फीसदी) मत प्राप्त हुए थे। पिछले चुनाव में कांग्रेस और भाजपा की इस लड़ाई में दुष्यंत चौटाला के नेतृत्व वाली जननायक जनता पार्टी ने भूपेंद्र मलिक को रण में उतारा था।
मलिक को 32 हजार 480 (26.45 फीसदी) मत हासिल हुए थे। इनेलो के जोगेंद्र को 3145 और बसपा के नरेश को 3281 मतों में ही संतोष करना पड़ा था। कांग्रेस से पहले इस सीट पर इनेलो का कब्जा रहता आया है। श्रीकृष्ण हुड्डा लोकदल के टिकट पर भी चुनाव जीत चुके हैैं। पिछले चुनाव की अपेक्षा इस बार राजनीतिक स्थितियां काफी भिन्न हैैं। भाजपा और जजपा के बीच राजनीतिक गठजोड़ है। इन दोनों के मतों को यदि जोड़ दिया जाए तो यह 70 हजार 206 यानी 57.28 फीसदी वोट बनते हैैं।
अब सवाल यह खड़ा हो रहा कि इस सीट पर भाजपा अपना उम्मीदवार उतारेगी या फिर जजपा अपनी दावेदारी को लेकर अड़ी रहेगी। दिल्ली के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने जजपा को कोई सीट नहीं दी थी, जिस कारण अंदाजा लगाया जा सकता है कि बरौदा में भाजपा ही अपनी पसंद का उम्मीदवार उतार सकती है और जजपा उसका समर्थन करेगी। भाजपा व जजपा गठबंधन के प्रत्याशी के सामने कांग्रेस को खासी मेहनत करने की जरूरत होगी।
जाट बेल्ट के नाते इस चुनाव में भूपेंद्र सिंह हुड्डा की प्रतिष्ठा दांव पर है। कांग्रेस के 26.45 फीसदी मतों में यदि इनेलो के 2.56 फीसदी और बसपा के 2.67 फीसदी वोट भी मिला लिए जाएं तो पार्टी को खासी मेहनत करनी पड़ सकती है। बरौदा चूंकि इनेलो का गढ़ रह चुका है,ऐसे में यह चुनाव ओमप्रकाश चौटाला के साथ-साथ उनके बेटे अभय सिंह चौटाला की प्रतिष्ठा से भी जुड़ा है।
दुष्यंत चौटाला अब भाजपा के साथ राजनीति कर रहे हैैं। ऐसे में वह अपने चाचा अभय और कांग्र्रेस नेता भूपेंद्र हुड्डा को आगे बढऩे से रोकने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने देंगे,जबकि चुनाव की रणनीति बनाने में माहिर राज्यसभा सदस्य चौ. दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने यदि कोई नया दांव खेला तो वह बाजी को पलटने का कोई मौका नहीं चूकेंगे। भाजपा यदि यह चुनाव जीतती है तो उसके विधायकों की संख्या 41 हो जाएगी। कांग्रेस के जीतने की स्थिति में यह संख्या 31 ही रहेगी।
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