सत्यखबर, नई दिल्ली
कुंभ टेस्टिंग घोटाले में मुख्य आरोपी कहे जा रहे शरद पंत और मल्लिका पंत को SIT ने गिरफ्तार कर लिया है । दोनों को उनके दिल्ली स्थित घर से गिरफ्तार कर लिया गया है । आपको बता दे की SIT कल रात से छापेमारी कर रही थी । ऐसे में दोनों को किसी भी वक्त हरिद्वार लाया जा सकता है । हरिद्वार में ही कुंभ में कोरोना टेस्टिंग घोटाला हुआ था ।
ये था मामला:
हरिद्वार में हुए कुंभ के दौरान कोरोना टेस्टिंग में घोटाला सामने आया था । कुंभ मेले में फर्जी तरीके से कोविड-19 टेस्ट रिपोर्ट निगेटिव बनाकर आंखों में धूल झोंकने का काम किया गया था । स्वास्थ्य विभाग से जुड़े सूत्र बताते हैं कि एक ही एंटीजन टेस्ट किट से 700 सैंपल्स की टेस्टिंग की गई थी । इसके साथ ही टेस्टिंग लिस्ट में सैकड़ों व्यक्तियों के नाम पर एक ही फोन नंबर अंकित था । स्वास्थ्य विभाग की जांच में दूसरे लैब का भी यही हाल सामने आता है । जांच के दौरान लैब में लोगों के नाम-पते और मोबाइल नंबर फर्जी पाए गए हैं । इसके बाद यह मामला साफ हो गया कि कुंभ मेले में फर्जी तरीके से कोविड-19 टेस्ट रिपोर्ट निगेटिव बनाकर आंखों में धूल झोंकने का काम किया गया है ।
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करोड़ों रुपए का घोटाला:
कुंभ के दौरान जो प्रदेश में दरें लागू थीं उसके अनुसार प्रदेश में एंटीजन टेस्ट के लिए निजी लैब को 300 रुपये दिए जाते थे, वहीं आरटी-पीसीआर टेस्ट के लिए तीन श्रेणियां बनाई गई थी । सरकारी सेटअप से लिए गए सैंपल सिर्फ जांच के लिए निजी लैब को देने पर प्रति सैंपल 400 रुपये का भुगतान करना होता है । निजी लैब खुद कोविड जांच के लिए नमूना लेती है तो उस सूरत में उसे 700 रुपये का भुगतान होता है । वहीं घर जाकर सैंपल लेने पर 900 रुपए का भुगतान होता है । इन दरों में समय-समय पर बदलाव किया जाता है । निजी लैब को 30 प्रतिशत भुगतान पहले ही किया जा चुका था ।
शरद पंत और मल्लिका पंत की थी तलाश:
शरद पंत और मल्लिका पंत मैक्स कॉर्पोरेट सर्विसेज में सर्विस थे । याचिका के जरिए शरद पंत और मलिका पंत ने कोर्ट से कहा था कि वे मैक्स कॉर्पोरेट सर्विसेस में एक सर्विस प्रोवाइडर हैं । परीक्षण और डेटा प्रविष्टि के दौरान मैक्स कॉर्पोरेट का कोई कर्मचारी मौजूद नहीं था । इसके अलावा परीक्षण और डेटा प्रविष्टि का सारा काम स्थानीय स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की प्रत्यक्ष निगरानी में किया गया था. इन अधिकारियों की मौजूदगी में परीक्षण स्टालों ने जो कुछ भी किया था, उसे अपनी मंजूरी दी थी । अगर कोई गलत कार्य हो रहा था तो कुंभ मेले की अवधि के दौरान अधिकारी चुप क्यों रहे?याचिकाकर्ता ने कोर्ट से कहा था कि मुख्य चिकित्सा अधिकारी हरिद्वार ने पुलिस में मुकदमा दर्ज करते हुए आरोप लगाया था कि कुंभ मेले के दौरान अपने को लाभ पहुंचाने के लिए फर्जी तरीके से टेस्ट इत्यादि कराए गए थे।
ऐसे हुआ खुलासा:
हरिद्वार कुंभ में हुए टेस्ट के घपले का खुलासा ऐसे ही नहीं हुआ । स्वास्थ्य विभाग के सूत्र बताते हैं यह कहानी शुरू हुई पंजाब के फरीदकोट से । यहां रहने वाले एक शख्स विपन मित्तल की वजह से कुंभ में कोविड जांच घोटाले की पोल खुल सकी । एलआईसी एजेंट विपन मित्तल को उत्तराखंड की एक लैब से फोन आता है, जिसमें यह कहा जाता है कि ‘आप की रिपोर्ट निगेटिव आई है’, जिसके बाद विपन कॉलर को जवाब देता है कि उसका तो कोई कोरोना टेस्ट हुआ ही नहीं है तो रिपोर्ट भला कैसे निगेटिव आ गई । फोन आने के बाद विपन ने फौरन स्थानीय अधिकारियों को मामले की जानकारी दी थी । स्थानीय अधिकारियों के ढुलमुल रवैए को देखते हुए पीड़ित शख्स ने तुरंत भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) से शिकायत की । ICMR ने घटना को गंभीरता से लेते हुए उत्तराखंड स्वास्थ्य विभाग से जवाब मांगा था । उत्तराखंड सरकार से होते हुए ये शिकायत स्वास्थ्य सचिव अमित नेगी के पास पहुंची । जब उन्होंने पूरे मामले की जांच करायी तो बेहद चौंकाने वाले खुलासे हुए । स्वास्थ्य विभाग ने पंजाब फोन करने वाले शख्स से जुड़ी लैब की जांच की तो परत-दर-परत पोल खुलती गई । जांच में एक लाख कोरोना रिपोर्ट फर्जी पाए गए ।
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