Kerala Assembly ने ‘एक देश, एक चुनाव’ के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया, इसे असंवैधानिक बताया
Kerala Assembly: हाल ही में केरल विधानसभा ने ‘एक देश, एक चुनाव’ के प्रस्ताव के खिलाफ एक प्रस्ताव पारित किया है, जिसमें इस प्रस्ताव को असंवैधानिक करार दिया गया है। इस प्रस्ताव को भारतीय संविधान के अनुरूप न मानते हुए केरल विधानसभा ने केंद्र सरकार से इस निर्णय को वापस लेने की अपील की है। इस प्रस्ताव की सिफारिश रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति ने की थी, जो इसके कार्यान्वयन के लिए सुझाव दे रही है।
प्रस्ताव का मूल
केरल के विधायी मामलों के मंत्री एम. बी. राजेश ने विधानसभा में इस प्रस्ताव पर चर्चा करते हुए कहा कि ‘एक देश, एक चुनाव’ का प्रस्ताव भारत के संघीय ढांचे को नुकसान पहुँचाएगा। उन्होंने कहा कि यह देश की संसदीय लोकतंत्र की विविधता को भी खतरे में डाल सकता है। उनके अनुसार, यदि यह प्रस्ताव लागू किया गया तो यह विभिन्न राज्यों के विधानसभाओं और स्थानीय स्वशासी निकायों के कार्यकाल को भी कम कर सकता है।
राजेश ने यह भी कहा कि यह विचार करना कि लोकसभा, राज्य विधानसभा और स्थानीय निकायों के चुनाव एक व्यय के रूप में देखे जाएं, एक गैर-लोकतांत्रिक दृष्टिकोण है। उन्होंने स्पष्ट किया कि चुनाव खर्च कम करने और प्रशासन को प्रभावी बनाने के लिए सरल उपाय हैं, जो इस प्रस्ताव से ज्यादा प्रभावी होंगे।
रामनाथ कोविंद का दृष्टिकोण
इस बीच, पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा है कि ‘एक देश, एक चुनाव’ का विचार असंवैधानिक नहीं है। उन्होंने कहा कि संविधान निर्माताओं ने इस विचार पर विचार किया था और इसलिए यह असंवैधानिक नहीं हो सकता। उन्होंने स्पष्ट किया कि 1967 तक, पहले चार लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ आयोजित किए गए थे। इसलिए, वे यह मानते हैं कि एक साथ चुनाव आयोजित करना असंवैधानिक नहीं हो सकता।
कोविंद ने कहा कि यह विचार लोकप्रिय है और इसे कुछ लोगों द्वारा गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया है। उनका कहना है कि यदि यह योजना लागू होती है, तो इससे संघवाद को और मजबूत बनाया जा सकेगा, क्योंकि सभी तीन स्तरों के सरकार एक साथ पांच वर्षों के लिए काम करेंगे।
केरल विधानसभा का कदम
केरल विधानसभा का यह कदम एक महत्वपूर्ण राजनीतिक कदम है, जो केंद्र सरकार की योजनाओं पर सवाल उठाता है। यह इस बात का संकेत है कि विभिन्न राज्यों की विधानसभाएं अपनी स्वायत्तता को लेकर चिंतित हैं और वे किसी भी प्रकार के संघीय ढांचे को कमजोर करने वाली योजनाओं के खिलाफ खड़ी होंगी।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ‘एक देश, एक चुनाव’ का प्रस्ताव एक दीर्घकालिक राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य चुनावी खर्चों को कम करना और सरकारों को अधिक स्थिरता प्रदान करना है। लेकिन केरल विधानसभा का यह कदम इस बात का संकेत है कि राज्यों के पास अपनी चिंताएं और मुद्दे हैं, जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
संघीय ढांचा और लोकतंत्र
भारत का संघीय ढांचा विभिन्न राज्यों और केंद्र के बीच सत्ता का संतुलन बनाने पर आधारित है। यदि ‘एक देश, एक चुनाव’ का प्रस्ताव लागू होता है, तो इससे राज्यों के अधिकारों में कमी आ सकती है। प्रत्येक राज्य की अपनी राजनीतिक और सामाजिक चुनौतियाँ होती हैं, और चुनावों का समय भी राज्यों की आवश्यकताओं के अनुसार भिन्न होता है।
इस प्रस्ताव के अनुसार, यदि सभी चुनाव एक ही समय पर कराए जाते हैं, तो यह संभव है कि कुछ राज्यों की आवश्यकताओं को अनदेखा किया जाए। इससे एक राष्ट्र के रूप में भारत की विविधता और सांस्कृतिक धरोहर को भी खतरा हो सकता है।
संभावित समाधान
चुनावों की लागत को कम करने के लिए कई तरीके हो सकते हैं। सबसे पहले, चुनावी प्रक्रिया को अधिक प्रभावी और पारदर्शी बनाने की आवश्यकता है। इसके साथ ही, चुनावी सुधारों पर ध्यान केंद्रित करना भी आवश्यक है, ताकि चुनावी प्रक्रिया को सरल और सस्ता बनाया जा सके।
राज्य सरकारों को भी अपने स्तर पर चुनावी प्रक्रियाओं में सुधार लाने के लिए प्रयास करने चाहिए। इसके लिए, उन्हें अपने नागरिकों को जागरूक करने और चुनावी शिक्षा को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।