पराली जलाने से पर्यावरण में खतरनाक रसायन पैदा होते हैं – प्रो. जयपाल आर्य
सत्यखबर, नरवाना (सन्दीप श्योरान) :-
केएम राजकीय कॉलेज की एनएसएस यूनिट द्वारा भारत सरकार के जल शक्ति एवं पर्यावरण मंत्रालय के दिशा-निर्देशों के अनुसार पराली से देशी खाद, गत्ता व इथेनॉल आदि तैयार करने की विधियों के बारे में गांव बेलरखांं, अंबरसर तथा उझाना के स्कूलों में कार्यशाला आयोजित की गई। प्रो. जयपाल आर्य ने विद्यार्थियों को सम्बोधित करते हुए कहा कि पराली जलाने से पर्यावरण में खतरनाक रसायन जैसे नाइट्रिक ऑक्साइड, सल्फर डाई ऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, क्लोरो ऑक्साइड, क्लोरोफ्लोरोकार्बन इत्यादि उत्पन्न होते हैं। इनसे अस्थमा, टीबी, कैंसर जैसी घातक बीमारियां उत्पन्न होती हैं। इनका दुष्प्रभाव सभी वनस्पतियों के साथ सभी जीव-जंतुओं पर भी पड़ता है। उन्होंने कहा कि पराली को वैकल्पिक व्यवस्था के अनुसार प्रणाली को चारा एवं देसी खाद बनाने के रूप में प्रयोग करें इससे भूमि की उर्वरा शक्ति भी बढ़ती है और भूमि में आद्र्रता भी बनी रहती है। इसलिए कंपाइन से कटी हुई फसल अवशेषों को दो बार हैरो से बहा कर उसमें दो बार पानी लगाकर दिव्य अमृत का छिड़काव करने से मात्र 15 दिनों में पराली गल-सड़कर खाद में परिवर्तित हो जाती है। यह सरलतम उपाय सभी किसानों को अपनाना चाहिए। भूमि जलने से कठोर हो जाती है और उसमें लाभदायक पोषक तत्व और मित्र कीट एवं जीव जंतु नष्ट हो जाते हैं और ऐसी जली हुई पराली वाली भूमि में खेती करना घाटे का सौदा हो गया है और पराली से मुनाफा लेकर के हम पर्यावरण और जमीन को बचाकर के किसानों की आमदनी को बढ़ा सकते हैं। इस अवसर पर बलवान सिंह, डॉ. जगदीप शर्मा, विनय, गुरमीत, विजय, प्रद्युम्मन आदि मौजूद थे।