सत्य खबर
बीते कुछ दिनों से राममंदिर जन्मभूमि विवादों के घेरे में है। इसी बीच एक खबर सामने आई है कि अगर श्रीराम जन्मभूमि विवाद पर विराम लगाना है तो वो काशी मॉडल ही लगा सकता है। बता दें कि काशी मॉडल में किसी को जमीन लेने से पहले मूल्यांकन समिति अपनी रिपोर्ट देती है। समिति की रिपोर्ट के आधार पर ही जमीन का मोलभाव करके सौदा तय होता है। गौरतलब है कि काशी मॉडल को अंजाम देने वाले तत्कालीन वाराणसी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी विशाल सिंह अब यहां नगर आयुक्त और अयोध्या विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष हैं। उन्होंने कहा कि यहां आने से पहले शीर्ष स्तर पर अयोध्या में ऐसा ही तरीका अपनाने की चर्चा हुई थी। काशी मॉडल पूरी तरह पारदर्शी और नियमों के तहत है, किसी की जमीन लेने से पहले मूल्यांकन समिति अपनी रिपोर्ट देती है। इसमें एसडीएम, सब रजिस्ट्रार, तहसीलदार-कानूनगो और पीडब्ल्यूडी के इंजीनियर शामिल होते है। इनकी रिपोर्ट पर निगोसिएशन समिति बातचीत करके अनुमोदन करती थी। इस तरह से ट्रस्ट भी प्रशासन से मूल्यांकन करा कर किरकिरी से बच सकता है।
इस बीच, हाल की घटनाओं से ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय के आसपास घेरा बनाने की कोशिश करने वाले तमाम प्रॉपर्टी के दलाल अब गायब हो गए हैं। संघ-विहिप के धुर विरोधी द्वारिका व शारदापीठाधीश्वर जगदगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के रामालय ट्रस्ट के सचिव स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद काशी से अयोध्या आकर विरोधी संतों को एकजुट कर रहे हैं।
वहीं रामजन्मभूमि विवाद में पक्षकार रहे अनी अखाड़ा के महंत धर्मदास भी अपनी उपेक्षा से ‘आग में घी’ डालने में जुटे हैं। वक्फ की संपत्ति बहाली में बाबरी एक्शन कमेटी के जिम्मेदारों की सक्रियता भी दिख रही है। ऐसे में सबसे अहम रामजन्मभूमि के पीछे कटरा इलाके के तमाम मुस्लिमों से चल रही उनकी भूमि-भवन की खरीद संबंधी बातचीत में अब काशी मॉडल की जरूरत महसूस की जा रही है।
राजस्व रिकॉर्डों की जांच होती तो फजीहत से ट्रस्ट बच जाता। श्री रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट स्वायत्तशासी होने के साथ केंद्र और राज्य के प्रतिनिधियों से भी युक्त है। इसमें गृह मंत्रालय के विशेष सचिव पदेन केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। प्रदेश सरकार का प्रतिनिधित्व अपर मुख्य सचिव गृह कर रहे हैं। डीएम अयोध्या पदेन ऑफिसियो ट्रस्टी हैं। नियमानुसार किसी भी भूमि/भवन को खरीदते समय ट्रस्ट को शासन की मदद लेनी चाहिए थी। भूमि का मूल्यांकन एक्सपर्ट से कराने के बाद कीमत का निगोसिएशन करने के लिए भी कमेटी होती तो दो करोड़ की जमीन को 18.50 करोड़ में खरीदने का स्पष्टीकरण वैधानिक नजर आता। ट्रस्ट ने जिन हरीश पाठक और कुसुम पाठक की जमीनें खरीदी हैं, उसका नामांतरण तक नहीं हुआ था।
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खतौनी तक की जांच नहीं की गई। ट्रस्ट के पक्ष में 18 मार्च को एग्रीमेंट होने के बाद 19 अप्रैल 2021 को नायब तहसीलदार अयोध्या हृदयराम इस भूमि का नामांतरण दर्ज करने का आदेश पारित करते हैं। मामला कोर्ट में जाने पर ट्रस्ट की ओर से 2011 से लेकर 2017 व 2019 के जिन-जिन एग्रीमेंटों का हवाला देकर सफाई दी जा रही है उसे अवैधानिक माना जा सकता है, क्योंकि हर एग्रीमेंट के समय कभी तहसीलदार तो कभी अपर आयुक्त का स्टे ऑर्डर प्रभावी था।
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