नए केंद्रिय मंत्रालय को करेंगे पैक्स के शोषण की शिकायत
सत्य खबर सफीदों, महाबीर मित्तल: ग्रामीण क्षेत्रों मे कृषि व गैरकृषि कामधंधों मे लोगों की आर्थिक सहायता को स्थापित प्राथमिक कृषि सहकारी समितियों (पैक्स) मे सफीदों उपमण्डल मे ज्यादातर घाटे मे हैं और ऐसी ही स्थिति प्रदेश भर मे बताई गई है। पैक्स के कर्मचारियों ने ऐसी समितियों पर सहकारी बैंक प्रबंधन के दबावों को इसका प्रमुख कारण बताया है क्योंकि ये समितियां लेनदेन मे पूरी तरह से संबंधित सहकारी बैंकों पर ही निर्भर हैं जो सहकारी बैंक से ऋण लेकर अपने सदस्यों को जारी करती हैं। रविवार को यहां सर्व कर्मचारी संघ से संबंधित पैक्स कर्मचारी यूनियन के कई प्रतिनिधियों ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया कि समिति अपने कर्जदार सदस्य से कुल सात प्रतिशत ब्याज वसूलती हैं जिसमे साढे पांच प्रतिशत सहकारी बैंक को जाता है जबकि समिति को केवल डेढ प्रतिशत ही मिलता है और उसमे उसे स्टाफ के वेतन, स्टेशनरी, बिजली-पानी आदी के बिल सहित सभी खर्च चलाने होते हैं। सरकार ने इन समितियों के ऋणियों का ब्याज माफ किया हुआ है और इस ब्याजमाफी का चार प्रतिशत केंद्र वहन करता है जबकि तीन प्रतिशत राज्य देता है। उन्होने बताया कि समिति माफी के दौरान अपने सदस्य से कुछ ब्याज नहीं वसूलती। सदस्य तो केवल मूलधन देकर ही फिर से उतनी राशी का ऋण लेकर निश्चिंत हो जाता है।
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उनका कहना है कि राज्य व केंद्र से प्राप्त होने वाली ब्याज राहत राशी आमतौर पर वर्ष भर लेट हो जाती है और ऐसे मे साढे पांच प्रतिशत राशी सहकारी बैंक शाखाएं संबंधित पैक्स के खाते मे देनदारी दर्ज कर लेती हैं जिस पर पैक्स से छ:माही चक्रवर्धी ब्याज वसूल किया जाता है और इस ब्याज से पैक्स का पीछा तभी छूटता है जब राज्य व केंद्र ब्याजमाफी की राशी जारी करते हैं। पैक्स कर्मचारी नेता ने बताया कि लेनदेन के लिए पैक्स वर्ग की समितियां सहकारी बैंकों पर निर्भर हैं जिसका नाजायज फायदा उठाते हुए सहकारी बैंक प्रबंधन इनका कई तरह से शोषण कर रहे हैं। उनका कहना था कि जिला भर मे पैक्स परिसरों मे खोली गई सहकारी बैंक शाखाओं का किराया दबाव मे उन शाखाओं के किराए से काफी कम है जो निजी संपत्तियों मे स्थापित की गई हैं और पैक्सों को किराये का भुगतान भी नियमित नही होता। कर्मचारी नेताओं ने कहा कि हरियाणा मे तो कोई उनकी सुनता नही है, केंद्र मे बीती 6 जुलाई को सहकारी मंत्रालय मोदी सरकार ने बनाया है, यह काम शुरू करेगा तो इसमे इस मामले की शिकायत करेंगे। इधर अनेक किसान पैक्स पर ऋणी सदस्यों के शोषण का आरोप लगाते हैं। इनका कहना है कि ऋण जारी करने से पूर्व पैक्स मे सदस्य से हिस्सा राशी जमा कराई जाती है जो दशकों तक पैक्स के खाते मे जमा रहती है लेकिन सदस्य को कभी इसका ब्याज या किसी अन्य रूप मे कोई लाभ नही दिया जाता जो सरासर नाजायज है। इस बारे जानकारी को यहां सहायक रजिस्ट्रार, सहकारी समितियां के अतिरिक्त कार्यभार के अधिकारी बिरेंद्र सिंह से फोन पर संपर्क नहीं हो पाया।
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