Amit Shah’s PFI Ban
सत्य खबर, नई दिल्ली
5 अगस्त 2019, हाथ में चंद कागजात लेकर गृहमंत्री अमित शाह संसद पहुंचते हैं, उससे पहले की उथल-पुथल मसलन कैबिनेट कमेटी ऑफ सिक्योरिटी की बैठक और कश्मीर में भारी तादाद में सुरक्षाबलों की तैनाती कुछ संकेत तो देती है, लेकिन ये अंदाजा नहीं लगाने देती कि कश्मीर पर क्या कुछ होने वाला है, शाह संसद में बोलना शुरू करते हैं और अचानक कर देते हैं वो ऐलान, जिसका इंतजार देश की जनता 1952 से कर रही थी. कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने का ऐलान. हर कोई हतप्रभ था, हैरान था कि ये क्या हो गया?. संसद में शोरगुल था, मगर अमित शाह अपने चिरपरिचित अंदाज में बोलते रहे.Amit Shah’s PFI Ban
70 साल से जिस मुद्दे पर सिर्फ चर्चा हो रही थी, उस पर गृह मंत्रालय संभालने के चंद महीनों बाद इतना बड़ा फैसला लेना आसान तो नहीं रहा होगा, वो भी ये समझते हुए कि इस निर्णय पर कितना बवाल हो सकता है, मगर मजाल कि कोई चूं भी कर पाया हो. गृहमंत्री के तौर पर उनका ये पहला बड़ा फैसला था. इसके बाद तो मानो देश विरोधी ताकतों की कमर तोड़ने का क्रम शुरू हो गया. जोड़-तोड़ की राजनीति में माहिर माने जाने वाले और राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह ने ऐसी कई ताकतों का दमन किया जो देश की सुरक्षा के लिए खतरा थीं. PFI पर बैन इसी लंबी फेहरिस्त का हिस्सा है.Amit Shah’s PFI Ban
PFI पर बैन की फुलप्रूफ प्लानिंग
पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) को 2006 में तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक में सक्रिय तीन संगठनों ने मिलकर बनाया था. ऐसा माना गया कि स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया यानी सिमी पर बैन लगने के बाद उसी संगठन के लोगों ने इसे रिफॉर्म किया. पीएफआई हमेशा खुद को लोगों की बेहतरी के लिए काम करने वाला संगठन बताता रहा, लेकिन असलियत इससे इतर थी. 2010 में पीएफआई पर सबसे पहले आतंकवाद का टैग लगा, उस वक्त संगठन के कुछ कार्यकर्ताओं ने ईश निंदा के आरोप में प्रोफेसर टीजे जोसेफ का दायां हाथ काट दिया था. पीएफआई की लोकिप्रयता बढ़ती गई और उसके आपराधिक इतिहास के सबूत भी मिलते रहे. कई प्रदेशों की ओर से इस संगठन को बैन करने की लगातार मांग होती रही.Amit Shah’s PFI Ban
गृहमंत्रालय ने फुलप्रूफ प्लानिंग की और नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी, ईडी और राज्यों की पुलिस ने 22 और 27 सितंबर को ताबड़तोड़ छापेमारी कर तकरीबन साढ़े तीन सौ से ज्यादा लोगों को पकड़ा, इनके खिलाफ ऐसे सबूत मिले जिससे ये साफ हो गया कि पीएफआई देश के संवैधानिक ढांचे को क्षति पहुंचा रही है और आतंकवाद को प्रोत्साहित कर रही है. राष्ट्रविरोधी भावनाओं को भड़काने और कट्टरपंथ को बढ़ावा देने की साजिश का भी खुलासा हुआ. आखिरकार सरकार ने पीएफआई और उसके 8 सहयोगी संगठनों पर पांच साल का बैन लगा दिया.
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बोडो समस्या का हल
पिछले 50 साल से उग्रवादी संगठन अलग राज्य बोडोलैंड की मांग पर अड़े थे. हिसंक वारदातों से अक्सर ये इलाका थर्रा उठता था. गृहमंत्री अमित शाह इस मसले को हल करने में जुटे और शांति की ऐसी प्रक्रिया स्थापित की कि ये संगठन मुख्य धारा में आने को तैयार हो गए. 27 जनवरी 2020 को बोडो जनजाति के उग्रवादी संगठनों के साथ समझौता हुआ और अमित शाह की सूझ बूझ से बोडोलैंड की मांग और उग्रवाद की समस्य पर काफी हद तक काबू पा लिया गया.
नक्सलियों के खिलाफ एक्शनAmit Shah’s PFI Ban
अमित शाह ने जब गृहमंत्रालय संभाला था, तब देश नक्सल समस्या से जूझ रहा था, मगर उनके कार्यकाल में नक्सली घटनाओं में भारी कमी आई. मंत्रालय संभालते वक्त ही अमित शाह ने नक्सलियों के खिलाफ जीरो टॉलरेंस नीति का ऐलान कर दिया था. उन्होंने कहा था कि देश में वामपंथी उग्रवाद अब नहीं चल सकेगा, इसके लिए रणनीति बनाई गई और उसका असर भी दिखा. अभी सात पहले ही नक्ल बहुल माना जाने वाला झारखंड का बुद्धा पहाड़ क्षेत्र नक्सल मुक्त घोषित कर दिया गया. सीआरपीएफ के डीजी कुलदीप सिंह ने ये ऐलान करते हुए जानकारी दी थी कि ऑपरेशन थंडरस्टॉर्म के तहत इस साल अप्रैल से लेकर अब तक मध्यप्रदेश में 3, झारखंड में 4 और छत्तीसगढ़ में 7 नक्सली मारे गए और 578 को पकड़े गए. इसके अलावा उग्रवाद की घटनाओं में भी कमी आई है, 2009 में यह आंकड़ा 2252 पर था जो अब घटकर महज 509 पर रह गया है.
अलगाववादियों की कमर तोड़ी
जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद गृहमंत्री अमित शाह ने अलगाववाद को टारगेट किया. सरकार की सख्ती से ही अलगाववाद ने घुटने टेक दिए. सबसे पहले जमात-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध लगाया गया जो अलगाववादी खेमे को ऑक्सीजन देता था. जमात से जुड़े पदाधिकारियों के घर छापेमार प्रक्रिया शुरू हुई, अलगवादियों की सुरक्षा घटाई गई और जमात के स्कूल, मदरसों पर भी नजर रखी गई, इसी का असर है कि धीरे-धीरे घाटी में अलगाववाद की हवा निकल गई.Amit Shah’s PFI Ban
अर्बन नक्सल पर प्रहार
देश में एक ऐसा समुदाय था जो समाजवाद के खोल में छिपकर नक्सलियों से सहानुभूति रखता था. ऐसे लोग जंगलों में जाकर नक्सली कमांडरों को साक्षात्कार छापते थे. सबसे पहले अर्बन नक्सल शब्द तब प्रकाश में आया जब पुणे पुलिस द्वारा वरवर राव, बर्नोन गोनसाल्वेस, अरुण फरेरा, सुधा भारद्वाज, गौतम नवलखा को गिरफ्तार किया, इसके अलावा स्टेन स्वामी, सत्नारायण और आनंद तेलतुंबड़े के यहां छापेमारी की. अमित शाह के मंत्रालय संभालने के बाद भी ऐसे कई लोगों पर कार्रवाई की गई, इनमें नामी वकील, सामाजिक कार्यकर्ता और कई प्रोफेसर भी शामिल थे.Amit Shah’s PFI Ban
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