difficult to become a mother with sanitary pads
सत्यखबर, नई दिल्ली। सैनेटरी पैड से महिलाओं को कैंसर और मां न बन पाने का खतरा। सैनेटरी पैड महिलाओं के लिए सुरक्षित नहीं है। इसे बनाने में इस्तेमाल होने वाले केमिकल से महिलाओं को कैंसर का खतरा है। इससे महिलाएं बांझपन का भी शिकार हो सकती हैं।
एनजीओ टॉक्सिक्स लिंक के प्रोग्राम कोर्डिनेटर डॉक्टर अमित ने बताया कि सैनिटरी प्रॉडक्ट्स में कई गंभीर केमिकल जैसे कारसिनोजन, रिप्रोडक्टिव टॉक्सिन, एंडोक्राइन डिसरप्टर्स और एलरजेंस पाए गए हैं। जिससे प्राइवेट पार्ट पर इन खतरनाक केमिकल्स का असर ज्यादा होता है। इसलिए कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। इससे महिलाओं में बांझपन का खतरा भी रहता है।
रिसर्च के लिए भारत में सैनिटरी नैपकिन बेचने वाले 10 ब्रांड्स के प्रॉडक्ट्स शामिल किए गए। जिसमें रिसर्चर्स को सभी सैंपलों में थैलेट (phthalates) और वोलेटाइल ऑर्गेनिक कंपाउंड (VOCs) के तत्व मिले। difficult to become a mother with sanitary pads
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चिंता की बात है कि यह दोनों केमिकल्स कैंसर के सेल्स बनाते हैं। एनजीओ टॉक्सिक्स लिंक की एक अन्य प्रोग्रोम कोर्डिनेटर अकांक्षा मेहरोत्रा ने इंडिया टुडे के हवाले से बताया कि सबसे ज्यादा चिंता की बात यह है कि सैनिटरी पैड के इस्तेमाल से महिला के प्राइवेट पार्ट्स पर इन केमिकल्स का ज्यादा असर होता है।
टॉक्सिक्स लिंक में चीफ़ प्रोग्राम कोऑर्डिनेटर प्रीति महेश का कहना है कि हालांकि इन पैड्स में इस्तेमाल किए गए थैलेट और वीओसी यूरोपीय संघ के मानदंडों के मुताबिक हैं, लेकिन उनका मक़सद लोगों को इन केमिकल्स के दुष्प्रभावों के बारे में बताना है.
तान्या महाजन का कहना है कि टॉक्सिक्स लिंक ने महिलाओं के स्वास्थ्य को लेकर सही मुद्दा उठाया है, लेकिन ये शोध समग्र होना चाहिए क्योंकि इसका सैंपल साइज़ बहुत कम है. ऐसे में ये संकेत ज़रूर देता है, लेकिन हम ये नहीं कह सकते कि ये प्रतिनिधत्व नहीं करता है. इस पर व्यापक शोध होना चाहिए. difficult to become a mother with sanitary pads
तान्या महाजन ‘दि पैड’ प्रोजेक्ट में काम कर रही हैं. ये अमेरिका स्थित एक ग़ैर सरकारी संस्था है और वे इसकी अंतरराष्ट्रीय प्रोग्राम निदेशक हैं. इस संस्था का काम दक्षिण एशिया और अफ्रीका में मेन्स्ट्रुअल हेल्थ को लेकर जागरुकता फैलाना है.
प्रीति महेश भी ये मानती हैं कि शोध का सैंपल साइज़ छोटा है, लेकिन एक ग़ैर सरकारी संस्था के तौर पर उनका काम लोगों को जागरूक करना है और बड़ा सैंपल लेना एक संस्था के लिए संभव नहीं होता है.
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