सत्य खबर, गुरुग्राम, सतीश भारद्वाज: Fourth day of the seven-day Shri Ram Katha
गुरुग्राम कल्चरल फाउंडेशन एवं प्रभु प्रेमी संघ द्वारा सात दिवसीय श्रीराम कथा के चौथे दिन जूनापीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानन्द गिरी जी महाराज ने कहा कि सामान्य आग एक बार जलाएगी, क्रोध की आग की से जलन जीवनभर रहती है। दूसरों को जीवनभर मान-सम्मान उपहार देते जाओ, वो भूल जाएंगे मगर कभी किया हुआ अपमान वे नहीं भूल सकते। आप भी अपनों की सब बात भूल गए होंगे, लेकिन उनके द्वारा आवेश में कही गई बातों को नहीं भूल पाएंगे। यह घृणा हम लंबे समय तक रखते हैं। यानी जीवनभर के अच्छे कार्यों पर एक घृणा भारी पड़ती है।
चौथे दिन की कथा में मुख्यमंत्री मनोहर लाल, उप-मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला मुख्य अतिथि के रूप में पहुंचे। चौथे दिन की कथा में यजमान यजमान पूजा में मंच पर व्यास एवं पोथी पूजन, आरती के लिए डॉ. मनदीप गोयल (श्री राम ज्वेलर्स, गुरुग्राम) संजय गोयल, राजेश जिंदल, सोम गर्ग, राम बाबू गुप्ता ने पूजा कराकर कथा आरम्भ कराई। स्वामी जी ने कथा में आगे सुनाया कि अगर कभी किसी तरह की भूल हो तो क्षमा मांग लो। स्वीकार कर लो हमसे पाप हो गया। क्योंकि क्रोध हिंसक होता है। घातक होता है। मारक होता है। विदारक होता है। क्रोध पर नियंत्रण बहुत जरूरी है। उन्होंने आगे कहा कि नारायण देवताओं की नहीं सुनते तो वे गौमाता को आगे करते हैं। वे या तो गौमाता की सुनते हैं या फिर संतों की। अगर घर में सत्संग होगा तभी राम घर में आएंगे। जिसके साथ अन्याय, छल हुआ होता है उसकी सिस्की होती है। जिसके अधिकार छीन लिए गए होते हैं। उन्होंने दीन-दुखियों पर कहा कि दीन पर दृष्टि संसार की नहीं दीनानाथ, दीनबंधु की जाएगी। दलित का अर्थ है जिसे सब तरह से हेय कर दिया गया है।
स्वामी जी ने कहा कि साधना में अपने ईष्ट के प्रति आश्वस्त रहिए। ईष्ट और मंत्र के प्रति शंका ठीक नहीं है। विश्वामित्र इतने आसुरी शक्तियों के सक्रिय होने के बाद भी आश्वस्त हैं, क्योंकि उन्हें अपनी मंत्र शक्ति और इष्ट पर पूर्ण विश्वास है। सामरिक नीति यह भी कहती है कि शत्रु को न केवल पराभूत किया जाए, अपितु उसका नाश भी किया जाए। पूज्य गुरुदेव जी कहते हैं कि ताड़का का आशय अविद्या से है। सिद्धाश्रम में राम के पधारते ही वहां ऋषियों के सभी कष्ट दूर हो गए, इसलिए यदि आपके जीवन में कोई कष्ट और परेशानी हो तो अपने घर में राम को ले आइये। घर में सत्संग आए, शुभ कर्म हो और सन्तों की कृपा हो तो राम आपके जीवन में आयेंगे। पूज्य गुरुदेव कहते हैं कि भगवत सत्ता सबसे अधिक जहां चैतन्य है, वह सन्त और गौ-माता में है।
महाराज जी ने वर्तमान में एक नई दृष्टि आई अंत्योदय, जो अंतिम पक्ति के व्यक्ति की सुध लेने की है। ग्रामोदय, सर्वोदय, अंत्योदय तो है, आप अपने लिए आत्मोदय करो। आत्मा को प्रकाशित करो। अपनी बात प्रार्थनाओं से, मंत्रों से, साधना से, तप से, यज्ञ से भगवान तक पहुंचाओ। विश्वास को लेकर उन्होंन कहा कि संसार से जब मन टूट जाए, विश्वास चला जाए तो भगवान ही उसे ठीक कर सकते हैं। गुरू विश्वमित्र ने श्री राम से कहा कि सिला पर पैर रख दो। उन्हें तो पता था कि वह महिला हैं। फिर भी गुरू की आज्ञा मानकर श्रीराम ने उस शिला से पांव का स्पर्श किया और अहिल्या का उद्धार हुआ। महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानन्द गिरी जी ने पुरुषों को लेकर कहा कि पुरुष के भीतर में एक स्नेह होता है, अपनी पत्नी, पुत्री के प्रति। उनके भीतर एक पुरुषत्व है। उसी के वशीभूत वह स्वामित्व, नेतृत्व चाहता है। अपनी आज्ञा के अधीन रखना चाहता है। यह स्वाभाविक प्रवृति है। उन्होंने कहा कि पुरुष के आगे श्री लगाया जाता है, क्योंकि उसे मान चाहिए। स्त्री के आगे मती लगती है, क्योंकि उसे मती चाहिए। Fourth day of the seven-day Shri Ram Katha