hindu calendar for 15 december 2022
सत्य खबर , चंडीगढ़।
दिनांक – 15 दिसम्बर 2022
⛅दिन – गुरुवार
⛅विक्रम संवत् – 2079
⛅शक संवत् – 1944
⛅अयन – दक्षिणायन
⛅ऋतु – हेमंत
⛅मास – पौष (गुजरात, महाराष्ट्र में मार्गशीर्ष)
⛅पक्ष – कृष्ण
⛅तिथि – सप्तमी रात्रि 01:39 तक तत्पश्चात अष्टमी
⛅नक्षत्र – पूर्वाफाल्गुनी पूर्णरात्रि तक
⛅योग – विष्कम्भ सुबह 07:31 तक तत्पश्चात प्रीति
⛅राहु काल – दोपहर 01:55 से 03:16 तक hindu calendar for 15 december 2022
⛅सूर्योदय – 07:13
⛅सूर्यास्त – 05:57
⛅दिशा शूल – दक्षिण दिशा में
⛅ब्राह्ममुहूर्त – प्रातः 05:27 से 06:20 तक
⛅निशिता मुहूर्त – रात्रि 12:08 से 01:02 तक
⛅व्रत पर्व विवरण –
⛅विशेष – सप्तमी को ताड़ का फल खाया जाय तो वह रोग बढ़ानेवाला तथा शरीर का नाशक होता है । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)
🔹पढाई में आशातीत लाभ हेतु🔹
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🔹विद्यार्थी अध्ययन-कक्ष में अपने इष्टदेव या गुरुदेव का श्रीविग्रह अथवा स्वस्तिक या ॐकार का चित्र रखें तथा नियमित अध्ययन से पूर्व उसे १०-१५ मिनट अपनी आँखों की सीध में रखकर पलकें गिराये बिना एकटक देखें अर्थात त्राटक करें । इससे पढ़ाई में आशातीत लाभ होता हैं ।
🔹रोग का रहस्य और निरोगता का मूल🔹
🔸 जो भोगी होता है वह रोगी अवश्य होता है, यह नियम है ।
🔸 जो साधन-सामग्री है उसके द्वारा साधक किसी प्रकार के सुख की आसक्ति में बँधे नहीं, इसी कारण प्यारे परमात्मा रोग के स्वरूप में प्रकट होते हैं । पर साधक यह रहस्य जान नहीं पाता कि मेरे ही प्यारे रोग के वेश में आये हैं ।
🔸 शारीरिक बल का आश्रय तोड़ने के लिए रोग आया है । उससे डरो मत अपितु उसका सदुपयोग करो । रोग का सदुपयोग देह की वास्तविकता का अनुभव कर उससे असंग हो जाना है ।
🔸 चित्त में प्रसन्नता, मन में निर्विकल्पता ज्यों-ज्यों सबल तथा स्थायी होती जायेगी त्यों-त्यों स्वतः आरोग्यता आती जायेगी, इसमें लेशमात्र भी संदेह नहीं है ।
🔸 निश्चितता तथा निर्भयता आने से प्राणशक्ति सबल होती है, जो रोग मिटाने में समर्थ है । उसके लिए हरि-आश्रय तथा विश्राम (विश्रांति) ही अचूक उपाय है ।
🔸 शरीर का पूर्ण स्वस्थ होना शरीर के स्वभाव से विपरीत है । जिस प्रकार दिन और रात दोनों ही काल की सुंदरता होती है उसी प्रकार रोग और आरोग्यता दोनों से ही शरीर की वास्तविकता प्रकाशित होती है ।hindu calendar for 15 december 2022
🔸 जो रोग औषधि से ठीक नहीं होता उसका कारण अदृष्ट (भाग्य, पूर्व के कर्मों का फल) की मलिनता होती है । अदृष्ट की मलिनता शुभ कर्म आदि से दूर होती है, औषधि से नहीं ।
🔸 रोग-निवृत्ति का एक सर्वोत्तम उपाय यह भी है कि यदि रोगी रोगी-भाव का सद्भाव अपने में से निकाल दे तो फिर रोग बेचारा निर्जीव हो जाता है क्योंकि ‘मैं’ की सत्ता से सभी सत्ताएँ प्रकाशित होती हैं । सद्भाव से प्रतीति में सत्यता आ जाती है जो दुःख का मूल है ।
🔸 रोग यही है कि ‘मैं रोगी हूँ ।’ औषधि यही है कि ‘मैं सर्वदा निरोग हूँ, मैं साक्षात् आरोग्य हूँ ।’ आरोग्यता से अपनी जातीय एकता है । यदि एक बार भी अपनी पूरी शक्ति से यह आवाज लगा दो कि ‘मैं निरोग हूँ, मैं ही आरोग्य हूँ’ तो रोग भाग जायेगा ।
🔸 मन में स्थिरता, चित्त में प्रसन्नता और हृदय में निर्भयता ज्यों-ज्यों बढ़ती जायेगी त्यों-त्यों आरोग्यता स्वतः आती जायेगी कारण कि मन तथा प्राण का घनिष्ठ संबंध है । अतः मन के स्वस्थ होने से शरीर भी स्वस्थ हो जाता है ।
🔸 रोग से अशुभ कर्म के फल का अंत होता है और तप से अशुभ कर्म का अंत होता है । जिस प्रकार तपस्वी को तप के अंत में शांति मिलती है । उसी प्रकार रोगी को भी रोग के अंत में शांति मिलती है ।
🔸बाधाएँ आती है तो…🔸
🌹 यदि आपको किसी कार्य में बाधा आ रही हो तो किसी शुभ समय में पीपल के पत्ते पर ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ।’ मंत्र तीन बार लिख के उसे अपने पूजा-स्थल में रखकर पूजन करें । इससे बाधाएँ समाप्त होंगी ।
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