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Punjab-Haryana High Court का अहम फैसला, भूमि के राजस्व रिकॉर्ड में तकिया, क़ब्रिस्तान और मस्जिद का दर्ज होना है वक्फ संपत्ति की पहचान

Punjab-Haryana High Court ने एक अहम निर्णय में स्पष्ट किया है कि यदि किसी भूमि को राजस्व रिकॉर्ड में तकिया, क़ब्रिस्तान या मस्जिद के रूप में दर्ज किया गया है, तो वह भूमि वक्फ संपत्ति मानी जाएगी, भले ही उस भूमि का लंबे समय से मुस्लिम समुदाय द्वारा उपयोग न किया जा रहा हो। यह फैसला एक विवादित भूमि मामले में दिया गया है, जिसमें ग्राम पंचायत द्वारा वक्फ ट्रिब्यूनल के निर्णय को चुनौती दी गई थी। ट्रिब्यूनल ने भूमि को वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया था और ग्राम पंचायत को उसकी कब्जेदारी में हस्तक्षेप करने से रोक दिया था।

भूमि का इतिहास और विवाद

कपूरथला जिले के बुढो पुंदर ग्राम पंचायत ने वक्फ ट्रिब्यूनल के फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें वक्फ ट्रिब्यूनल ने 1922 में महाराजा कपूरथला द्वारा शहीद शाह के दो बेटों, निक्के शाह और सलामत शाह को दी गई भूमि को वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया था। यह भूमि तकिया, क़ब्रिस्तान और मस्जिद के रूप में दर्ज थी। पाकिस्तान विभाजन के बाद, शाह भाइयों ने पाकिस्तान का रुख किया और इस भूमि का स्वामित्व ग्राम पंचायत के नाम पर दर्ज हो गया।

विभाजन के बाद 1966 में एक नए सर्वेक्षण में, राज्य को इस भूमि का मालिक घोषित किया गया और इसे ग्राम पंचायत की मस्जिद, क़ब्रिस्तान और तकिया के रूप में वर्गीकृत किया गया। ट्रिब्यूनल ने इस भूमि को वक्फ संपत्ति घोषित किया और ग्राम पंचायत को इसकी कब्जेदारी में हस्तक्षेप करने से रोक दिया।

Punjab-Haryana High Court का अहम फैसला,  भूमि के राजस्व रिकॉर्ड में तकिया, क़ब्रिस्तान और मस्जिद का दर्ज होना है वक्फ संपत्ति की पहचान

हाई कोर्ट का निर्णय

पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट ने इस मामले में ग्राम पंचायत के तर्क को नकारते हुए कहा कि वक्फ ट्रिब्यूनल को यह आदेश देने का अधिकार था। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि राजस्व रिकॉर्ड में शमलात देह (ग्राम के सामूहिक भूमि) के रूप में दर्ज भूमि का कानूनी महत्व नहीं होता। यह भूमि तब भी वक्फ संपत्ति मानी जाएगी, जब राजस्व रिकॉर्ड में उसे शमलात देह के रूप में दर्ज किया गया हो। कोर्ट ने कहा कि संबंधित राजस्व रिकॉर्ड में वर्गीकरण कॉलम में जो भी प्रवेश होता है, वही मान्य होता है, चाहे वहां शमलात देह के रूप में कोई प्रवेश हो।

हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि वक्फ ट्रिब्यूनल द्वारा दी गई यह घोषणा कि भूमि वक्फ संपत्ति है, और ग्राम पंचायत को इस पर कब्जा करने से रोकने के आदेश पूरी तरह से वैध हैं और कानूनी रूप से सही हैं। अदालत ने यह माना कि भले ही भूमि का लंबे समय से मुस्लिम समुदाय द्वारा उपयोग न किया जा रहा हो, लेकिन उस भूमि को संरक्षित रखना आवश्यक है।

वक्फ संपत्ति का संरक्षण

कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा कि किसी भूमि के तकिया, क़ब्रिस्तान और मस्जिद के रूप में दर्ज होने का मतलब यह है कि वह भूमि वक्फ संपत्ति है और उसे वक्फ बोर्ड के अधिकार में माना जाएगा। इसका मतलब यह है कि भूमि का उपयोग यदि लंबे समय से न भी किया गया हो, तो भी उसे संरक्षित रखा जाना चाहिए और उसके अधिकार वक्फ बोर्ड को दिए जाएंगे। कोर्ट ने यह भी कहा कि वक्फ संपत्ति को संरक्षित करने की जिम्मेदारी केवल वक्फ बोर्ड की नहीं है, बल्कि समाज और सरकार की भी है, ताकि इसका सही उपयोग हो सके और यह भूमि भविष्य में किसी भी धार्मिक या सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए संरक्षित रहे।

ग्राम पंचायत की चुनौती

ग्राम पंचायत ने वक्फ ट्रिब्यूनल के फैसले को चुनौती देते हुए तर्क दिया कि भूमि शमलात देह के रूप में दर्ज है और इसे वक्फ संपत्ति नहीं माना जा सकता। ग्राम पंचायत ने यह भी कहा कि भूमि का लंबे समय से कोई उपयोग नहीं हो रहा है और इसे वक्फ संपत्ति के रूप में नहीं माना जा सकता। लेकिन हाई कोर्ट ने इस तर्क को नकारते हुए यह स्पष्ट किया कि राजस्व रिकॉर्ड में भूमि के वर्गीकरण के आधार पर ही भूमि की संपत्ति का अधिकार तय होता है, न कि इसके उपयोग या इसके साथ जुड़ी अन्य परिस्थितियों के आधार पर।

वक्फ बोर्ड का अधिकार और इसका महत्व

वक्फ संपत्तियां भारत के मुस्लिम समुदाय के धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत का अहम हिस्सा हैं। वक्फ बोर्ड इन संपत्तियों का प्रबंधन करता है और यह सुनिश्चित करता है कि इनका सही तरीके से उपयोग हो। वक्फ संपत्तियों में मस्जिदें, क़ब्रिस्तान, मदरसे, और अन्य धार्मिक स्थल शामिल होते हैं, जिनका उद्देश्य समाज की धार्मिक और सांस्कृतिक जरूरतों को पूरा करना होता है।

वक्फ संपत्तियों को संरक्षित करना समाज और सरकार की जिम्मेदारी है। जब कोई भूमि वक्फ संपत्ति के रूप में घोषित की जाती है, तो उसका उद्देश्य न केवल धार्मिक गतिविधियों के लिए होता है, बल्कि समाज के हित में इसका उपयोग सुनिश्चित किया जाता है।

पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट का यह फैसला वक्फ संपत्तियों के संरक्षण और प्रबंधन से संबंधित महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश प्रस्तुत करता है। यह निर्णय यह स्पष्ट करता है कि किसी भूमि का वक्फ संपत्ति के रूप में दर्ज होना उसके उपयोग के आधार पर नहीं, बल्कि इसके वर्गीकरण और राजस्व रिकॉर्ड में उसकी स्थिति के आधार पर होता है।

इस फैसले से यह भी साफ हो गया है कि वक्फ संपत्तियों के संरक्षण और उनके उपयोग के बारे में किसी भी प्रकार की अव्यवस्था को समाप्त करना आवश्यक है। यह निर्णय वक्फ बोर्ड के अधिकारों को मजबूत करता है और यह सुनिश्चित करता है कि वक्फ संपत्तियां समाज की सेवा में सही तरीके से संरक्षित और उपयोग की जाएं।

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