सत्य खबर, चंडीगढ़ ।It has been proved that the BJP government is neither of the farmer nor of the youth, it is only of the rich.
सांसद दीपेन्द्र हुड्डा ने आज कांग्रेस मुख्यालय पर पत्रकार वार्ता करते हुए कहा कि देश के अन्नदाता पर थोपे गये तीन काले कृषि क़ानूनों का कड़वा सच अब भारत की जनता के सामने आ गया है। मशहूर पत्रकार मंच वेबसाइट ‘द रिपोर्टर्स कलेक्टिव’ के खुलासे से साबित हो गया है कि भाजपा सरकार न किसान की है न जवान की है, ये सिर्फ धनवान की है। तीनों कृषि कानून किसानों को लाभ देने के लिये नहीं ,बल्कि धनाढ्यों को लाभ पहुंचाने के लिये बनाये गये थे। देश के किसान और हम लोग इस बात को पहले से ही कहते आए हैं। उन्होंने कहा कि कोरोना की आड़ में जिस ढंग से 3 कृषि कानूनों को लागू किया गया था उससे तभी देश के किसान को षड्यंत्र की बू आ गयी थी। भाजपा सरकार कहती रही कि वो किसानों को इन तीन कृषि कानूनों के फायदे समझा नहीं पाई जबकि हकीकत ये है कि इन तीन कृषि कानूनों से होने वाले भयंकर नुकसान को किसान समझ गए। एक साल से ज्यादा समय तक चले शांतिपूर्ण संघर्ष और 750 किसानों की शहादत के बाद आखिरकार इस सरकार को तीनों काले कानून वापस लेने ही पड़े। इसके बाद से ही बीजेपी सरकार मन ही मन किसानों को अपना दुश्मन मानने लगी। बीजेपी सरकार जो भी काम करती है उसमें द्वेष भावना से किसानों की उपेक्षा करती है।
द रिपोर्टर्स कलेक्टिव’ के खुलासे के बारे में विस्तार से बताते हुए दीपेन्द्र हुड्डा ने कहा कि किसानों की आय डबल करने की आड़ में भाजपा के करीबी NRI उद्योगपति शरद मराठे द्वारा नीति आयोग को भेजे एक प्रस्ताव में कृषि सेक्टर को प्राइवेट हाथों में देने का कदम उठाया गया। जबकि 1960 से अमेरिका में रह रहे शरद मराठे का कृषि क्षेत्र से कोई लेना-देना नहीं है। सरकार ने अपने करीबी पूंजीपतियों के फायदे के लिए दलवई कमेटी की रिपोर्ट को न मानकर शरद मराठे वाली टास्क फोर्स द्वारा जमाखोरी पर अंकुश लगाने और कीमतों में उतार चढ़ाव को नियंत्रित करने वाले आवश्यक वस्तु अधिनियम को ख़त्म करने की सिफारिश को तुरंत मान लिया, जिसमें 3 काले क़ानूनों में से 1 के तौर पर बिचौलियों को जमाखोरी की इजाजत देने और एमएसपी पर खरीदने की अनिवार्यता न होने की सिफारिश शामिल थी।
Also Read:पंजाब ने एक बार फिर निभाया बड़े भाई का फर्ज, बाढ़ से तबाह लोगों के लिए बने मसीहा
उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार को अपने करीबी उद्योगपतियों के ड्राफ्ट पर इतना ज्यादा भरोसा था कि इस बिल को संसद में लाने की बजाय उसने इसे अध्यादेश जारी करके लागू कर दिया। उस समय कोरोना काल चल रहा था और देश में कहीं किसी किसान संगठन ने ऐसी कोई डिमांड नहीं की थी, कहीं किसान आंदोलन नहीं हो रहा था बावजूद इसके अध्यादेश लाने की क्या जरुरत थी? सरकार का किसानों के साथ जो समझौता हुआ था वो भी किसान के साथ एक विश्वासघात साबित हुआ और इस सन्दर्भ में जो कमेटी गठित करने की बात हुई थी उसमें भी किसान संगठनों को कोई तवज्जो नहीं दी गई, अपितु कमेटी में कई नाम ऐसे डाल दिए जो किसानों के खिलाफ बयानबाजी करते थे और तीनों कृषि कानूनों की वकालत करते थे।
एक सवाल के जवाब में दीपेन्द्र हुड्डा ने बताया कि कांग्रेस पार्टी के रायपुर महाधिवेशन में हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा की अध्यक्षता वाली कृषि समिति की सिफारिशों पर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने संकल्प लिया कि MSP किसानों का कानूनी अधिकार होना चाहिए। एमएसपी से कम कीमत पर कृषि उपज की खरीद को दंडनीय अपराध बनाया जाएगा। साथ ही MSP की गणना C2+50% फॉर्मूले के आधार पर होना चाहिए जैसा कि स्वामीनाथन आयोग ने सुझाव दिया था और बाद में 2010 में हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा की अध्यक्षता वाले मुख्यमंत्रियों के समूह की रिपोर्ट में सिफारिश की गई थी, जिसमें बंगाल, बिहार और पंजाब के मुख्यमंत्री भी शामिल थे।
Also Read:पाकिस्तान में भीषण सड़क हादसा, पिकअप वैन से टक्कर के बाद बस में लगी आग, 18 यात्रियों की जलकर मौत