सत्यखबर सफीदों (महाबीर मित्तल) – आदमी को आत्मा में परमात्मा के दर्शन करने चाहिए। उक्त उद्गार वेदाचार्य दंडी स्वामी निगमबोध तीर्थ महाराज ने नगर की गुरूद्वारा कालोनी स्थित संकीर्तन भवन में श्रृद्धालुओं को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि साधना के सिद्धांत पर ही आत्मदर्शन के परम पद को प्राप्त किया जा सकता है। धर्म मनुष्य को लोक व्यवहार की शिक्षा देता है ताकि लोक में उसका अभ्युदय हो। योगाचार्य महर्षि पताजंलि ने लोक व्यवहार के साथ समाधि योग का भी सहारा लिया।
READ THIS:- गुरुग्राम पुलिस ने कुख्यात बदमाश लवली को पकड़ने में मिली कामयाबी
समाधि योग से मन की विषमताएं दूर होती हैं। समाधि का मुख्य लक्ष्य मन में से रजोगुण तथा तपोगुण को दूर करके सद्गुण लाना है। साधक का परम लक्ष्य आत्मदर्शन है और आत्मदर्शन में जाकर साधना समाप्त हो जाती है। आत्मदर्शन शिक्षा प्रणाली आत्मा को ही परमात्मा के रूप में स्वीकार करती है। आत्मा से परमात्मा को अलग करके जानना या देखना इसी को आत्मदर्शन कहते हैं। परमात्मा रूपी ज्योति आत्मा के अतिरिक्त कहीं पर भी नहीं मिल सकती है। संसार का कोई भी प्राणी आत्मा की ज्योति से रिक्त नहीं है। मनुष्य बुद्धि से प्रत्येक चीज को जान सकता है तथा प्रत्येक मनुष्य के लिए बुद्धि ही एक ज्योति के समान है। जब बुद्धि से आवरण हट जाएगा तो अंर्तजीवन स्पष्टï रूप से दिखेगा।
चीजों को देखने के लिए नेत्र हैं जो ब्राह्म चीजों को देखते हैं और जानते हैं। जब तक शरीर में आत्मा है तब तक शरीर की बहुत भारी कीमत है और जब आत्मा शरीर का साथ छोड़ जाती है तब शरीर की कोई कीमत नहीं रहती है। रावण बड़ा वीर व ज्ञानवान राजा था। रावण से तीनों लोक कांपते थे लेकिन श्रीराम ने रावण अपने पराक्रम से मार डाला। जब रावण जीवित था तब लंका में उसकी जय-जयकार थी और रावण की मौत के पश्चात सोने की लंका में उसका कुछ नहीं रहा।
Scrap metal industry certifications Ferrous metal recycling and reclamation facility Iron recyclables processing
Ferrous material refurbishment, Iron recycling and salvage, Scrap metal utilization centers
Aluminum recycling consultancy Aluminium scrap material repurposing Scrap metal reclamation services