सत्यखबर, जींद।
Unique Stories of Chaudhary Dal Singh चौधरी दल सिंह की पहचान हरियाणा की राजनीति में खुंडा झोटा और पानी का बादल के रूप में होती है। हरियाणा के पहले सिंचाई मंत्री के रूप में चौधरी दल सिंह ने नहरों का जाल बिछाया। ङ्क्षसचाई के नजरिए से अनूठे काम किया। इसीलिए उन्हें पानी का बादल वाले नेता के रूप में पहचान मिली। चौधरी दल ङ्क्षसह मौकापरस्त सियासत से दूर थे। सिद्धांतों की सियासत करते थे। साथ ही अपनी धून के पक्के थे। जिस काम को हाथ में लेते थे, अंजाम तक पहुंचाते थे। कई चुनावों में हार मिलने के बाद अदालत की शरण ली। लड़ाई लड़ी और जीती भी। इसीलिए उन्हें खुंडा झोटा की संज्ञा दी गई। इसके पीछे हरियाणा के सियासी गलियारों में यह प्रसिद्ध हुआ कि चौधरी दल सिंह जब पीछे पड़ते हैं तो खुंडे झोटे की तरह पड़ते हैं। वे 1952 से लेकर 1977 तक हरियाणा की सियासत में पूरी तरह से सक्रिय रहे। कई बार विधायक बने। मंत्री भी रहे। खुद के खराब स्वास्थ्य के कारण ही उन्होंने सियासत से रिटायरमेंट ले ली थी। आज उनका जन्मदिन है। ऐसे में चौधरी दल ङ्क्षसह की सिद्धांतवादी राजनीति, किस्से और कहानियां जानना जरूरी हो जाता है।
15 जनवरी 1915 को चौधरी दल ङ्क्षसह का जन्म हुआ। चौधरी दल सिंह क्रांतिकारी सुभाष चंद्र बोस की ओर से स्थापित की गई भारतीय राष्ट्रीय सेना के भर्ती अधिकारी थे। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान वे जर्मनी व इटली में युद्धबंदी रहे। साल 1941 में तीसरे मोटर ब्रिगेड के अग्रिम दल के नेता के रूप में विदेश गए। जनरल रोमेल की सेना द्वारा आठ जनवरी 1941 को लीबिया के एलमिचिल में खुफिया एनसीओ के रूप में कार्य करते हुए युद्ध के कैदियों को लिया गया। इस दौरान यूरोप के विभिन्न देशों में साढ़े चार साल के लिए युद्ध बंदी रहे। खास बात यह है कि चौधरी दल ङ्क्षसह ने जर्मनी में अन्ना-बर्ग में हिंदी स्कूल खोला। स्कूल में करीब एक हजार पीओडब्ल्यू को हिंदी पढ़ाया। जर्मनी में भारतीय सेना के भर्ती अधिकारी के रूप में काम किया। खैर आजादी के बाद चौधरी दल सिंह समाजसेवा और सियासत में सक्रिय हो गए।
पैप्सू के समय वे 16 जनवरी 1952 को पहली बार जींद से विधायक चुने गए। इसके बाद 1957 में दूसरी बार विधानसभा में पहुंचे। 6 नवम्बर 1956 से 31 मार्च 1957 में संयुक्त पंजाब के समय जींद से विधायक चुने गए। इसी प्रकार से 1962 में जींद से चौथी बार विधायक निर्वाचित हुए। हरियाणा गठन के बाद 1967 में हुए मध्यावधि चुनाव में वे जुलाना से विधायक बने। 1968 में दूसरी बार जुलाना से जबकि 1972 में वे जींद से विधायक चुने गए। अपने जीवन में चौधरी दल सिंह ने लम्बा संघर्ष किया। दादरी में विलय आंदोलन के दौरान चौधरी दल सिंह की बड़ी भूमिका रही। इस आंदोलन को प्रजा मंडल आंदोलन के नाम से जाना जाता है। 1970 में हरियाणा सरकार द्वारा चंडीगढ़ आंदोलन के समय गिरफ्तार किया गया। इसी प्रकार से 13 फरवरी 1973 को हरियाणा सरकार द्वारा शिक्षक आंदोलन के समय गिरफ्तार किया गया। हरियाणा सरकार के आदेश के तहत 30 मई1973 को गिरफ्तार किया गया। इसी प्रकार से जींद में बिजली कटौती के खिलाफ जुलूस का नेतृत्व करते हुए 5 मई 1973 को गिरफ्तार किया गया। 26 मई 1975 को मीसा के तहत गिरफ्तार किया गया और 11 मई 1976 को स्वास्थ्य आधार पर रिहा किया गया। अपने जीवन में वंचितों, दलितों के हकों के लिए उन्होंने खूब काम किया। इसके साथ ही शिक्षा की अलख जगाने को लेकर काम किया। वे लम्बे समय तक जाट हाई स्कूल जींद के महासचिव रहे।
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1954 से लेकर 1959 तक वे जिला कांग्रेस कमेटी संगुरुर, जबकि विकसित क्षेत्र सलाहकार बोर्ड पैप्सू के उपाध्यक्ष भी रहे। 1961 में पंचायत समिति जींद, 1965 में बाजार समिति जींद के पहले प्रधान चुने गए। वे हरियाण सरकार में 1 नवम्बर 1966 से लेकर 23 मार्च 1967 तक सिंचाई और ऊर्जा मंत्री रहे। 1947 से 1948 तक वे जींद राज्य प्रजा मंडल के अध्यक्ष निर्वाचित हुए और 1949 में पैप्सू यूथ कांग्रेस के उपाध्यक्ष भी रहे। इसके अलावा अखिल भारतीय कांग्रेस, पंजाब प्रदेश कांग्रेस में भी विभिन्न पदों पर भी रहे। चौधरी दल सिंह के बेटे परमिंद्र सिंह ढूल भी हरियाणा विधानसभा के सदस्य रह चुके हैं। चौधरी दल सिंह के पौत्र रविंद्र सिंह ढूल पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में अधिवक्ता हैं। Unique Stories of Chaudhary Dal Singh
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