कहीं लुप्त ना हो जाएं हमारे पारंपरिक त्योहार
संतोष दहिया ने मनाया तीज का त्योहार
महिला मंडली के साथ मनाई तीज
झूला झूलकर गाए तीज के गीत
सत्य खबर कुरुक्षेत्र
नींबा कै निबोली लागी, सामणीया कद आवैगा, जीयो हे! मेरे मां के जाए, कोथली कद ल्यावैगा..एक समय तक देहाती ग्रामीण परिवेश में अगर किसी बड़े-बुजुर्ग से हाल-चाल पूछा जाता था, तो उसका एक ही जवाब होता था।
भाई तीजां बरगे टूट रहे सै…समय के बदलाव के साथ तीज के त्योहार ने अपनी खूशबू और मिठास दोनों खो दी है….सावन महीने में मानसून की ठंडी फुहारों के बीच ग्रामीण आंचल के देहात से जुड़े तीज के त्यौहार का अपना एक विशेष महत्व है
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एक तरफ जहां तीज का त्योहार लुप्त हो रहा है वहीं कोरोना काल में लोग अपने घरों में कैद हैं…ऐसे हालात में सर्व जात सर्व खाप महापंचायत महिला विंग की राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. संतोष दहिया ने पहल करते हुए कोरोना काल में भी उस हरियाणवी संस्कृति को जीवंत रखने का काम किया है
उन्होंने बाकायदा झूला झूल कर और लोक गीतों के साथ महिलाओं की मंडली के साथ तीज का त्यौहार मनाया…और लोगों को ये संदेश दिया है कि हमें अपने लोक त्योहारों को भूलना नहीं चाहिए
बता दें कि सावन महीना शुरू होते ही गांव के लोग अपनी शादीशुदा बेटियों को तीज की तील, मेंहदी, घेवर, पतासे और घर में बने पकवान को कोथली के रूप में भेजते है। अपने घर से कोथली में आई इसी मेंहदी को बेटी अपने ससुराल में तीज के त्योहार पर लगाकर झूला झूलती थी…
ऐसे में शादीशुदा बेटियों के लिए सावन के त्यौहार तीज का अपना एक लगाव रहा है। कुछ साल पहले तक सवान महीना शुरू होते ही गांव की हर गली में तीज की पींघ को देखा जा सकता है। तीज की मेंहदी व पेड़ो की टहनियों पर लहराती पींघ को अनेक बार हरियाणवीं सिनेमा के सुनहरे पर्दे पर दिखाया जाता रहा है..
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