सत्य खबर, चंडीगढ़
महाराष्ट्र में चल रहे पांच दिनों से सियासी उठापटक के बीच अब उद्धव ठाकरे की कुर्सी जानी तय है. शिवसेना के दो तिहाई विधायकों को लेकर एकनाथ शिंदे मुंबई से 2700 किमी दूर गुवाहाटी में कैंप कर रखा है
ऐसे में शिवसेना में अब दो फाड़ के आसार बनते दिख रहे हैं और बागी विधायकों को दलबदल कानून का भी खतरा नहीं है. इस तरह उद्धव के हाथों से महाराष्ट्र की सत्ता के साथ-साथ,,,, शिवसेना को ‘ठाकरे मुक्त’ बनाने की दिशा में भी एकनाथ शिंदे कदम बढ़ा चुके है।
शिवसेना के बागी नेता एकनाथ शिंदे की अगुआई में उद्धव ठाकरे के खिलाफ जिस तरह बगावत हुई है, उसके चलते सिर्फ सरकार पर ही नहीं बल्कि पार्टी पर भी खतरा मंडराने लगा है. शिंदे उसी तरह अपने सियासी कदम बढ़ा रहे हैं, जिस तरह से सांसद पशुपति पारस ने अपने भतीजे चिराग पासवान के हाथों से एलजेपी की कमान को छीन लिया था. एलजेपी के छह में से पांच सांसदों को पशुपति पारस ने अपने साथ मिला लिया था. महाराष्ट्र में शिवसेना की सियासत में उसी तरह की पठकथा लिखी जा रही है.
एकनाथ शिंदे भी शिवसेना के दो तिहाई विधायकों को अपने साथ जोड़ रखा है और अब अगला कदम पार्टी को अपने हाथों में लेने का है. ऐसे में गुवाहाटी में मौजूद शिवसेना के बागी विधायकों ने बैठक कर एकनाथ शिंदे को विधायक दल का अपना नेता चुन लिया है. साथ ही बागी गुट के विधायकों के हस्ताक्षर वाला पत्र डिप्टी स्पीकर नरहरि जिरवाल और राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी को भेजा दिया है, जिसमें कहा गया कि असली शिवसेना वही है जिसके नेता एकनाथ शिंदे है. इससे साफ है कि शिवसेना पर काबिज होने के लिए पार्टी के चुनाव चिह्न और झंडे को लेकर भी घमासान छिड़ सकता है.
बागी नेता शिंदे के साथ विधायकों की संख्या इतनी है कि अगर शिवसेना में दो फाड़ होते हैं तो उन पर दलबदल कानून का भी खतरा नहीं होग. 2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में शिवसेना के 56 विधायक जीते थे, जिनमें से एक विधायक का निधन हो चुका है. इसके चलते 55 विधायक फिलहाल शिवसेना के हैं. ऐसे में एकनाथ शिंदे का दावा है कि उनके साथ 37 विधायक शिवसेना के हैं. इस तरह से एकनाथ शिंदे अगर कोई कदम उठाते हैं तो दलबदल कानून के तहत कार्रवाई भी नहीं होगी.
दरअसल, दलबदल कानून कहता है कि अगर किसी पार्टी के कुल विधायकों में से दो-तिहाई के कम विधायक बगावत करते हैं तो उन्हें अयोग्य करार दिया जा सकता है. इस लिहाज से शिवसेना के पास इस समय विधानसभा में 55 विधायक हैं. ऐसे में दलबदल कानून से बचने के लिए बागी गुट को कम के कम 37 विधायकों (55 में से दो-तिहाई) की जरूरत होगी जबकि शिंदे अपने साथ 37 विधायकों का दावा कर रहे हैं. ऐसे में उद्धव ठाकरे के साथ 17 विधायक ही बच रहे हैं.
शिवसेना में दो फाड़ होने की पूरी संभावना दिख रही है. ऐसी स्थिति में शिवसेना को भी कब्जाने की जंग उद्धव और शिंदे के बीच छिड़ सकती है. इस तरह शिंदे खेमा शिवसेना के साथ-साथ पार्टी के चुनाव चिन्ह ‘धनुष और बाण’ पर दावा कर सकते हैं. ऐसे में शिवसेना पर काबिज होने की जंग उद्धव और एकनाथ शिंदे के बीच छिड़ती है तो मामला चुनाव आयोग से कोर्ट तक पहुंच सकता है
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