सत्य खबर
आज सरकार देशभर के किसानों को काला कानून लाकर बंदिश में बांधना चाहती है। ऐसे में न हम उस बॉर्डर से डरे थे, न इस बॉर्डर पर डरेंगे। कृषि कानूनों को खत्म कराकर ही घर लौटेंगे।
रणिका गांव के किसान सरताज बोले- हमारा दर्द और न बढ़ाएं
खेत की जमीन पाकिस्तान बॉर्डर पर लाइन ऑफ कंट्रोल एलओसी के उस पार है। हम अपनी जमीन पर भी खौफ के साए में खेती करते हैं। 6 से 7 घंटे के लिए वाघा बॉर्डर खुलता है। बीएसएफ की मौजूदगी में ही फसलाें की कटाई, बुआई और सिंचाई होती है। अब केंद्र सरकार नए कानून लाकर हमारा दर्द और बढ़ाना चाहती है। इसे हम सहन नहीं करेंगे। उन्होंने कहा कि इस बॉर्डर और उस बॉर्डर में भी कई समानताएं हैं। जैसे, कम सिग्नल होने की दिक्कत से इंटरनेट में बाधा थी यहां भी करीब-करीब वैसी ही है। घरवालों से सही तरह बात भी नहीं हो पा रही। पाक बॉर्डर से लगते पंजाब के गांवों से एक हजार से अधिक किसान आंदोलन में भागीदारी कर रहे हैं। पंजाब के गांव-गांव में मुनादी करा राशन-पानी के साथ भागीदारी का आह्वान किया है।
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बॉर्डर पर संकट तो झेल लेंगे, पर सरकार से दुख नहीं
बाघा बॉर्डर से दो किमी दूर अमृतसर के रणिका गांव से पहुंचे सरताज ने कहा- वे पहले ही बॉर्डर पर खेती का दंश झेल रहे हैं। खेत में जाने को बॉर्डर का गेट खुलने का इंतजार रहता है। सुबह 9 बजे से शाम 4 बजे तक ही खेत में जाने की अनुमति है। वहां तो बस नहीं चलता अब सरकार तो परेशान न करे।
सप्ताह में तीन दिन खुलता है गेट तभी संभालते हैं खेती
अमृतसर के रणगढ़ गांव के किसान सुरजीत सिंह ने बताया कि चार में से तीन एकड़ जमीन बॉर्डर के पार है। सप्ताह में तीन दिन ही गेट खुलता है। तभी जाकर खेत संभालते हैं। बिजली भी उसी टाइम आती है। तनाव का माहौल होता है तो फसल कटाई भी लेट हो जाती है। हम किसान हैं खेती ही करेंगे।
बॉर्डर पर खेती की राहत का मुआवजा भी हुआ बंद
बाघा बॉर्डर के पास खेती करने वाले बलविंद्र सिंह अपने भाई के साथ किसान आंदोलन में पहुंचे हैं। उन्होंने बताया कि बॉर्डर पर खेती होने की चुनौतियों के बीच हाईकोर्ट से मुआवजा देने को आदेश हुए थे। एक साल उन्हें 10 हजार प्रति एकड़ मुआवजा भी मिला। पिछले तीन-चार से नहीं मिल रहा।
उम्र बीत गई पर किसानों का ऐसा संघर्ष नहीं देखा
मणि चिमरंगा गांव के 70 वर्षीय सरदार सरम सिंह ने बताया कि आजादी के बाद भारत-पाक बॉर्डर बन गया। वे बचपन से इस उम्र तक यहीं खेती करते आए हैं। वहां का इतना डर नहीं हैै। इतना लंबा आंदोलन उन्होंने पहले नहीं देखा। 50 दिनों से पहले पंजाब और अब दिल्ली बॉर्डर पर किसान डटे हैं।
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