सत्यखबर
पिछले छह-सात सालों के दौरान वैसे तो देश के हर प्रमुख संवैधानिक संस्थान ने सरकार के आगे ज़्यादा या कम समर्पण करके अपनी साख और विश्वसनीयता पर बट्टा लगवाया है, लेकिन चुनाव आयोग की साख तो लगभग पूरी तरह ही चौपट हो गई है। हैरानी की बात यह है कि अपने कामकाज और फ़ैसलों पर लगातार उठते सवालों के बावजूद चुनाव आयोग ऐसा कुछ करता नहीं दिखता, जिससे लगे कि वह अपनी मटियामेट हो चुकी साख को लेकर जरा भी चिंतित है। ताज़ा मामला है राज्यसभा की खाली हुई कुछ सीटों का। पिछले दिनों पांच राज्यों से राज्यसभा की 8 सीटें खाली हुई हैं, जिनके लिए उपचुनाव होना है। इन 8 सीटों में 2 सीटें पश्चिम बंगाल की, 3 सीटें तमिलनाडु की और 1-1 सीट मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र तथा असम की हैं। लेकिन चुनाव आयोग ने इनमें से फ़िलहाल सिर्फ़ पश्चिम बंगाल की 1 सीट के लिए उपचुनाव कराने का ऐलान किया है। इस सीट के लिए 9 अगस्त को उपचुनाव होगा, जिसके लिए 22 जुलाई को अधिसूचना जारी हो गई है।तमिलनाडु में भी राज्यसभा की 3 सीटें खाली हुई हैं।
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इनमें से 1सीट ऑल इंडिया अन्नाद्रमुक के ए. मोहम्मद जान की है, जिनका इसी साल मार्च में निधन हो गया था। यानी यह सीट चार महीने से खाली है लेकिन चुनाव आयोग ने इस पर चुनाव कराने का फ़ैसला नहीं किया है। मध्य प्रदेश और असम की एक-एक सीट बीजेपी सांसदों के इस्तीफे से खाली हुई हैं। मध्य प्रदेश में थावरचंद गहलोत ने इसी महीने राज्यसभा से इस्तीफा दिया है। उन्हें पिछले दिनों केंद्रीय मंत्रिपरिषद से मुक्त कर कर्नाटक का राज्यपाल बनाया गया है। असम में बिस्बजीत दैमरी ने विधानसभा का चुनाव जीतने के बाद मई में राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया था।
इस सीट से सर्बानंद सोनोवाल को राज्यसभा में भेजा जाएगा, जो पिछले दिनों केंद्र में मंत्री बनाए गए हैं। ये दोनों ही सीटें के खाते में जाना है लेकिन यहां भी अभी चुनाव नहीं कराया जा रहा है। मध्य प्रदेश और असम की तरह महाराष्ट्र में भी राज्यसभा की एक सीट खाली है जो कांग्रेस सांसद राजीव सातव के निधन से खाली हुई है, लेकिन इसके लिए भी चुनाव की घोषणा नहीं हुई है। दरअसल इस सीट पर चुनाव रोके जाने की भी कोई वाजिब वजह नहीं है। माना जा रहा है कि जिस तरह राज्य में विधान परिषद की 12 सीटों पर मनोनयन का मामला पिछले कई महीनों से राज्यपाल ने रोक रखा है, उसी तरह राज्यसभा की इस एक सीट का चुनाव भी रुकवा दिया गया है।
इसे राज्य में सत्तारुढ़ गठबंधन की तीनों पार्टियों के बीच चल रही खींचतान से भी जोड़ कर देखा जा रहा है और माना जा रहा है कि अगर अगले कुछ दिनों में किसी वजह से महाविकास अघाडी की सरकार गिर जाती है तो राज्यसभा की सीट तो बीजेपी के खाते में आएगी ही, साथ विधान परिषद में भी बीजेपी अपने 12 सदस्यों को मनोनीत करा सकेगी। जो भी हो, राज्यसभा की आठों खाली सीटों के लिए एक साथ उपचुनाव न कराने से कई सवाल खड़े हो रहे हैं। एक ही राज्य की दो राज्यसभा सीटों के चुनाव राजनीतिक कारणों से अलग-अलग समय पर कराने का नाटक हाल के वर्षों में वह कई बार दोहरा चुका है। पिछले साल उत्तर प्रदेश में और उससे पहले गुजरात में भी आयोग ने ऐसा ही किया था। तीन महीने पहले पांच राज्यों के, उससे पहले कुछ अन्य राज्यों के विधानसभा चुनाव तथा 2019 के लोकसभा चुनाव का कार्यक्रम तय करने में भी उसने ऐसा ही किया था। तीन महीने पहले केरल की दो राज्यसभा सीटों का द्विवार्षिक चुनाव तो उसने सीधे-सीधे क़ानून मंत्रालय के निर्देश पर रोका था, जिसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने उसे कड़ी फटकार लगाते हुए निर्धारित समय पर चुनाव कराने का निर्देश दिया था।
स्पष्ट तौर पर सरकार के इशारे पर दिखाई जाने वाली चुनाव आयोग की इस कलाबाज़ी से यह साफ़ हो गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ यानी देश में सारे चुनाव एक साथ कराने का जो इरादा अक्सर दोहराते रहते हैं, वह महज शिगूफेबाज़ी के अलावा कुछ नहीं है। सवाल यही है कि जो चुनाव आयोग एक राज्य की दो या पांच राज्यों की आठ राज्यसभा सीटों या दो राज्यों के विधानसभा चुनाव एक साथ नहीं करा सकता, वह पूरे देश में सारे चुनाव क्या खा कर एक साथ कराएगा?
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