हरियाणा में आबकारी विभाग के लिए अब लॉकडाउन के दौरान चोरी हुई शराब से हुए राजस्व के नुकसान की भरपाई कराना कड़ी चुनौती बन गई है। गृहमंत्री अनिल विज के एक आदेश के बाद उन ठेकेदारों की परेशानी और बढ़ी हुई है जिन्होंने लॉकडाउन में अपने स्टॉक में से शराब बिक्री करवा दी। पहले ठेकेदार यह मान रहे थे कि जो शराब कम होगी,उसके लिए पुलिस थाने में चोरी की रिपोर्ट दर्ज करा देंगे मगर विज के आदेश के बाद कोई थानेदार चोरी की रिपोर्ट दर्ज करने को तैयार नहीं हुआ।अब प्रदेश भर में लॉकडाउन के दौरान शराब की अवैध बिक्री को लेकर सरकार ने विशेष जांच दल (एसआइटी) गठित कर दिया है। इससे शराब के ठेकेदारों के सामने अपना स्टॉक पूरा करने की चुनौती बनी हुई है। चोरी की रिपोर्ट दर्ज न होने पर ठेकेदार फिलहाल कम हुई शराब को अपनी बिक्री बता रहे हैं। जो ठेकेदार लॉकडाउन में बेची गई शराब को अब अपनी बिक्री बता रहे हैं,उससे ठेकेदार तो कुछ हद तक फंसने से बच सकते हैं,मगर आबकारी विभाग को राजस्व का नुकसान होता है। 31 मार्च को बचे हुए शराब के स्टाक को जब नए ठेकेदार को दिया जाता है तो विभाग उससे ट्रांसफर फीस और पिछले व नए साल की कीमत का अंतर भी वसूलता है। आबकारी विभाग के सेवानिवृत अधिकारी बताते हैं कि ठेकेदार यदि एक ही दिन में सामान्य दिनों से अधिक शराब बिक्री दिखाते हैं तो इस पर भी विभाग कार्रवाई कर सकता है। जिला स्तर पर उपायुक्तों ने भी स्टॉक की जांच के आदेश दिए हैं। ऐसे में इस जांच कमेटी को असलियत सामने लानी चाहिए। देशव्यापारी लॉकडाउन लागू होने के बाद राज्य में 25 मार्च सायं 5 से 26 मार्च दोपहर 12 तक शराब के ठेके बंद हो गए थे। लॉकडाउन में चोरी हुई शराब की जांच को लेकर राज्य स्तर पर एसआइटी गठित होने से उन शराब ठेकेदारों की भी मुश्किल बढ़ गई है जो राजनीतिक संरक्षण में अपना धंधा करते थे। मौजूदा राजनीतिक परिस्थितियों को देखते हुए राजनीतिक लोगों ने शराब के ठेकेदारों को खुद से दूर कर दिया है। अन्यथा लॉकडाउन के दौरान भी ये ठेकेदार अपने राजनीतिक संरक्षकों के यहां जरूरतमंदों की सेवा के नाम पर सक्रिय नजर आते थे। दक्षिण हरियाणा और रोहतक व हिसार मंडल में शराब का कारोबार करने वालों की एक बड़ी चिंता यह भी है कि राज्य स्तरीय एसआइटी में सुभाष यादव शामिल हैं। यादव इन क्षेत्रों के उन सभी ठेकेदारों को जानते हैं जो राजनीतिक संरक्षण में गलत कार्य करते रहे हैं।
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