सत्य खबर, दिल्ली
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) ने पूर्व वीसी एम. जगदीश कुमार के कार्यकाल में छात्रों से करीब 30 लाख रुपये का जुर्माना वसूला। 2016 से 2021 के दौरान विश्वविद्यालय परिसर में छात्रों ने अनेक आंदोलन किए थे। इनमें कन्हैया कुमार और उमर खालिद जैसे छात्र भी आंदोलन में शामिल थे। विश्वविद्यलय प्रशासन ने उन पर विभिन्न नियमों को तोड़ने का आरोप लगाया और उन पर भारी जुर्माना लगाया। इस दौरान कुल 433 छात्रों पर अर्थदंड लगाया गया, लेकिन केवल 350 छात्रों को ही जुर्माने का भुगतान करना पड़ा। शेष छात्रों को कोर्ट से राहत मिल गई।
एक आरटीआई के जवाब में जेएनयू प्रशासन ने बताया है कि इन 350 छात्रों को जुर्माने के रूप में कुल 29,86,827 रुपये (29 लाख 86 हजार 827 रुपये) का भुगतान करना पड़ा। जिस वर्ष पूर्व वीसी एम. जगदीश कुमार ने अपना कामकाज संभाला था, उस वर्ष 2016 में ही 74 छात्रों पर कार्रवाई की गई थी, लेकिन इनमें से केवल 69 छात्रों को ही जुर्माना देना पड़ा था। पहले वर्ष ही एम. जगदीश कुमार के कार्यकाल में विश्वविद्यालय ने छात्रों से कुल 2,36,500 रुपये का जुर्माना वसूला।
कोरोना काल में भी वसूला जुर्माना
इसी प्रकार 2017 में 85 छात्रों से 6.31 लाख रुपये, 2018 में 121 छात्रों से 15.78 लाख रुपये, 2019 में 50 छात्रों से 3.56 लाख रुपये, 2020 में आठ छात्रों से 62 हजार रुपये और 2021 में 17 छात्रों से 1.22 लाख रुपये जुर्माना वसूला गया। कोरोना के गंभीर काल में भी विश्वविद्यालय छात्रों से जुर्माना वसूलने में पीछे नहीं रहा था। 2019 के अंत और 2020 के कोरोना काल में लगभग 70 छात्रों से जुर्माना वसूला।
क्यों वसूला जुर्माना
दरअसल, जेएनयू केवल अपने शिक्षण स्तर के लिए ही पूरी दुनिया में नहीं जाना जाता, बल्कि यहां पर छात्र विभिन्न राजनीतिक-सामाजिक विषयों पर खुलकर अपना पक्ष भी रखते रहे हैं। इसे छात्रों को राजनीतिक आंदोलन की सीख देने वाले एक केंद्र के रूप में भी देखा जाता है। देश-दुनिया में हर घटने वाली महत्त्वपूर्ण घटना की छाप यहां के आंदोलनों में स्पष्ट दिखाई पड़ती रही है। संभवतया यही कारण है कि जेएनयू से निकले अनेक छात्रों ने देश की राजनीति में बेहद महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
इसी क्रम में, जब केंद्र सरकार ने कश्मीर से अनुच्छेद 370 के कुछ अंश हटाया, और अनुच्छेद 35ए को निरस्त कर दिया, तब इसके विरोध में विश्वविद्यालय परिसर में काफी विरोध हुआ था। कन्हैया कुमार और उमर खालिद जैसे छात्रों ने आगे बढ़-चढ़कर सरकार की नीतियों का विरोध किया। कथित तौर पर इसी दौरान जेएनयू परिसर में कश्मीर को आजाद करने और अफजल गुरु जैसे आतंकी को शहीद बताने वाली घटनाएं घटी थीं।
वीसी रह चुके हैं विवादित
इस दौरान एम. जगदीश कुमार को जेएनयू का वीसी बनाकर भेजा गया था। उन्होंने जनवरी 2016 में अपना कार्यकाल शुरू किया था, जो साल 2021 में समाप्त हो गया था, लेकिन उन्हें एक्सटेंशन मिल गया था। वे हाल ही में वीसी पद से मुक्त किए गए हैं। लेकिन उनका कार्यकाल विश्वविद्यालय के सबसे विवादित वीसी के कार्यकाल के रूप में देखा जाता है।
वामपंथी छात्रों ने आरोप लगाया कि एम. जगदीश कुमार को केवल संघी राजनीति से जुड़े होने का लाभ मिला। उन्हें एक योजना के तहत जेएनयू में भेजा गया था। वे हमेशा जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में हमेशा आरएसएस के एजेंडे को लागू करने का प्रयास करते रहे। लेकिन अब तक चूंकि जेएनयू वामपंथी राजनीति का केंद्र रहा है, लिहाजा छात्रों से उनका खूब टकराव होता रहा।
एआईएसएफ के जेएनयू संयोजक संतोष कुमार ने अमर उजाला से कहा कि हमारा संविधान हमें अपनी बात रखने की आजादी देता है। लेकिन जब छात्रों ने अपने इसी मौलिक अधिकार का विश्वविद्यालय में उपयोग किया, तो प्रशासन ने उनका दमन करने में कोई कमी नहीं रखी। जिन छात्रों ने केंद्र सरकार, भाजपा, आरएसएस या भगवा खेमे के किसी भी अंग के खिलाफ आवाज उठाई, उसे किसी न किसी रूप से चुप कराने की कोशिश की गई।
उन्होंने आरोप लगाया कि कभी विश्वविद्यालय में छात्रों की पिटाई कर और कभी जुर्माना वसूल कर छात्रों की आवाज दबाने की कोशिश की गई। भारी जुर्माने से अनेक गरीब छात्र परेशान हो गए और उन्हें अपना भविष्य अंधकारमय नजर आने लगा था। हालांकि, राहत की बात है कि विश्वविद्यालय में अभी भी आवाज उठाने की परंपरा जारी है और उनके जैसे छात्रों का प्रयास रहेगा कि जेएनयू का किसी भी प्रताड़ना के खिलाफ आवाज उठाने का पुराना गौरव बरकरार रहे।
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