सत्य ख़बर, चंडीगढ़
बुधवार शाम नाटकीय घटनाक्रम के तहत भारतीय किसान यूनियन चढ़ूनी ग्रुप से जुड़े जिले के प्रमुख नेताओं ने जाट भवन में बैठक के बाद मीडिया के सामने आकर संगठन से इस्तीफा देने का ऐलान कर दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि भाकियू अध्यक्ष गुरनाम चढ़ूनी जिस प्रकार पंजाब चुनाव में पार्टी बनाकर राजनीतिक एजेंडा चला रहे हैं, वह पूरी तरह अनुचित है। इसके विरोध में इस्तीफा देकर संगठन से अलग हो रहे हैं।
जाट भवन में बैठक के बाद पत्रकारों से वार्ता में किसान नेताओं ने कहा कि एक अराजनैतिक संगठन के बैनर तले इस प्रकार का कृत्य किसी भी दृष्टि से सही नहीं है। इसी के खिलाफ उन सबने एक साथ इस्तीफा देने का निर्णय लिया है। किसानों के संघर्ष में वह सदा साथ खड़े रहेंगे। इस्तीफा देने वालों में शामिल भाकियू संगठन की कोर कमेटी के सदस्य जगदीप सिंह औलख, अमृतलाल, बहादुर मेहला, छत्रपाल सिंह, अजय राणा, सुखविंदर झब्बर, बघेल सिंह, दिलबाग सिंह व राव संधू ने बताया कि फिलहाल करनाल जिले के एक ब्लाक को छोड़कर शेष सभी ब्लाकों के नेताओं ने भाकियू चढ़ूनी से खुद को अलग कर लिया है। किसान नेता अजय राणा ने कहा कि कृषि कानून विरोधी आंदोलन के समय भी चढ़ूनी ने राजनीतिक डगर पर चलने की बात रखी थी। तब उन्हें समझाया गया था लेकिन अब वह जिस प्रकार खुलकर राजनीति कर रहे हैं, उसी से क्षुब्ध होकर यह फैसला लेना पड़ा।
किसान नेता जगदीप औलख ने कहा चढ़ूनी ने राजनीति में आने का फैसला निजी स्तर पर किया। इससे हम कभी भी सहमत नहीं थे। राजनीति में जाना वास्तव में करनाल के किसान नेताओं और समर्थकों से धोखा होता। इसलिए सभी किसानों की राय और भावना के आधार पर चढ़ूनी से अलग होने का फैसला लिया गया।
अलग होकर राजनीति करते चढ़ूनी
किसान नेता औलख ने कहा कि किसान यूनियन में रहते हुए राजनीति नहीं करनी चाहिए। गुरनाम चढ़ूनी यूनियन से अलग होकर राजनीति कर सकते थे, जो बिलकुल मंजूर नहीं है। चढ़ूनी ग्रुप को उनके फैसले से कोई लाभ होगा या नुकसान, इससे उन्हें कोई लेना-देना नहीं है। चढ़ूनी ग्रुप को चंदे के नाम पर जगह जगह से फंड मिलने के मामले पर उन्होंने कहा कि उन सभी ने पवित्र भावना से किसान हित में संघर्ष किया।
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सच्चे किसान हितैषी हैं तो चुनाव न लड़ने का करें संकल्प: बैंस
भाकियू चढ़ूनी के प्रवक्ता राकेश बैंस ने बताया कि इस घटनाक्रम के पीछे राजनीतिक एजेंडा निहित है। जब से उन्होंने अपनी पार्टी की घोषणा की, तभी से अन्य दलों में चिंता है। जो नेता किसानों का नाम लेकर राजनीति करते थे, उन्हें डर सताने लगा कि किसान वोट बैंक बिखर न जाए। ऐसे चेहरे आज तक किसानों की जीवन रेखा नहीं बदल पाए। वे किसानों को केवल वोट बैंक के रूप में देखते हैं। चढ़ूनी ग्रुप को इन त्यागपत्रों से कोई फर्क नहीं पड़ेगा। ऐसे झटके सहने के लिए हम तैयार जो अलग हुए हैं, उन्हें चुनौती है कि सच्चे किसान हितैषी हैं तो किसी मंदिर, गुरुद्वारे में संकल्प लेकर साफ कर दें कि कभी चुनाव नहीं लड़ेंगे।
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