सत्यखबर, जींद, अशोक छाबड़ा
हरियाणा विधानसभा में विपक्ष के नेता रह चुके इनेलो महासचिव अभय सिंह चौटाला नए राजनीतिक अंदाज में दिखाई देंगे। पूर्व उप प्रधानमंत्री ताऊ देवीलाल के पोते और पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला के छोटे बेटे अभय चौटाला जहां अपने बेटों अर्जुन चौटाला और करण चौटाला को भतीजे दुष्यंत चौटाला व दिग्विजय चौटाला के समानांतर खड़ा करने की तैयारी में हैं, वहीं देवीलाल व ओमप्रकाश चौटाला के पुराने साथियों को भी एकजुट करते हुए संगठन को मजबूत करने पर उनका पूरा जोर रहेगा। हरियाणा विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देने के साथ ही अभय चौटाला ने नई राजनीतिक कसरत आरंभ कर दी है। उनके इस्तीफा देने के बाद कांग्रेस, जजपा और निर्दलीय विधायकों पर किसानों का समर्थन करने का दबाव बढ़ा है।
सिरसा जिले की ऐलनाबाद विधानसभा सीट से विधायक रहे अभय चौटाला इस बार विधानसभा में अपनी पार्टी के इकलौते प्रतिनिधि थे, लेकिन तीन कृषि कानूनों के विरोध और किसानों के समर्थन में उन्होंने चार साल पहले ही विधानसभा की सदस्यता से त्यागपत्र देकर किसानों के बीच रहने का निर्णय लिया है। ऐलनाबाद सीट ताऊ देवीलाल के परिवार की परंपरागत सीट है। 1982 के बाद यहां नौ विधानसभा चुनाव हुए, जिनमें से आठ इनेलो ने जीते हैं। अभय चौटाला चार बार विधानसभा चुनाव जीत चुके तथा विपक्ष के नेता रह चुके हैं। चौटाला परिवार में राजनीतिक फूट के बाद इनेलो बिखराव का शिकार हो गया था। पार्टी का काफी बड़ा कैडर अजय सिंह चौटाला व दुष्यंत चौटाला के नेतृत्व वाली जननायक जनता पार्टी में चला गया। अब अभय चौटाला दावा कर रहे हैं कि जल्द ही यह कैडर इनेलो में वापसी करेगा।
विधानसभा की सदस्यता से त्यागपत्र देने के अभय चौटाला के इस फैसले पर राजनीतिक गलियारों में चर्चा हो रही है। अभय चौटाला कुरुक्षेत्र से लोकसभा का चुनाव भी लड़ चुके हैं, मगर जीत नहीं सके। फिर उन्होंने अपने बेटे अर्जुन चौटाला को कुरुक्षेत्र से ही लोकसभा का चुनाव लड़वाया, मगर अर्जुन भी हार गए। अभय ने हाल ही में अपने दोनों बेटों अर्जुन और करण की शादियां की हैं। इन दोनों बेटों के राजनीतिक करियर को लेकर अभय काफी फिक्रमंद हैं। इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला खासे उम्रदराज हो चुके हैं। हालांकि उनकी यादाश्त अभी भी दुरुस्त है। नई राजनीतिक परिस्थितियों में 57 वर्ष के अभय चौटाला ने विधानसभा से त्यागपत्र देने के बाद संगठन को नए सिरे से खड़ा करने की रणनीति तैयार की है। वह किसानों व कार्यकर्ताओं के बीच रहते हुए नए कार्यकर्ताओं को संगठन में काम करने का मौका तो देंगे ही, साथ ही इनेलो के विघटन के दौरान जजपा में गए अपने कैडर को वापस लाने तथा भाजपा, कांग्रेस व जजपा में गए नेताओं को फिर से अपने साथ जोडऩे का कोई प्रयास नहीं छोड़ेंगे।
इसके लिए अभय फोन व व्यक्तिगत संपर्क के जरिये काम में जुट गए हैं। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि अभय चौटाला यदि समय से संगठन को खड़ा करने में कामयाब हो गए तो वह स्वयं ही ऐलनाबाद से उपचुनाव लड़ेंगे, लेकिन इसमें देरी होने की स्थिति में वह अपने बेटे अर्जुन या करण को यहां से चुनाव लड़वा सकते हैं। इसके पीछे सोच यह है कि भतीजे दुष्यंत चौटाला व दिग्विजय चौटाला की टक्कर में उन्हें खड़ा किया जा सके। यदि अभय अपनी इस रणनीति में कामयाब हो गए तो वह संगठन को संभालेंगे और अपने बच्चों को आगे कर राजनीतिक कदम बढ़ाएंगे। पुराने साथियों की घर वापसी से संगठन तो मजबूत होगा ही, साथ ही अभय को उनके राजनीतिक वारिस भी मिल जाएंगे।
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