सत्य खबर, चण्डीगढ़। सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने कहा कि पहले तो सरकार ने बिना बहस के तीन काले कानून किसानों पर थोप दिये और आज बिना बहस के ही तीन काले कानून वापस ले लिये। उन्होंने कहा कि संसदीय परंपराओं और मर्यादा की दुहाई देने वाली सरकार द्वारा बिना चर्चा के विधेयक पास करना संसदीय प्रजातंत्र के लिये शुभ संकेत नहीं है। संसद के दोनों सदनों में उस वक्त का नजारा देखने लायक था कि जिन लोगों ने साल भर पहले तीन काले कानूनों को लागू करने के लिये हाथ उठाये थे आज वही लोग इसे वापस लेने के समर्थन में हाथ उठाये दिखे। आज देश के किसान की किसान आन्दोलन की जीत हुई है। उन्होंने कहा कि सरकार आज चर्चा से बेशक भाग गयी लेकिन किसानों की लंबित मांगे उसका पीछा करती रहेंगी। सरकार को ये भी पता चल गया कि जिन किसानों को वो नकली बता रही थी उनका वोट असली है। यही कारण है कि सरकार ने बिना चर्चा के ही इतने महत्वपूर्ण विधेयक को जल्दबाजी में पारित कर दिया।
सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने कहा कि सरकार अगर मेरी मांग को पहले ही मान लेती तो आज कुछ मांगें तो होती ही नहीं। न मुकदमे वापस लेने की मांग आती, क्योंकि तब तक किसानों पर झूठे मुकदमे दर्ज नहीं हुए थे। न ही इस आंदोलन में अपनी जान की कुर्बानी देने वाले करीब 700 किसानों को आर्थिक मदद और नौकरी देने की मांग होती, क्योंकि उन किसानों के परिवार में अंधेरा नहीं होता, करीब 700 परिवारों के चिराग नहीं बुझते। न लखीमपुर खीरी कांड होता न गृह राज्य मंत्री के इस्तीफा देने की मांग उठती। दीपेंद्र हुड्डा ने कहा कि उन्होंने बार-बार सरकार को अगाह किया कि राजहठ छोडकर, किसानों की मांग मान लें। आज पूरे देश के सामने एक बात स्पष्ट हो गयी है कि असली किसान कौन हैं और किसान बन कर टीवी स्टूडियो में तीन काले कानूनों समर्थन करने वाले कौन हैं। सरकार कहती है वो किसानों को समझा नहीं पायी, लेकिन सरकार दुःखी इस बात से है कि किसान पिछले दरवाजे से विधेयक लाने की उसकी मंशा को तुरंत समझ गया।
उन्होंने किसानों के मैराथन संघर्ष की सफलता पर उन्हें बधाई देते हुए कहा कि आज खुशी भी है और आंखे नम भी हैं। एक वर्ष से चल रहे इस आंदोलन और किसानों के तप, त्याग और तपस्या की वजह से देश का बच्चा-बच्चा किसानों की बुनियादी समस्या और उनके अहम मुद्दों से अच्छी तरह से परिचित हो गया है। दीपेंद्र हुड्डा ने कहा कि सरकार साल भर से एक ही बात कहती रही कि चंद लोग ही तीन कृषि कानूनों के खिलाफ हैं, देश का बाकी सारा किसान इन कानूनों के हक में है। उन्होंने स्पष्टीकरण मांगा कि सरकार का दावा अगर सच है, तो सरकार बताए कि इन कानूनों को वापस लेने की घोषणा के बाद क्या देश के किसी भी कोने में एक भी किसान ने सरकार के कानून वापस लेने के फैसले का विरोध किया।
दीपेंद्र हुड्डा ने बताया कि वे लगातार सरकार को चेताते रहे कि किसान उल्टा हटने वाला वर्ग नहीं है, उनसे मत टकराओ। लेकिन दुःख है कि उस समय सरकार ने किसानों के आंदोलन को और उनकी बात को हल्के में लिया। इसी का नतीजा ये हुआ कि आंदोलन बढ़ता चला गया और करीब 700 निर्दोष किसानों को अपनी जान की कुर्बानी देनी पड़ी। दीपेंद्र हुड्डा ने कहा कि वो आज फिर सरकार से कह रहे हैं कि किसानों से बातचीत करके उनकी सभी लंबित मांगे तुरंत स्वीकार करे।
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