सत्यखबर सफीदों, (महाबीर मित्तल) – देश की सर्वोच्च अदालत ने अयोध्या में मंदिर-मस्जिद विवाद को लेकर अपना फैसला सुनाया। इस फैसले के उपरांत अनेकों प्रतिक्रियाएं सामने आई। देश के अधिकतर लोगों ने इस फैसले को खुले दिल से स्वीकार किया है। इस फैसले को लेकर मुस्लिम समाज क्या सोचता है इसको लेकर हमारे संवाददाता महाबीर मित्तल ने हरियाणा हज कमेटी के सदस्य अकबर खान राणा के साथ खास बातचीत की।
पेश है उनसे बातचीत के खास अंश:
माननीय सर्वोच्च न्यायालय के फैसले पर आप क्या कहेंगे?
संसार का हर सुशिक्षित व्यक्ति अपने पूर्वजों की इज्जत करता है, उनका मान-सम्मान करता है। इसी प्रकार हम रघुकुल के वंशज श्री रामचंद्र जी जोकि हमारे पूर्वज हैं, की बेहद इज्जत करते हैं और चाहते हैं कि उनसे संबंधित जो भी निशानियां हैं, वह बरकरार रहे उनको तनिक भी नुकसान ना हो। श्रीराम की निशानियां हमारा गौरव है। हाल ही में राम जन्मभूमि से संबंधित जो फैसला भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने दिया है। वह बहुत ही स्टीक और सर्वमान्य है, जिसका हम खुले दिल से स्वागत करते है और सभी को इस फैसले का इस्तकबाल करना चाहिए।
बतौर मुसलमान आप इस फैसले को किस तरह से देखते हैं?
रामजन्म भूमि से संबंधित जो फैसला भारत की सर्वोच्च न्यायालय ने दिया है उसको भारत का मुसलमान चाहे वह गरीब है, अमीर है, पढ़ा लिखा है या अनपढ़ है हर वर्ग दिल से स्वीकार करता है और चाहता है कि जल्द से जल्द अयोध्या में श्रीराम का भव्य मंदिर बने। हालांकि इतने बड़े मुल्क में कुछ ऐसे तत्व भी हैं जिनको इस देश की शांति और भाईचारे से हमेशा ही गुरेज रहा है और वो लोग सुधर नहीं सकते।
ऐसे लोगों में आप किनको शामिल करते हैं?
आप समझ भी रहे होंगे लेकिन मैं खुलेतौर पर कहता हुं कि असदुद्दीन ओवैसी जैसे लोगों इस भारत में बसते हैं, जिन्हें प्रत्येक अच्छे काम में बुराई की गंद आती है और अपनी घटिया राजनीतिक मंशा के चलते गलतबयानी करते हैं परंतु कोई भी देशप्रेमी व्यक्ति ऐसे बरगलाने वाले बयानों पर ध्यान नहीं देता और आखिर थक हारकर ओवैसी जैसे लोग स्वयं ही शांत हो जाया करते हैं। ओवैसी जैसे नेताओं के कारण मुस्लिम समाज बदनाम होता है और इस प्रकार की घटिया राजनीति करके ही असदुद्दीन ओवैसी जैसे लोगों की रोजी-रोटी चलती है।
हरियाणा के अलावा देश के अन्य हिस्सों में क्या प्रतिक्रिया है?
अभी कल ही मैं उत्तर प्रदेश के जिला मुजफ्फरनगर में था, जहां मेरी मुलाकात मुस्लिम प्रबुद्ध वर्ग से हुई और उनसे अयोध्या बारे खूब चर्चाएं भी हुई। उत्तरप्रदेश से मैं सुखद एहसास लेकर लौटा हूं। यह बात आपके साथ भी साझा करना चाहता हूं कि किसी भी मुसलमान बहन-भाई ने अयोध्या के राम मंदिर निर्माण के विपरित कोई भी बात नहीं कहीं बल्कि तो सकारात्मक पहलू यह है कि मुस्लिम लोग हिंदू भाइयों से भी ज्यादा उतावले नजर आए कि वहां पर शीघ्र अति शीघ्र श्रीराम मंदिर का निर्माण हो। मैं यह बताना भी जरूरी समझता हूं कि इस्लाम मजहब के मानने वालों के लिए यह भी धर्म का हिस्सा है कि आप जिस मुल्क में रहते हैं उस मुल्क के कायदे कानून, संविधान व अदालतों के फैसले आदि मानना लाजमी हैं। यानि अगर आप उन कानूनों और अदालती फैसलों को नहीं मानते तो आप सही मायने में इस्लाम पर अमल नहीं कर रहे है।
आस्था और धर्म को आप किस नजर से देखते हैं?
जैसा कि आप सब जानते हैं मुगलकाल में बहुत सारे हिंदू मुसलमान बने। हम यहां उस विषय पर नहीं जाना चाहेंगे कि किन परिस्थितियों में और क्यों धर्म परिवर्तन हुआ? सच तो यह है कि धर्म का परिवर्तन जाति और वर्ण पर कोई प्रभाव नहीं डाल सकता। यानि आस्था और धर्म का परिवर्तन डीएनए पर कोई प्रभाव नहीं डालता। ओर आगे बढ़कर कहें तो आस्था परिवर्तन होने से नस्ल परिवर्तन नहीं होता और यह वैज्ञानिक तथ्य भी है।
कोर्ट द्वारा मस्जिद के लिए 5 एकड़ जमीन देने को किस रूप में देखते हैं?
माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सुनाए गए फैसले को किसी की जीत और किसी की हार के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। धार्मिक सौहार्द की भावना का समावेश की खातिर न्यायालय ने दोनों पक्षों को कुछ ना कुछ दिया है। जहां हिंदू भाई अपने अराध्य श्रीराम का मंदिर निर्माण करेंगे, वहीं 5 एकड़ जमीन में मुस्लिम भाई मस्जिद का निर्माण करेंगे। कोर्ट का निर्णय सामाजिक समरस्ता को जीता-जागता उदाहरण है, जिसके लिए इस फैसले को सुनाने वाले पांचों न्यायमूर्ति बधाई के पात्र हैं। इसके साथ-साथ इस देश की जनता भी बधाई की पात्र है जिसने इस फैसले के उपरांत आपसी भाईचारे और सौहाई का परिचय दिया है।
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