सत्यखबर, जाखल, (दीपक)
20 दिसंबर 1704 सर्ववंशदानी दशम पिता श्री गुरूगोविंद जी जब सरसा नदी से गुजरते अपने परिवार से बिछड़ने के बाद माछीवाड़े के जंगल मे पहुंचे । गुरू जी को साहेबजादो व माता गुजरी की शहादत के बारे में जब पता चला तो उन्होंने कहा मित्र प्यारां नू हाल मुरीद दा कहिणा , उन्होंने फरमाया कि “मैं किसी बहार नूं सड़न नही दीता, भावें मेरे बाग वीरान हो गए ,हथीं छाँ कीती लखां पुत्रां नूं ,भावें मेरे चार दे चार कुर्बान हो गये । सोमवार को जाखल कड़ैल बैरियर पर छोटे साहबजादे एवं माता गुजरी के शहादत दिवस पर भाई मोतीलाल महेरा लंगर कमेटी द्वारा रखे सहिज पाठ के भोग डाले गये । इस मौके पर कीर्तन जत्था द्वारा गुरबाणी का संचार कर उपस्थितजनों को निहाल किया । कमेटी प्रधान नाजर सिंह, कुलवंत सिंह, चहल सिंह, जरनैल सिंह , बलिहार सिंह ,रवि सिंह सहित अन्य कमेटी सदस्यों ने श्रद्धापूर्वक लोगो को लंगर छकाया । ग्रंथी रामसिंह ने सिक्ख शहादत के इतिहास पर प्रकाश डालते हुए बताया कि सिक्ख गुरूओं और सिक्खों ने हमेशा जुल्म और जालिम का डटकर विरोध ही नहीं किया बल्कि सच और हक के लिए बलिदान देने से भी पीछे नही हटे ।
उन्होंने बताया कि बाबा नानक ने जहां तत्कालीन मुगल शासक बाबर के जुल्म के खिलाफ जफरनामा भेज उन्हें लाहनतां दी वही पांचवें गुरू श्री अर्जुन देव जी ने तत्कालीन मुगलशासक जहांगीर के समय तती तवी पर बैठ शहादत दी इसी तरह दिल्ली शासक औरंगजेब के समय श्री गुरू तेगबहादुर जी ने चांदनी चौक में शहादत दी जबकि इससे पहले गुरू के प्यारे सिक्ख भाई मतिदास जतिदास व भाई दयाला को शहीद किया गया । कमेटी सदस्य जरनैल सिह सरोए ने बताया कि 25 दिसंबर 1704 को जहां चमकौर की लड़ाई में सर्ववंशदानी श्री गुरू गोबिंद सिंह के बड़े साहिबजादे बाबा अजीत सिह व बाबा जुझार सिंह मुगलों से लोहा लेते शहीद हुए वही छोटे साहिबजादे जोरावर सिंह व बाबा फतेह सिंह को सरहिंद के जालिम सूबेदार वज़ीर खां ने जिंदा दीवार में चिनवा कर शहीद करवाया इसी तरह माता गुजरी कौर सरहिंद के ठंडे बुर्ज में शहीद हुये । श्री सहिज पाठ के दौरान दिल्ली में अपने हको के लिए संघर्ष कर रहे किसानो की चड़दी कला व जीत के लिए भी अरदास की गई । इस मौके पर बूटा सिह कासिमपुर, गुरनाम सिह ,जरनैल सिंह भंगू , लाभ सिह,काला चांदपुरा सहित अनेक गांव व जाखल मंडी के गणमान्य व्यक्ति मौजूद रहे ।
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