सत्यखबर हरियाणा (अशोक छाबड़ा) – न्यायालय की आपराधिक अवमानना के एक मामले में पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि सोशल मीडिया पर जजों को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं है। फर्जी तथ्यों के सहारे आधारहीन आरोप लगाना सीधे तौर पर न्यायपालिका की छवि को धूमिल करने का प्रयास है,जिसे किसी भी सूरत में सहन नहीं किया जा सकता।
मामला पंजाब की जिला अदालत के ही एक कर्मी से जुड़ा हुआ है जिसने जजों और न्यायपालिका के संबंध में आपत्तिजनक टिप्पणियां करते हुए सोशल मीडिया पर वीडियो अपलोड किया था। जस्टिस जसवंत सिंह एवं जस्टिस संत प्रकाश की खंडपीठ ने कोर्ट की अवमानना के मामले में यह टिप्पणी की है।
हाईकोर्ट ने कहा कि इस मामले में एमाइकस क्यूरी ने भी कहा है कि प्रथमदृष्टया आरोपी कर्मी ने इस तरह के वीडियो बना सोशल मीडिया पर अपलोड कर सीधे तौर पर कोर्ट की प्रतिष्ठा को आहत करने का प्रयास किया है। आरोपी को अदालत की अवमानना के आरोप से सिर्फ इस दलील पर नहीं बच सकता है कि उसके खिलाफ पहले ही अनुशासनात्मक कार्रवाई की जा चुकी है।
आरोपी कर्मी की ओर से उनके एडवोकेट ने कहा कि यू ट्यूब पर वीडियो अपलोड किए जाने को पब्लिकेशन की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता, क्योंकि इसकी पहुंच कुछ लोगों तक ही है। उसने आगे दलील दी कि वैसे भी कार्रवाई कर उसकी चार इंक्रीमेंट्स रोकी जा चुकी है। कर्मी की अपील अभी एडमिनिस्ट्रेटिव जज के समक्ष लंबित है ऐसे में एक ही मामले में दो अलग-अलग सजा नहीं दी जा सकती है।
बचाव का अवसर दिया जाएगा
हाईकोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद कहा किसी नतीजे पर पहुंचने से पहले सभी रिकार्ड देखना जरूरी है। हाईकोर्ट ने कर्मी पर यह आरोप तय कर दिए और कहा है कि उसे बचाव में पक्ष रखे जाने का अवसर दिया जाएगा। इसी के साथ मामले की सुनवाई 24 सितंबर तक स्थगित कर दी।
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