सतयखबर उकलाना (ब्यूरो रिपोर्ट)
बंद पड़ी फैक्टरियों में फंसे मजदूरों की मार्मिक अपील
दो महीने से नहीं आया कोई पूछने, हमे घर भेज दो साहब
बंद कमरे में मरने से अच्छा है कोरोना से लड़ें जिंदगी की जंग
“हमे घर भेज दो साहब बंद कमरों में मरने से अच्छा है अपनों के पास मरे कम से कम कफ़न को तो मिट्टी मिल जाएगी” बिहार और यूपी के इन प्रवासी मजदूरों की ये मार्मिक अपील सुनने के बाद शायद आप अपने आंसू नही रोक पाएं….लॉक डाउन में फंसे ये प्रवासी मजदूर किस कदर बेबस है ये बस यही समझ सकते हैं….बिहार से 1100 किलोमीटर दूर रोजी रोटी के लिए आये प्रवासी मजदूरों के सब्र का बांध अब टूट चुका है….मजदूरों ने सरकार को साफ चेतावनी दे दी है कि बंद कमरों में मरने से अच्छा है कोरोना से जंग लड़ कर मरें….
लॉक डाउन की वजह से बंद पड़ी फैक्टरियों में फंसे प्रवासी मजदूरों ने सरकार और प्रसाशन के दावों की पोल खोल कर रख दी है….सरकार के लाख दावों के बाद भी इन प्रवासी मजदूरों की बेबसी कोई नहीं समझ पा रहा है….अब हालात ये हो चले हैं कि इन्हें राशन की दुकानों से उधार मिलना भी बंद हो चुका है….ओर मकान मालिक भी किराए के लिए लगातार दबाव बना रहा है….क्योंकि जिस फैक्ट्रियों में ये लोग काम करते हैं वो पिछले 2 महीने से बंद है और अपनी जिंदगी के 15 साल से भी ज्यादा वक्त इन फैक्ट्रियों में बिताने के बाद भी ना ही तो फैक्ट्री मालिक इनकी सुध लेने आया है और ना ही सरकार और प्रशासन के अधिकारी….अब इन मजदूरों ने सरकार को चेतावनी दे डाली है कि चाहे पुलिस से टकराना पड़े या सरकार से हम लोग वो करेंगे जो हमें नहीं करना चाहिए….प्रवासी मजदूरों ने कहा है कि अब हम पैदल ही अपने घरों की तरफ जाएंगे ताकि हम भी अपनों के पास पहुंच सके
वीओ:- लॉक डाउन में फंसे बिहार और यूपी के इन प्रवासी मजदूरों ने कहा है कि 2 महीने से फैक्ट्रीया बंद है इसलिए कोई काम नहीं…..जो दुकाने राशन उधार दिया करती थी उन्होंने भी हाथ खड़े कर लिए हैं….यही नहीं घर से भी पैसे मंगवा कर काम चलाया लेकिन अब घर में भी पैसे खत्म हो चले हैं….ऐसे में ना ही तो प्रशासन और ना ही सरकार ने सुध ली है….अब फैसला कर लिया है कि चाहे पुलिस की गोली चले या फिर सरकार रोके हम पैदल ही घरों की तरफ जाएंगे ताकि अपनों के पास पहुंच सके
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गौरतलब है कि रोहतक जिले के टीटोली गांव में अनेक फैक्टरियां है जिसमें बिहार और यूपी के प्रवासी मजदूर काम करते हैं, लेकिन रजिस्ट्रेशन करवाने के बावजूद भी इन्हें घर नहीं भेजा जा रहा है और ना ही इनके पास राशन उपलब्ध है। ऐसे में ये प्रवासी मजदूर पैदल ही पलायन करने की तैयारी में है जबकि प्रशासन और सरकार दावा करती रही है कि किसी भी प्रवासी मजदूर को भूखे पेट नहीं सोने दिया जाएगा। अब सरकार के दावों में कितनी सच्चाई है यह इन प्रवासी मजदूरों ने साबित कर दिया है।
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