सत्य खबर
हरियाणा में सरकारी मेडिकल कालेजों में एमबीबीएस और पीजी कोर्स की फीस बढ़ाने पर सियायत गर्माने के बाद मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने विपक्षी दलों पर निशाना साधा है। दस लाख रुपये के बांड को भारी-भरकम फीस के रूप में प्रचारित कर रहे विपक्ष को जवाब देते हुए सीएम ने कहा कि सरकारी मेडिकल कालेजों में फीस बढ़ाने के बावजूद एमबीबीएस की पूरी पढ़ाई की फीस पौने चार लाख रुपये ही बनती है।
सीएम बोले, बांड को फीस के रूप में प्रचारित करना गलत, सिर्फ 20 हजार रुपये बढ़ी फीस
मुख्यमंत्री ने कहा कि एमबीबीएस प्रथम वर्ष के छात्रों से पहले 60 हजार रुपये फीस ली जाती थी जिसे बढ़ाकर 80 हजार रुपये किया गया है। दूसरे साल 88 हजार, तीसरे साल 96 हजार 800 रुपये और चौथे साल एक लाख छह हजार 480 रुपये फीस देनी होगी। पूरे कोर्स के लिए सिर्फ तीन लाख 71 हजार 280 रुपये देने होंगे।
सीएम ने कहा कि दस लाख रुपये का बांड विद्यार्थियों के लिए एक तरह से सरकारी नौकरी प्राप्त करने के लिए प्रावधान होगा। निजी मेडिकल कालेजों में तो सालाना 12 से 15 लाख रुपये फीस ली जाती है जो सरकारी मेडिकल कालेजों की तुलना में तीन से चार गुणा है।
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एनएसयूआइ का दावा, विद्यार्थियों से हर साल दस लाख रुपये लेने के लिए बांड को बनाया हथियार
वहीं, कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआइ के प्रदेशाध्यक्ष दिव्यांशु बुद्धिराजा ने कहा कि प्रदेश सरकार ने बांड की आड़ में गरीब विद्यार्थियों के हक पर डाका डाला है। अभी तक सरकारी मेडिकल कालेज में एमबीबीएस छात्रों सालाना करीब डेढ़ लाख रुपये खर्चने पड़ते थे जिसे एक झटके में दस लाख रुपये कर दिया गया है। बांड के नाम पर सरकारी मेडिकल कालेजों में विद्यार्थियों को करीब 45 लाख रुपये देने होंगे। एक तरफ सरकार कह रही है कि सरकारी सेवा में सात साल की नौकरी कर विद्यार्थी यह पैसे चुका सकेंगे, जबकि यह गारंटी भी नहीं दी जा रही कि सभी विद्यार्थियों को सरकारी नौकरी मिल जाएगी।
निजी क्षेत्र की नौकरियों में स्थानीय युवाओं को 75 फीसद आरक्षण के बिल पर सवाल खड़े करते हुए दिव्यांशु बुद्धिराजा ने कहा कि सरकार की नीयत अगर साफ है तो पहले से चल रही औद्योगिक इकाइयों में भी इसे लागू किया जाएगा। प्रदेश में जब नई औद्योगिक इकाइयां लग ही नहीं रहीं तो स्थानीय युवाओं को 75 फीसद रोजगार के मायने क्या हैं।
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