हरियाणा। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान हरियाणा सरकार से पूछा है कि जिस तरह की चोट लगती है उसके विशेषज्ञ से राय क्यों नहीं ली जाती। इस मामले में हाई कोर्ट ने सवाल किया है कि सिर पर लगी चोट के लिए न्यूरो सर्जन के बजाय जनरल सर्जन की राय क्यों ली गई। इसके साथ ही हाई कोर्ट ने पूछा है कि जिस तरह की चोट है उसके अनुरूप एफआइआर दर्ज करने से पहले उसके विशेषज्ञ से राय अनिवार्य क्यों नहीं की जाती। हाई कोर्ट के जस्टिस राजमोहन सिंह ने मेवात निवासी हसन मोहम्मद की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश जारी किया। याची के वकील मोहम्मद अरशद ने बेंच को बताया कि एक व्यक्ति पर हमला करने के लिए उस पर दिसंबर 2019 में हत्या के प्रयास का मामला दर्ज किया गया था। याचिकाकर्ता ने बताया कि जब पुलिस ने मेडिकल ओपिनियन मांगा तो जनरल सर्जन ने एमएलआर और सीटी स्कैन को देखकर अपनी राय दी जिसके आधार पर पुलिस ने हत्या के प्रयास का मामला दर्ज कर लिया।
याचिकाकर्ता ने कहा कि केवल सिटी स्कैन का अध्ययन करके जनरल सर्जन कैसे अपनी राय दे सकता है,जबकि यह मामला न्यूरो सर्जन की विशेषज्ञता का है। याचिकाकर्ता ने हाई कोर्ट से मांग की कि इस मामले में मेडिकल बोर्ड का गठन किया जाएगा,जिसमें न्यूरो सर्जन विशेषज्ञ शामिल किए जाएं। इसके साथ ही याचिकाकर्ता ने मांग उठाई कि इस तरह के मामलों में केवल विशेषज्ञों की राय ही लेनी चाहिए जनरल सर्जन कि नहीं। याची ने कहा कि यदि हड्डी से जुड़ा मामला है तो हड्डी के विशेषज्ञ मांसपेशियों से जुड़ा मामला है तो उसके विशेषज्ञ तथा सर से जुड़ा मामला है तो न्यूरो सर्जन की राय के आधार पर ही पुलिस को कार्रवार्ई करनी चाहिए। याचिकाकर्ता का पक्ष सुनने के बाद हाईकोर्ट ने इस मामले में सरकार को जवाब देने का आदेश दिया।
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