भारत की वह महिला पहलवान जिस किसी देश की महिला पहलवान तो क्या पुरुष पहलवान भी नहीं हरा पाए
सत्य खबर,नई दिल्ली ।
साल 1944 और जगह बंबई का एक स्टेडियम, जो खचाखच भरा था. करीब 2,00,00 लोगों की भीड़ उत्साह से चीख रही थी, तालियां बजा रही थी. बस कुछ मिनट बाद एक महिला पहलवान और उस दौर के दिग्गज गूंगा पहलवान के बीच कुश्ती का मुकाबला होने वाला था. सब कुछ ठीक चल रहा था. अचानक गूंगा पहलवान ने अपना नाम वापस ले लिया. आयोजकों ने कहा गूंगा ने ऐसी शर्तें रख दीं, जिसे मानना नामुमकिन था. उन्होंने ज्यादा पैसे की डिमांड की और मुकाबले की तैयारी के लिए और वक्त मांगा.
जैसे ही मैच कैंसिल होने की घोषणा हुई, भीड़ उग्र हो गई और स्टेडियम में तोड़फोड़ शुरू कर दी. पुलिस ने किसी तरह मामले को संभाला. अगले दिन कुछ अखबारों ने छापा- ‘गूंगा पहलवान, हमीदा बानो से डरकर पीछे हट गए…’ उस दिन गूंगा पहलवान का मुकाबला हमीदा बानो से होना था, जिन्हें भारत की पहली महिला पहलवान कहा जाता है. गूगल आज (4 मई को) Google Doodle के जरिये हमीदा बानो को याद कर रहा है.
हमीदा बानो उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में जन्मी थीं और शुरू से उनकी कुश्ती में दिलचस्पी थी. उस दौर में कुश्ती सिर्फ पुरुषों तक सीमित थी. महिलाएं तो अखाड़े में उतरने का सोच भी नहीं सकती थीं. हमीदा ने जब अपने परिवार वालों से कुश्ती लड़ने की बात कही, तो परिवार ने उन्हें खूब खरी-खोटी सुनाई. हमीदा ने बगावत कर दी और अलीगढ़ चली आईं. यहां सलाम पहलवान से कुश्ती के दांव-पेंच सीखे और फिर मुकाबले में उतरने लगीं.
महेश्वर दयाल 1987 में प्रकाशित अपनी किताब में लिखते हैं कि कुछ साल के भीतर हमीदा बानो उत्तर प्रदेश से लेकर पंजाब तक मशहूर हो गईं. वह बिल्कुल पुरुष पहलवानों की तरह लड़ा करती थीं. शुरू में छोटे-मोटे मुकाबला लड़ती रहीं, लेकिन वह जो हासिल करना चाहती थीं, इन मुकाबलों से नहीं मिल सकता था.
‘जो मुझे हराएगा, उससे शादी कर लूंगी’
हमीदा बानो साल 1954 में तब चर्चा में आईं, जब उन्होंने एक अजीब ऐलान कर दिया. बानो ने घोषणा की कि जो पुरुष पहलवान उन्हें कुश्ती में हराएगा, उससे शादी कर लेंगी. इस ऐलान के बाद तमाम पहलवानों ने उनका चैलेंज स्वीकार किया, लेकिन हमीदा के आगे टिक नहीं पाए. पहला मुकाबला पटियाला के कुश्ती चैंपियन से हुआ और दूसरा कलकत्ता के चैंपियन से. हमीदा ने दोनों को धूल चटा दी.
गामा पहलवान हट गए पीछे
BBC की एक रिपोर्ट के मुताबिक उसी साल हमीदा बानो, वड़ोदरा (तब बड़ौदा कहा जाता था) अपने तीसरे मुकाबले के लिए पहुंचीं. शहर में जगह-जगह उनके पोस्टर और बैनर लगे थे. रिक्शा से लेकर इक्का के जरिये, उनके मुकाबले का प्रचार किया जा रहा था. हमीदा का मुकाबला छोटे गामा पहलवान से होना था, जिनका नाम ही काफी था और महाराजा बड़ौदा के संरक्षण में थे, लेकिन ऐन मौके पर छोटे गामा पहलवान यह कहते हुए मुकाबले से पीछे हट गए कि वह एक महिला से कुश्ती नहीं लड़ेंगे. इसके बाद हमीदा का मुकाबला बाबा पहलवान से हुआ.
3 मई 1954 की एपी की एक रिपोर्ट के मुताबिक हमीदा बानो और बाबा पहलवान का मुकाबला 1 मिनट 34 सेकेंड चला और हमीदा ने बाबा को धूल चटा दी. इसके साथ ही रेफरी ने ऐलान किया कि ऐसा कोई पुरुष पहलवान नहीं है, जो हमीदा को हराकर उनसे शादी कर पाए.
रोज आधा किलो घी खाती थीं
बीबीसी के मुताबिक साल 1954 में जिस वक्त हमीदा बानो बड़ौदा पहुंचीं, तब तक वह कम से कम 300 मुकाबला जीत चुकी थीं और उनका नाम ‘अमेजन ऑफ अलीगढ़’ पड़ गया था. आए दिन अखबारों में हमीदा बानो की हाइट, वेट, डाइट से जुड़ी खबरें छपती थीं. हमीदा बानो का वजन 108 किलो था और लंबाई 5 फीट 3 इंच थी. उनके डेली खानपान में 5.6 लीटर दूध, 2.8 लीटर सूप, 1.5 लीटर फ्रूट जूस, करीब 1 किलो मटन, बादाम, आधा किलो घी और दो प्लेट बिरयानी शामिल थी.
जब लोगों ने बरसाए पत्थर
रोनोजॉय सेन अपनी किताब ‘नेशन ऐट प्ले: ए हिस्ट्री ऑफ़ स्पोर्ट इन इंडिया’ में लिखते हैं कि उस दूर का समाज सामंती था और एक महिला पहलवान को अखाड़े में पुरुष पहलवान को धूल चटाते बर्दाश्त नहीं कर पाता था. इसलिए कई मौकों पर हमीदा बानो को विरोध का सामना करना पड़ा. पुणे में हमीदा और रामचंद्र सालुंके के बीच मुकाबला होना था, लेकिन रेसलिंग फेडरेशन अड़ गया और मुकाबला कैंसिल करना पड़ा. एक और मौके पर हमीदा बानो ने जब पुरुष पहलवान को धूल चटाई तो लोगों ने पत्थरबाजी शुरू कर दी और पुलिस किसी तरह उन्हें सुरक्षित निकालकर ले गई.
मोरारजी देसाई से की शिकायत
महाराष्ट्र में तो एक तरीके से हमीदा बानो पर अघोषित बैन लगा दिया. रोनोजॉय सेन अपनी किताब में लिखते हैं कि हमीदा बानो ने महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री मोरारजी देसाई से इसकी लिखित शिकायत भी की. देसाई ने जवाब दिया कि महिला होने के नाते उनके मुकाबला रद्द नहीं किये जा रहे हैं, बल्कि आयोजकों की शिकायत है कि बानो से लड़ने के लिए डमी कैंडिडेट उतारे जा रहे हैं.
रूस की ‘फीमेल बियर’ से मुकाबला
साल 1954 में हमीदा बानो और रूस की पहलवान वेरा चिस्टिलीन (Vera Chistilin) के बीच मुंबई में मुकाबला हुआ. वेरा को रूस की ‘फीमेल बियर’ कहा जाता था, लेकिन हमीदा के सामने एक मिनट भी नहीं टिक पाईं. हमीदा ने वेरा को 1 मिनट से भी कम समय में धूल चटा दी. इसी साल उन्होंने भारत से बाहर यूरोप जाकर कुश्ती लड़ने का ऐलान किया.
पति ने हाथ-पैर तोड़ दिया
हमीदा के कोच सलाम पहलवान को यूरोप जाकर कुश्ती लड़ने वाला आइडिया पसंद नहीं आया. दोनों ने शादी कर ली और फिर मुंबई के नजदीक कल्याण में डेरी बिज़नेस डाला. हालांकि हमीदा ने यूरोप जाकर कुश्ती लड़ने की जिद नहीं छोड़ी. बीबीसी, हमीदा बानो के पोते फिरोज शेख के हवाले से लिखता है कि सलाम पहलवान ने हमीदा बानो की इतनी पिटाई की कि उनका हाथ टूट गया. पैर में भी गंभीर चोट आई. इसके बाद कई सालों तक वह लाठी के सहारे चलती रहीं.