सत्य खबर, उत्तराखंड।
Joshimath on the verge of collapse उत्तराखंड के जोशीमठ में लगातार आ रही दरारों से हर कोई परेशान और चिंतित है. ऐसे में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने घोषणा की है कि जोशीमठ शहर में भूधंसाव की गंभीर घटना को ध्यान में रखते हुए विभिन्न पहाड़ी कस्बों की वहन क्षमता का अध्ययन किया जाएगा. दरअसल, विशेषज्ञों ने शहर के धीरे-धीरे धंसने के एक संभावित कारण के रूप में नई इमारतों के उच्च भार और सीवरेज नेटवर्क के अभाव में रोजाना हजारों लीटर घरेलू अपशिष्ट-जल (Waste Water) के जमीन में उतरने को जिम्मेदार ठहराया है.
2020, मार्च 2022 के बीच हर साल 2.5 इंच तक धंसा जोशीमठ
भारतीय रिमोट सेंसिंग एजेंसी ने सैटेलाइट इमेजरी के आधार पर कहा है कि जोशीमठ शहर 2020 और मार्च 2022 के बीच हर साल 2.5 इंच तक धंसा है. यह सुनिश्चित करने के लिए विशेषज्ञों ने एनटीपीसी (NTPC) की तपोवन पनबिजली परियोजना और चार धाम सड़क परियोजना जैसी बड़ी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं सहित अन्य कारकों पर भी प्रकाश डाला है.
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‘अन्य पहाड़ी शहरों की वहन क्षमता का अध्ययन होगा’
उत्तराखंड की पहाड़ियां अत्यधिक बोझिल हैं और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने स्वीकार किया कि इससे भविष्य में और धंसाव हो सकता है. उन्होंने कहा, “पहाड़ी शहरों की वहन क्षमता के बारे में चिंता बढ़ रही है. हम जोशीमठ और राज्य के अन्य पहाड़ी शहरों की वहन क्षमता का अध्ययन करेंगे. अगर नगरों की वहन क्षमता से अधिक निर्माण हो रहे हैं तो ऐसे नगरों में निर्माण तत्काल रोक दिया जाएगा.”
एक्सपर्ट्स ने क्या कहा?
एचएनबी गढ़वाल विश्वविद्यालय, श्रीनगर में भूविज्ञान के प्रोफेसर वाईपी सुंदरियाल ने हिंदुस्तान टाइम्स से कहा कि कर्णप्रयाग (जहां मकानों में दरारें आ गई हैं), गोपेश्वर, गुप्तकाशी, मसूरी, श्रीनगर, टिहरी, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़ और मुनस्यारी जैसे शहर अपनी वहन क्षमता से अधिक विकसित हो गए हैं.
पहाड़ों पर निर्माण तेजी से बढ़ा
वाईपी सुंदरियाल ने बताया, “मूल कारण यह है कि राज्य के गठन के पिछले दो दशकों में पहाड़ी कस्बों का कंक्रीटीकरण बढ़ गया है, गांवों के लोग पहाड़ी शहरों में जा रहे हैं जहां बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाएं और रोजगार के अवसर हैं. इससे इन पहाड़ी कस्बों की आबादी में वृद्धि हुई है, जिससे उनके इलाकों पर बोझ पड़ रहा है…”
सुंद्रियाल ने कहा कि हिमालयी कस्बों का अनियमित निर्माण जोशीमठ जैसी त्रासदियों को जन्म दे सकता है. उन्होंने बताया, “जब राज्य एक परियोजना के साथ आगे बढ़ना चाहता है तो सरकारी भूवैज्ञानिकों ने सरकारी लाइन को आगे बढ़ाया. यहां श्रीनगर में हम नाजुक ढलानों पर सड़क निर्माण का विरोध कर रहे हैं, लेकिन सरकार के भूविज्ञानी ने साइट को निर्माण के लिए उपयुक्त घोषित कर दिया.” Joshimath on the verge of collapse
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