Mother left breast water and right has food
सत्यखबर, नई दिल्ली
आज हम बात कर रहे है ब्रेस्टफीडिंग की… साथ ही उसके उन फायदे को भी दोहराएंगे जिसे हमारी दादी-नानी बताया करती थी। ब्रेस्टफीडिंग की कमी से बच्चे का शुगर लेवल घट सकता है? मां के दूध में बहुत सारे गुण होते हैं। यह बच्चे के शुगर लेवल को कंट्रोल रखता है। करीब 6 महीने तक ब्रेस्टफीडिंग कराने से डायबिटीज का खतरा 30 प्रतिशत तक कम हो जाता है। बच्चे को प्रोटीन, विटामिन और कैल्शियम भी मां के दूध से मिलता है।
यही नहीं, ब्रेस्ट फीडिंग इंसुलिन की सेंसिटिविटी को बढ़ाता है इसलिए यह उन महिलाओं के ग्लूकोज मेटाबॉलिज्म को सुधारता है जिन्हें प्रेग्नेंसी के दौरान डायबिटीज की समस्या होती है। 2-5 महीने से अधिक समय तक ब्रेस्टफीडिंग कराने से इन मांओं में भी टाइप 2 डीएम का रिस्क काफी हद तक कम हो जाता है।Mother left breast water and right has food
आपको बताते है कि बच्चे को कितने दिन तक मां के दूध की जरूरत होती है? WHO क्या कहता है कि 6 महीने तक के बच्चे को पूरी तरह से ब्रेस्ट फीड कराना चाहिए। यानी उसे मां का दूध ही पिलाएं। 2 साल तक के बच्चों को बाहर के दूध के साथ ब्रेस्ड फीड करवाना चाहिए। 6 महीने तक बच्चे की खुराक पूरी तरह से मां के दूध पर डिपेंड करती है इसलिए मांओं को अपने खानपान पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए।
बच्चे के जन्म के बाद पहली बार मां को अपना दूध कब पिलाना चाहिए? ये भी जानना जरूरी है जब पहली बार बच्चे को मां गोद में ले, तभी दूध पिलाने की कोशिश करनी चाहिए। बच्चे को जन्म देने के बाद मां के शरीर में खास दूध बनता है, जिसे कोलोसट्रम कहते हैं। यह दूध बच्चे को कई तरह के इन्फेक्शन से सुरक्षित रखता है
मां गोद में लेकर ही बच्चे को दूध पिलाएं। शुरुआती दिनों में मां लेड बैक पोजिशन यानी पीठ को टेक देकर बैठ सकती है। इस पोजिशन को 40 डिग्री से ज्यादा न रखें। बच्चे का पेट मां के पेट से जुड़ा रहना चाहिए। बच्चे का सिर मां के सीने से जुड़ा रहना चाहिए। अब एक हाथ से बच्चे का मुंह अपने निप्पल के पास लाएं। सरे हाथ से ब्रेस्ट को सपोर्ट दें। इस बात का ध्यान दें कि बच्चे का मुंह केवल निप्पल नहीं, बल्कि एरिओला (ब्रेस्ट और निप्पल के बीच का काला भाग) को भी कवर करें।
कई बार नई मां अपना दूध बच्चे को पिलाने से कतराती हैं? क्योंकि इसका सबसे बड़ा कारण न्यूक्लियर फैमिली और डिब्बे वाले दूध का ऐडवर्टाइजमेंट है। पहले जॉइंट फैमिली होती थी, तब मां के अलावा बच्चे की देखरेख करने के लिए और भी फैमिली मेंबर हुआ करते थे। अब न्यूक्लियर फैमिली में सिर्फ माता-पिता ही होते हैं। ऐसे में कई लोगों को फॉर्मूला मिल्क आसान विकल्प लगता है।
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दूसरा कारण महिलाओं का वर्किंग होना और उनकी कंपनी के पास किसी तरह का बेबी जोन न होना भी है। ज्यादातर महिलाएं डिलीवरी के कुछ ही महीने बाद ऑफिस जाना शुरू कर देती हैं। इस वजह से मां अपने बच्चे को भरपूर दूध नहीं पिला पाती हैं। उन्हें फॉर्मूला मिल्क देकर निश्चिंत हो जाती हैं।Mother left breast water and right has food
दूध पिलाने वाली मां की सुबह से रात तक की डाइट इस तरह की होनी चाहिए। सुबह से रात तक मां की डाइट में तीन मेजर मील और 3 स्नैक्स होने चाहिए। ह्यूमन मिल्क में 90% पानी होता है, जितना पानी मां पिएगी, मिल्क की सप्लाई अच्छी रहेगी। हरी पत्तेदार सब्जियां खाने से आयरन मां में बने रहेंगे, एनिमिया की प्रॉब्लम नहीं होगी और यह सब दूध के जरिए बच्चे को मिलेगा। हाई प्रोटीन डाइट से एनर्जी बनी रहेगी, मां को सुस्ती नहीं होगी, बच्चा भी हेल्दी रहेगा। दलिया, साबूदाना, मसूर दाल, ये सब दूध की क्वांटिटी और क्वालिटी बढ़ाते हैं, इसे रोज खाएं।
ब्रेस्ट फीड करवाने वाली महिलाओं को डेयरी प्रोडक्ट से दूर रहना चाहिए। इससे पेट फूलने की और गैस की प्रॉब्लम होती है। इसलिए दही खाएं। दही प्रोटीन और कैल्शियम से भरपूर होती है। साथ ही इसमें प्रोबायोटिक प्रॉपर्टी भी होती हैं, जिससे ब्रेस्ट फीडिंग कराने के दौरान पाचन बेहतर रहता है।
भूलें नहीं कि खानपान अगर हेल्दी नहीं होगा, तो आपके दूध को भी नुकसान करेगा। जर्नल पीडियाट्रिक्स में पब्लिश एक स्टडी के मुताबिक, कैफीन मां के शरीर से होते हुए उसके ब्रेस्ट मिल्क तक पहुंच सकता है। जब बच्चा दूध पीता है, उसका पेट कैफीन को पचा नहीं पाता है। इस उम्र में बच्चे के पेट में उतना गैस्ट्रिक जूस नहीं बनता, जितना बड़ों के पेट में। चॉकलेट, चाय, कोल्ड ड्रिंक, सोडा पीना हेल्दी नहीं है। ब्रेस्ट फीडिंग कराने वाली महिलाओं को अल्कोहल से परहेज करना चाहिए। ब्रेस्ट फीडिंग करवाते वक्त मछली खा सकते हैं, लेकिन कुछ सीफूड जिसमें मर्करी की मात्रा अधिक होती है, उसे नहीं खाना चाहिए, जैसे ट्यूना, सोर्डफिश, मार्लिन, लॉब्स्टर।
मां की दोनों ही ब्रेस्ट में दूध होता है। हां एक बात जरूर है कि जब आप नई-नई मां बनती हैं तो शुरुआत में निकलने वाला दूध थोड़ा पानी जैसा होता है। यह माना जाता है कि यह बच्चे की प्यास का ख्याल रखता है। इसके बाद जो दूध निकलता है वो वसायुक्त होता है जो भूख का ख्याल रखता है। यह बच्चे के वजन को भी बढ़ाता है। अब आप समझ गए होंगे कि बच्चे को फीड दोनों ही ब्रेस्ट से कराना चाहिए।
हर फीड के बाद ब्रेस्ट को अच्छी तरह से साफ करना चाहिए? ब्रेस्ट के निपल्स के आसपास के काले गहरे रंग के हिस्से को एरोला कहते हैं। यह लिक्विड पैदा करता है, जिसमें एमनियोटिक द्रव के समान गंध आती है। इस द्रव में ‘अच्छे बैक्टीरिया’ होते हैं जो एरोला और निपल्स को मॉइस्चराइज करने में भी मदद करता है। मां को दूध पिलाने से पहले और बाद में ब्रेस्ट या निपल्स को साफ करने की जरूरत नहीं होती है। याद रखें कि अगर आप बार–बार ऐसा करेंगी तो निप्पल और एरोलर टिश्यूज सूख जाते हैं।
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