सत्य खबर,गुरुग्राम ,सतीश भारद्वाज :
आनंदमूर्ति गुरूमां ने अपनी ओजस्वी वाणी से प्रवचन देते हुए कहा कि हमारे देश में हर शहर में बिजली के शव दाह गृह होने चाहिए। क्योंकि हर पार्थिव शरीर का एक पेड़ को मारकर जाता है। एक पेड़ उसकी अंत्येष्टि में लगता है। अगर ऐसा ही होता रहा तो पर्यावरण का संकट पैदा होगा। गुरूमां ने सरकारों से आह्वान किया कि इस पर गौर करके हर शमशान घाट में बिजली के शव दाह ग्रह बनाए जाएं। भारत को इसकी अति आवश्यकता है। अगर पर्यावरण को बचाना है तो इस विषय पर गंभीरता दिखाकर काम करना होगा।also read: बीजेपी और जेजपी सरकार ने युवाओं को छला है: किरण चौधरी
शंकर शम्भू नम: शिवाय-शंकर शम्भू नम: शिवाय भजन के साथ गुरूमां ने दूसरे दिन की कथा का शुभारंभ किया। इस भजन के साथ गुरूमां ने श्रद्धालुओं को भी सुर लगवाया। गुरूमां ने आगे कहा कि लकड़ी से जलाए जाने वाले या बिजली से जलाए जाने वालों के स्वर्ग, नरक में जाने की बात मिथ्या है। हम अपने मोक्ष की अगर फिक्र करते हैं तो जीते जी ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति करें। जीते जी जानें की परमात्मा क्या है। ऐसा करने पर ना स्वर्ग का मोह होगा ना नरक की चिंता होगी। हम मरने के बाद वाली मुक्ति पर विश्वास नहीं करते। जीते जी अनुभव करना चाहिए।
गुरूमां ने कहा कि गुण 3 होते हैं-सतोगुण, रजोगुण व तमोगण। इन्हीं से शरीर, सृष्टि की संरचना होती है। सृष्टा, सृष्टि अलग होती है। इस तरह से ईश्वर और सृष्टि को हम नहीं देख सकते। ईश्वर को कोई सचखंड, कोई जन्नत, कोई सात आसमान पार रहने को कहता है। वो खुदा ही क्या जो खुद बंदे से दूर रहे। वो परमात्मा ही क्या जो इंसान से दूर रहे। भारत के ऋषियों की सोच बड़ी विलक्षण है। जो हम कुछ देख रहे हैं वह ईश्वर का ही स्वरूप है। गुरूमां ने कहा कि जल की तरंग जल में उत्पन्न होती है और उसी में लीन होती है। जब तरंग होती है तब भी जल होती है। सोने का जेवर सोने से अलग नहीं होता। सोना ही जेवर होता है।
गुरूमां ने कहा कि भगवत गीता हो, उपनिषद हो, गुरू नानक की बाणी हो, सब एक है। यह सारा संसार ईश्वर का घर है, वह इसी में रहता है। जैसे पुष्प में खुशबू है। शीशे में हमारी छवि है। ऐसे ही संसार में ईश्वर है। जब तक हम अपने भीतर उसको खोजते नहीं, वह महसूस नहीं होता। इंसान की इस अज्ञान की वजह से ऋषियों ने बाहर कुछ चिन्ह बनाकर दिए। ताकि जब इन चिन्हों को देखें को ईश्वर की अनुभूति हो। गुरूमां ने कहा कि हम उसे परमात्मा नहीं मानते, जिससे मिलने के लिए तुम्हें मरना पड़ेगा। परमात्मा हमारे पास है। उन्होंने कहा कि भारत में जीते जी परमात्मा को प्राप्त कर लेते हैं। ईश्वर हमारे भीतर है, यह तो अहसास करा दे वही ब्रह्म ज्ञान होता है।
आनंदमूर्ति गुरूमां ने कहा कि बच्चों की शादी करते समय, मकान खरीदते समय कितना तहकीकत करते हैं। काश इतनी सोच-विचार कभी ईश्वर के बारे में करो। लोगों के अंदर भावना है संतों के प्रवचन सुनने जाओ। मंदिर, गुरुद्वारे जाने का मकसद रोटी खाना नहीं होता। मंदिर जाने का कारण या तो उसमें आस्था हो, या मंदिर में या किसी धर्म स्थान में तब जाएं अगर वहां कोई महात्मा आया हो। वह आपको सत्य का, ज्ञान का, गीता का, उपनिषद का बोध करा सकते हो। भारत में जब लक्ष्मी यानी धन की चाह से कोई पूजा करना चाहे तो वह लक्ष्मी जी की पूजा करता है। जब शक्ति चाहे तो वह मां दुर्गा की, जब ज्ञान चाहिए तो मां सरस्वती की पूजा करता है। अक्ल, शक्ल, धन, यश, विजयश्री देवियों के पास है। फिर भी कोई कहे कि स्त्री ज्ञानी नहीं हो सकती, इससे बड़ी मुर्खता नहीं हो सकती।
इससे पूर्व मंच संचालन करते हुए आनंदमूर्ति गुरूमां आश्रम के ट्रस्टी ने कहा कि जिसमें सब्र है, वही शबरी हो जाता है। शबरी को ईश्वर के पास नहीं जाना पड़ता बल्कि ईश्वर ख़ुद उसके पास जाता है। जैसे गुरु माँ प्रेम की डोरी से बंध कर गुरुग्राम चली आयी। प्रवचन सुनने में जिले के कई अधिकारी व शहरवासी उपस्थित रहे।