सत्यखबर
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद में दरार तो इस साल अप्रैल में कुंभ के दौरान ही पड़ गई थी, लेकिन अब यह दरार इतनी चौड़ी हो गई है कि एक की जगह दो परिषद बन चुकी हैं। दरअसल, कोरोना महामारी को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुंभ को सांकेतिक रूप से ही जारी रखने की अपील की थी। 13 अखाड़ों की परिषद ने इस अपील को स्वीकार कर लिया, लेकिन इनमें से एक बैरागी अखाड़ा इस फैसले का विरोध करते हुए परिषद से अलग हो गया था।
बचे अखाड़ों में कुछ ने मन से तो कुछ ने बेमन से कुंभ को सांकेतिक रूप से ही जारी रखने की घोषणा कर दी, लेकिन परिषद के चुनाव में यह दरार दो फाड़ में तब्दील हो गई और अब दो अखाड़ा परिषद बन गईं हैं। एक का चुनाव 21 अक्टूबर को हो चुका है तो दूसरी का चुनाव 25 अक्टूबर को प्रयागराज में हुआ। दोनों ही अखाड़ा परिषद खुद को असली और दूसरे को नकली करार दे रहे हैं।अखाड़ों के इस दंगल में सियासत का छौंक भी जमकर लग रहा है। प्रयागराज में परिषद के चुनाव के बाद भाजपा को खुलकर समर्थन देने का दावा इस परिषद के अध्यक्ष और महामंत्री ने किया तो दूसरी तरफ सूत्रों की मानें तो हरिद्वार में जिस परिषद ने चुनाव कराए, उसके तार कांग्रेस से सीधे जुड़े हैं।
हरिद्वार की परिषद के चुनाव में 3 बैरागी और 4 अन्य अखाड़े शामिल हुए, जबकि प्रयागराज में हुए चुनाव में भी 7 अखाड़े शामिल हुए। अब 13 अखाड़ों की परिषद में 14 अखाड़ों का गणित वैसे भी संशय पैदा करता है। हरिद्वार में चुनाव करवाने वाली परिषद के महामंत्री चुने गए राजेंद्र दास कहते हैं कि प्रयागराज में भले ही 7 अखाड़े शामिल हुए हों, लेकिन असली केवल 5 हैं। वे उंगलियों पर इन 5 अखाड़ों का नाम गिनाते हैं- निरंजनी, जूना, अग्नि, आह्वाहन और आनंद। जबकि शामिल होने वाले निर्मल और उदासीन अखाड़ों को कॉपी अखाड़ा करार देते हैं।इतना ही नहीं प्रयागराज में जिस 8वें अखाड़े के समर्थन पत्र को शामिल किया गया, उसको भी हरिद्वार की परिषद ने नकली बताया। उधर, प्रयागराज में चुनी गई परिषद के मुताबिक हरिद्वार की परिषद में शामिल हुए निर्मल और उदासीन अखाड़े तो फर्जी हैं ही। साथ ही बैरागियों के एक और अखाड़े के भी समर्थन का दावा निरंजनी अखाड़े की अध्यक्षता में बनी परिषद के पक्ष में किया गया है। कुल मिलाकर दोनों ही परिषदें खुद को असली बता रही हैं।इन आरोपों की तह पर जाकर पड़ताल करते हैं तो अतीत में एक ही अखाड़े के बीच हुई लड़ाई के बाद मूल नाम से दो अखाड़ों के बनने की प्रक्रिया सामने आती है, लेकिन असली कौन और नकली कौन, इसे लेकर कन्फ्यूजन ही कन्फ्यूजन है।
प्रयागराज में हुए परिषद के चुनाव में अध्यक्ष पद के लिए चुने गए निरंजनी अखाड़े के रवींद्र पुरी चुनाव के बाद सबसे पहले ऐलान करते हैं कि सनातन धर्म को बचाना है तो योगी और मोदी को फिर लाना है। वे कहते हैं कि जो राम का काज करे उसी पार्टी को जिताना है। उन्होंने दो हफ्ते बाद भाजपा के लिए चुनाव प्रचार शुरू करने की भी बात कही है। वे उनके समर्थन में आए अखाड़ों के जरिए चुनावी राज्यों में बैठकें और सभाएं कराने की घोषणा भी करते हैं।वे कहते हैं, ‘अयोध्या, काशी के बाद अब मथुरा की बारी है। 2024 में केंद्र के एजेंडे में मथुरा को शामिल कराने के लिए भाजपा के शीर्ष नेतृत्व से मुलाकात करेंगे, लेकिन उससे पहले राज्यों के चुनाव में राम काज करने वाली भाजपा को जिताने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा देंगे।’
रवींद्र पुरी खुद को भाजपाई और हरिद्वार में परिषद के चुनाव में अध्यक्ष बने महानिर्वाणी अखाड़े के रवींद्र पुरी को कांग्रेसी करार देते हैं। उनके इस दावे के पीछे वे अपने सोर्सेज और कुंभ मेले के दौरान महानिर्वाणी अखाड़े में महंतों से मिलने पहुंचे हरीश रावत के नाचते हुए वायरल वीडियो का हवाला देते हैं।इस दावे के इतर भी हरिद्वार परिषद के चुनाव में शामिल अखाड़ों के कई महंत सीधा कांग्रेसी होने का दावा तो नहीं करते, लेकिन भाजपा से रुष्ट होने की बात स्पष्ट तौर पर स्वीकार करते हैं। वे कांग्रेस को जनहित की पार्टी भी करार देते हैं। हरिद्वार में चुनकर आई अखाड़ा परिषद के महामंत्री राजेंद्र दास कहते हैं, ‘प्रयागराज परिषद योगी-मोदी का नाम लेकर खुद को ताकतवर दिखाने की सियासी चाल चल रही है। संतों महंतों का चुनाव से क्या मतलब? सियासत से क्या वास्ता?’
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हालांकि दूसरे ही पल वे भी ‘राम काज’ करने वाली पार्टी के पक्ष में होने की बात कहते हैं। सूत्रों की मानें तो महानिर्वाणी अखाड़े की अध्यक्षता में बनी परिषद के बीच इस बात को लेकर बहस जारी है कि किस राजनीतिक पार्टी के पक्ष में जाएं? क्योंकि जिस तरह से दो अखाड़ा परिषद बनकर खड़ी हो गई हैं, ऐसे में जिसे सत्ताधारी दल का समर्थन होगा वही असली अखाड़ा परिषद का वजूद पाने में सफल होगी।प्रयागराज में हुए अखाड़ा परिषद के चुनाव पर अलोकतांत्रिक होने का आरोप लगाते हुए राजेंद्र दास कहते हैं कि निरंजनी अखाड़े के रवींद्र पुरी की अध्यक्षता में बनी परिषद कतई लोकतांत्रिक नहीं। उसे तो अखाड़ा परिषद कहना भी गलत है। वह तो निरंजनी जूना परिषद है। वहां केवल इन्हीं दो अखाड़ों से पदाधिकारी चुने जाते हैं। जबकि हमारी परिषद ने 6 पदाधिकारी अलग-अलग अखाड़ों से चुने।
वे कहते हैं, ‘मैं निर्मोही अखाड़े का हूं तो हमारे अध्यक्ष महानिर्वाणी के हैं। निर्मल और दूसरे अखाड़ों से भी पदाधिकारी चुनकर आए हैं।’ निरंजनी अखाड़े के रवींद्र पुरी इस आरोप का जवाब संख्या बल के आधार पर पद मिलने के तर्क से देते हैं। वे कहते हैं कि 13 में से जूना अखाड़ा संख्या बल के आधार पर सबसे बड़ा है जबकि निरंजनी दूसरे नंबर पर, लेकिन अगर अखाड़े चाहें तो वे किसी को भी चुन सकते हैं। दावा कोई भी पेश कर सकता है। हमारे साथ आए अखाड़ों को पता है कि संख्या बल किसके साथ है।
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